27.04.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 27.04.2017
Updated: 27.04.2017

News in Hindi

💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠

*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*रासायनिक नियंत्रण प्रणाली*

हमारे शरीर में दो प्रकार की नियंत्रण प्रणालियां है। पहली रासायनिक नियंत्रण प्रणाली, जो स्वतः चालित है एवं दूसरी विद्युत नियंत्रण प्रणाली है जिसमें हम अपनी बुद्धि का थोडा - बहुत उपयोग कर सकते हैं । रासायनिक नियंत्रण प्रणाली का संचालन अंतःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा होता है । इसका स्राव सीधा रक्त में मिलकर शरीर को प्रभावित करता है । ये स्राव शरीर को संतुलित करते हैं । परंतु यदा - कदा ये असंतुलित भी हो जाते हैं जिससे शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं । ध्यान के प्रयोगों द्वारा इन स्रावों को संतुलित किया जा सकता है ।

27 अप्रैल 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠

🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 40* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*श्रुत-शार्दुल आचार्य शय्यंभव*

*समकालीन राजवंश*

शय्यंभव के समय में मगध पर नंदों का राज्य था। नंद शासन की स्थापना सर्वज्ञ श्रीसंपन्न जम्बू के निर्वाण से चार वर्ष पूर्व हुई थी। इस समय वीर निर्वाण को 60 वर्ष पूरे हो गए। शय्यंभव के आचार्य पद ग्रहण के समय नंद साम्राज्य की स्थापना के लगभग 15 वर्ष संपन्न हो रहे थे। समय की इस लंबी अवधि तक नंद साम्राज्य की नींव सुदृढ़ हो चुकी थी। नंद राज्य में अमात्य पद पर इस समय कल्पक नामक ब्राह्मण विद्वान था। बुद्धिमान कल्पक की अमात्य पद पर नियुक्ति स्वयं नंद ने विशेष पर्यतनपूर्वक की थी। कल्पक नंद राज्य का सुयोग्य मंत्री जैनधर्म के प्रति आस्थावान था। अर्थ के प्रति अधिक लिप्सु नहीं था, संतोषी था। कल्पक को धार्मिक संस्कार अपने परिवार से प्राप्त थे। मंत्री कल्पक का पिता कपिल व्रतधारी श्रावक था। उसके घर पर कई बार मुनि विराजते थे। सौभाग्य से कपिल परिवार को मुनियों से प्रवचन सुनने का लाभ पुनः-पुनः मिलता रहता था। आचार्य शय्यंभव के प्रवचन सुनने का भी इस परिवार को लाभ मिला होगा, पर जैन ग्रंथों में कपिल परिवार का, सुप्रसिद्ध जैन मंत्री कल्पक का और राजा नंद का आचार्य शय्यंभव से संबंधित कोई प्रसंग नहीं है। उस समय नंद राज्य में जैन मंत्री होने से आचार्य शय्यंभव द्वारा बोये गए धर्मबीजों को फलवान बनने में उर्वरधरा और अनुकूल वातावरण सहयोगी था।

*अध्यात्म का ऊर्ध्वारोहण*

जीवन के संध्याकाल में आचार्य शय्यंभव ने अपने पद पर श्रुतसागरपारीण यशोभद्र को नियुक्त किया। इस गरिमामय पद के लिए आचार्य यशोभद्र जैसे सुयोग्य व्यक्ति के चयन से जन-जन का मानस उल्लास से भर गया।

श्रुतज्ञान से आचार्य शय्यंभव शार्दूल की भांति दुःप्रधर्ष थे। उन्होंने पूर्वज्ञान से निर्यूढ सूत्र रचना का प्रारंभ किया। उनके जीवन में ब्राह्मण और जैन संस्कृति का मिलन तथा अध्यात्म का उर्ध्वारोहण था।

*समय-संकेत*

आचार्य शय्यंभव 28 वर्ष की अवस्था में श्रमण दीक्षा ग्रहण कर 39 वर्ष की अवस्था में आचार्य पद पर आरूढ़ हुए। संयमी जीवन के कुल 34 वर्षों में 23 वर्ष तक युगप्रधान पद के दायित्व का निपुणता से वहन किया। वे 62 वर्ष की अवस्था में वी. नि. 98 (वि. पू. 372) ई. पू. 429 में स्वर्गवासी हुए।

*आचार्य काल*

(वी. नि. 75-98)
(वि. पू. 395-372)
(ई. पू. 452-429)

*तीर्थंकर महावीर के पांचवे पट्टधर व श्रुतधर आचार्यों की परंपरा में तृतीय श्रुतकेवली युगप्रहरी आचार्य यशोभद्र* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

♻❇♻❇♻❇♻❇♻❇♻

*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 65 - *संघीय व्यवस्थाएं*

*धार्मिक-आराधना* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢
आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 40📝

*संस्कार-बोध*

*शिष्य-सम्बोध*

*शिष्य के संस्कारों का महत्त्व बतलाते दोहों में प्रयुक्त कुछ उदाहरणों का विस्तृत विवेचन*

*7. उलटी-सीधी बात सुन*

आचार्य भिक्षु का जीवन बहुआयामी था। वे सिद्धांतों के मर्मज्ञ थे, उतने ही विनोदी स्वभाव के थे। सामान्य स्थिति में विनोद करना एक बात है। विरोधी लोगों की उलटी-सीधी बातें सुनकर भी वे अशांत नहीं होते थे। ऐसे अनेक प्रसंग हैं। एक प्रसंग का उल्लेख यहां किया जा रहा है--

संवेगी साधु खंतिविजयजी पाली में आचार्य भिक्षु के साथ चर्चा करने आए। चर्चा का प्रमुख बिंदु था आचारांग का एक पाठ-- धर्म के निमित्त जीवों को मारने में दोष नहीं है, यह अनार्य वचन है। मुनि खंतिविजयजी ने कहा-- 'यह पाठ अशुद्ध है, हम अपनी प्रति में देखेंगे।' उनकी प्रति में भी वैसा ही पाठ था। उन्होंने पाठ पढ़ा नहीं। उनके हाथ कांपने लगे। आचार्य भिक्षु ने कहा-- 'आपके हाथ क्यों कांपते हैं? शास्त्रों में कंपन के तीन कारण बताए गए हैं-- कंपनवात का प्रकोप, वासना का उभार और शास्त्रार्थ में पराजय। बोलो, आपके हाथ किस कारण से कांप कर रहे हैं?' यह बात सुन साधु खंतिविजयजी क्रोध के आवेश में बोले-- 'साले का सिर काट डालूं।' यह ऐसी बात थी जो आचार्य भिक्षु को भी उत्तेजित कर सकती थी। किंतु उनका अपने मन पर पूरा नियंत्रण था। वे शांति के साथ विनोद के लहजे में बोले--

'संसार की सभी स्त्रियां मेरे लिए मां और बहन के समान हैं। यदि आपने विवाह किया है तो वह मेरी बहन होगी। इस दृष्टि से मुझे साला कहा तो ठीक है। यदि आपने विवाह नहीं किया और मुझे साला कहते हो तो असत्य संभाषण का दोष लगता है। दूसरी बात-- आपने साधुपन स्वीकार किया, उस समय छह जीवनिकाय के जीवों को मारने का त्याग किया था। मुझे आप साधु मानो या मत मानो त्रसकाय तो मानोगे। आपने मेरा सिर काटने को कहा। क्या साधुपन लेते समय मुझे मारने की छूट रखी थी?' आचार्य भिक्षु ने ऐसा कहकर मुनि खंतिविजयजी को निरुत्तर कर दिया। वहां उपस्थित सब लोग इस घटना से बहुत प्रभावित हुए।

*प्रेरक व्यक्तित्व* हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢

👉 *पूज्य प्रवर करेंगे अक्षय तृतीया महोत्सव हेतु भागलपुर प्रवेश*
👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 14 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - आंनद राम स्कूल, "भागलपुर"*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*

दिनांक - 27/04/2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Share this page on:
Page glossary
Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
  1. अक्षय तृतीया
  2. आचार्य
  3. आचार्य भिक्षु
  4. महावीर
  5. राम
  6. श्रमण
Page statistics
This page has been viewed 842 times.
© 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
Home
About
Contact us
Disclaimer
Social Networking

HN4U Deutsche Version
Today's Counter: