28.04.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 28.04.2017
Updated: 30.04.2017

Update

रोटी, कपड़ा और मकान के लिए भगवान के पास, साधुओं के पास नहीं आना चाहिए - मुनि पुंगव श्री सुधासागर महाऋषिराज

अपने प्रवचन में मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने कहा कि आज पाश्चात्य संस्कृति हावी हो रही है जिसमें आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेना ही जीवन का लक्ष्य होता है। लेकिन भारत देश की संस्कृति तो वह है चाहे कोई भी दर्शन काल हो, कोई भी समुदाय हो, जितने भारतीय दर्शनकार हैं उन्होंने भारतीयों को सबसे बड़ा संदेश दिया कि जिंदगी की जिन कुछ समस्याओं के समाधान के लिए वस्तुएं ढूंढ़ रहे हो, वह तुम्हारे जीवन का लक्ष्य नहीं है, यह जीवन की मजबूरी है।_
✨✨✨
पूज्य मुनिश्री सुधासागर जी गुरु महाराज ने कहा कि _जीवन का लक्ष्य किताब पढ़ना नहीं है, जीवन का लक्ष्य उस किताब के पार है जो उस किताब को पढ़ने के बाद मिलेगा, किताब तो मनुष्य मजबूरी में पढ़ता है। भारतीय संस्कृति भारत में रहने वाले लोगों से कहती है कि जो भी जिंदगी में आवश्यक वस्तुएं हैं उनको जुटाना हमारी मजबूरी होनी चाहिए, लक्ष्य नहीं होना चाहिए। लक्ष्य तो समस्याओं के समाधान के बाद क्या करना है, यह होना चाहिए। यह हमारी संस्कृति और संस्कार होने चाहिए।_
📚📚📚
मुनि पुंगव ने अनेक उदाहरण देकर उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि* _समस्या के समाधान के बाद जिंदगी क्या हो, वह है जीवन, वह है लक्ष्य, उस पर खड़ा होता है भविष्य का स्वरूप, वह हमारी जिंदगी के भावी पर्याय को, भावी जीवन को बहुत ऊंचाइयां प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि आँख 👁 में ज्योति मिल जाना न संस्कृति है, न संस्कार है, आँख से देखने के बाद कैसी फीलिंग हुई, अन्तर में कैसी प्रवृत्ति हुई, कैसी आल्हाद की लहर उठी, अगर किसी वस्तु को देखकर हमारे आकुल-व्याकुल परिणाम हो गये तो समझ लेना कि वह आँख हमारे लिए कोई संस्कृति और संस्कार तैयार नहीं करती और जिस आँख से देखने के बाद ऐसा आनन्द आये कि आज हमारा जीवन धन्य हो गया जो हमें ऐसा दृश्य देखने को मिला, वही भारतीय संस्कृति, संस्कार, धर्म और दर्शन है।_
🛎🛎
*अपने उपदेश में मुनिश्री ने उपस्थित भक्तजनों और श्रद्धालुओं को प्रेरणा दी कि* _अपने मुख से ऐसे शब्द नहीं निकालें जो दूसरे को ग्राह्य नहीं हो। हम चलें तो ऐसे चलें कि जिसके पीछे चलने के लिए लोग लालायित हो जायें, ऐसे मत चलो कि तुम चलो तो कोई चलने के लिए भी तैयार नहीं हों। रोगी को क्या चाहिए वह डाक्टर बतायेगा और निरोगी को कैसा जीवन चाहिए, यह साधु बतायेगा।_
🌾🌾🌾
*णमोकार मंत्र और पंच परमेष्ठी की महिमा का बखान करते हुए मुनि पुंगव ने उपदेश दिया कि* _चाहे कैसा भी व्यक्ति हो, लेकिन णमोकार मंत्र का नित्य प्रति पाठ अवश्य करें। पंच परमेष्ठी वह शक्ति है जिसके नाम स्मरण कर लेने मात्र से ही सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं, बिगड़े काम बन जाते हैं। उन्होंने उपस्थित जनसमूह से आह्वान किया कि आज घर🏡 जाकर मां-बाप से जरूर पूछें कि जब आपने मुझे जन्म दिया उससे पहले मेरे प्रति आपके क्या भाव रहे थे, कैसा आप मुझे बनाना चाहते थे, आपकी क्या इच्छाएं थीं, उन इच्छाओं की पूर्ति करना प्रत्येक बेटा-बेटी का कर्तव्य है।_
⛲⛲⛲
*मुनि पुंगव ने जिनवाणी का महातम्य बताते हुए कहा कि* _यदि शास्त्र 📚का एक पन्ना 📄पढ़ कर उसमें लिखे पर अमल कर लिया तो निश्चित ही उस व्यक्ति का बेड़ा पार हो जायेगा।_
👉🏻👉🏻👉🏻
_मुनिश्री के प्रवचन के पूर्व सभागार में मंगलाचरण के उपरांत चित्र अनावरण करने वाले श्रेष्ठियों में जे.के.जैन-कालाडेरा परिवार, दीप प्रज्ज्वलनकर्ता अशोक पाटनी, राजेन्द्र के. गोधा, हुकम काका, शास्त्र भेंट करने वाले अशोक जैन-नेता और पाद प्रक्षालन करने वालों में अशोक पाटनी परिवार, अलवर शहर विधायक बनवारी लाल सिंघल, ज्ञानचंद झाझरी आदि सम्मिलित रहे।_

🎏 _मंच संचालन राजस्थान जैन सभा के अध्यक्ष कमलबाबू जैन ने किया। उपरोक्त श्रेष्ठी महानुभावों के अतिरिक्त भक्तजनों में प्रमुख रूप से राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा, सुशीला पाटनी आदि उपस्थित रहे।_
______________________________

Source: © Facebook

News in Hindi

#रविवारीय_विद्यावाणी रविवासरीय प्रवचन श्रंखला में आचार्यश्री ने चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ में मांगलिक उपदेश देते हुये कहा कि एक स्थान पर गुरु महाराज के उपदेश हो रहे थे सर्वत्र हिंसा की बात ठीक नही मानी जा रही थी सुख, सुविधा,शान्ति,के लिए सभी को हिंसा का त्याग करना आवश्यक है।

यह बात सभी को समझ में आ गई सभी ने यथाशक्ति संकल्प लिया। समीप के बिल में एक *सर्प* भी सुन रहा था उसने भी किसी को भी *काटने का त्याग करने का संकल्प लिया। जैसे ही अन्य लोगो को यह बात पता चली तो लोग उसको परेशान करने लगे एक दिन वह गुरु चरणों में पहुच अपनी व्यथा बताता है तब मुनिराज ने कहा आपने किसी को भी काटने का त्याग किया है फुफकारने का नही किया। यह गुरुमंत्र उसने महामंत्र के रूप में स्वीकार कर लिया। गुरु उपदेश सुनकर एक ऐसा विषधर जिसके काटने तो दूर, उसकी लाल लाल आँखों के देखने मात्र से व्यक्ति मर सकता है। जब वह हिंसा का त्याग कर सकता है तब हम अपने व्रतों,अणुव्रतों को ग्रहण करके उसका पालन क्यों नही कर सकते

प्रस्तुति, राजेश जैन

••••••••• www.jinvaani.org •••••••••
••••••• Jainism' e-Storehouse •••••••

#Jainism #Jain #Digambara #Nirgrantha #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #RishabhaDev #Ahinsa #AcharyaVidyasagar

Source: © Facebook

Sources
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Digambar
      • Acharya Vidya Sagar
        • Share this page on:
          Page glossary
          Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
          1. Ahinsa
          2. Digambara
          3. Jainism
          4. JinVaani
          5. Nirgrantha
          6. Tirthankara
          7. अशोक
          8. दर्शन
          9. भाव
          10. राजस्थान
          Page statistics
          This page has been viewed 339 times.
          © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
          Home
          About
          Contact us
          Disclaimer
          Social Networking

          HN4U Deutsche Version
          Today's Counter: