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*अक्षय तृतीया महोत्सव*
👉 राजसमन्द
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👉 छापर - संगठन यात्रा
👉 कालू - टेक्नोलॉजी का ज्ञान करायेगा सशक्त पहचान कार्यशाला एवं आचार्य महाश्रमण अष्टकम प्रतियोगिता का आयोजन
👉 उदयपुर - अध्यात्मिक मिलन
👉 अहमदाबाद - स्वस्थ राष्ट्र निर्माण में अणुव्रत की भुमीका विषयोक्त सेमिनार
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
*अक्षय तृतीया महोत्सव*
👉 उदयपुर
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👉 तिरुपुर - आध्यात्मिक मिलन
👉 भीलवाड़ा - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 टिटलागढ़ (उड़ीसा) - आध्यात्मिक मिलन
👉 जयपुर - स्वच्छता अभियान
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
News in Hindi
*भागलपुर - अक्षय तृतीया समारोह*
कार्यक्रम की विशेष बाते -
👉 वर्षीतप में दोष के लिए 51 सामायिक
👉 समणी शीलप्रज्ञा जी -16वां वर्षीतप
👉 पारणा करने वाले कुल तपस्वी - 68
👉 नेपाल बिहार सभा द्वारा कोलकता चातुर्मास व्यवस्था समिति को दायित्व हस्तांतरण
👉 कार्यक्रम की झलकियां
दिनांक - 29-04-17
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
Source: © Facebook
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 42📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
*दोहों में प्रयुक्त तेरापंथ धर्मसंघ के प्रेरक व्यक्तित्व*
*8. पद आए जाए भले*
विक्रम संवत 1877 में द्वितीय आचार्यश्री भारिमालजी ने अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति का निर्णय लिया। वृद्धावस्था के कारण वह स्वयं नियुक्तिपत्र लिखने की स्थिति में नहीं थे। इसलिए उन्होंने उस काम के लिए मुनि जीतमल को निर्देश दिया। मुनि जी लिखने बैठे। आचार्यश्री ने नियुक्तिपत्र की छठी पंक्ति इस प्रकार लिखवाई-- *'सर्व साधु-साधवी खेतसीजी रायचंदजी री आगन्या मांहे चालणो।'* मुनि जीत ने वह पंक्ति लिख तो दी, पर रुक गए। आचार्यश्री ने रुकने का कारण पूछा वे बोले-- गुरुदेव! नियुक्तिपत्र में दो नाम कैसे?' इस पर आचार्यश्री ने कहा-- जीतमल! ऐसी क्या बात है? ये दोनों मामा-भानजे हैं। आपस में मिलजुलकर काम कर लेंगे। जीत मुनि को यह बात ठीक नहीं लगी। उन्होंने अनुरोध के स्वरों में कहा-- 'गुरुदेव मामा-भानजे हो या पिता-पुत्र, दो सदा दो ही होते हैं। आपकी मर्जी दोनों के लिए हो तो आप एक नाम पहले और दूसरे का उनके बाद लिखाने की कृपा करें, पर एक साथ दो नाम नहीं रहने चाहिए।'
आचार्यश्री ने मुनि जीत के निवेदन को उचित मानते हुए कहा-- 'अच्छा, जीतमल! तुम्हारे नहीं जचे तो पहला नाम काट दो।' आचार्यवर के निर्देश से मुनि जीत ने खेतसीजी का नाम छेक दिया। उसे रेखांकित कर अप्रभावी बना दिया मुनि खेतसीजी को इस घटना की जानकारी मिली। उन्होंने किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं की। उनकी मनःस्थिति में कोई अंतर नहीं आया। इस प्रसंग में उनको आदर्श मानकर लिखा गया है-- *'पद आए जाए भले, रहें सहज मध्यस्थ।'* ऐसे मुनि संघ के गौरव बन जाते हैं।
*मुनि थिरपालजी और फतेहचंदजी की आचार्य भिक्षु के प्रति श्रद्धा के बारे में पढ़ेंगे एक दोहे में प्रयुक्त पंक्ति "कोटा के महाराज की"* का अर्थ समझते हुए... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 42* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*युगप्रहरी आचार्य यशोभद्र*
*समकालीन राजवंश*
यशोभद्र के आचार्यकाल में मगध पर नंदवंश का शासन था एवं पाटलीपुत्र मगध की राजधानी थी। नंदों के न्याय एवं नीतिपूर्ण शासन में मगध की भौतिकश्री उत्कर्ष पर थी। राजधानी नगर पाटलीपुत्र की शोभा निराली थी। धर्म प्रचार के लिए यह उपयुक्त क्षेत्र था। आचार्य यशोभद्र का लंबे समय तक इस धरा पर विहरण हुआ। जनसामान्य और शासक-वर्ग तक को उनके उपदेशों में प्रभावित किया। उनकी अमृतमयी वाणी मगध, अंग और विदेह की धरा पर गूंजती रही। उनके अहिंसक संदेश ने क्रियाकांडी ब्राह्मणों को अध्यात्म की ओर उन्मुख करके यज्ञों में होने वाली निरीह प्राणियों की हिंसा से मुक्त किया।
आचार्य शय्यंभव और यशोभद्र दोनों ब्राह्मण थे। उनका ब्राह्मणों पर प्रभुत्व था। इस कारण दोनों आचार्यों का 73 वर्ष का सुदीर्घ आचार्यकाल ब्राह्मण समाज में जैन संस्कृति को प्रसारित करने की दृष्टि से प्रभावित रहा। याज्ञिक क्रियाकांडों में होने वाली हिंसाओं के स्थान पर अहिंसा के उद्घोष सुनाई देने लगे।
जलधर की भांति अर्हतोपदिष्ट धर्म की शीतल धारा द्वारा मोहतापतप्त विश्व को शांति प्रदान करते हुए यशस्वी यशोभद्र ने आर्य धरा पर सिंह तुल्य निर्भीक वृत्ति से विहरण किया। उनकी कीर्तिलताएं चतुर्दिग् में फहराईं।
आचार्य संभूतविजय और आचार्य भद्रबाहु दोनों आचार्य यशोभद्र के शिष्य थे। दोनों ही श्रमणों ने आचार्य यशोभद्र से 14 पूर्व की ज्ञान संपदा ग्रहण की।
आचार्य शय्यंभव तक एक आचार्य की परंपरा थी। युगप्रहरी आचार्य यशोभद्र ने अपने बाद संभूतविजय और भद्रबाहु दोनों की आचार्य पद पर नियुक्ति की। यह जैन शासन में नई परंपरा का जन्म था।
चतुर्दश पूर्व की विशाल ज्ञानराशि से संपन्न आचार्य यशोभद्र उत्तम चरित्र के धनी, सौम्य स्वभावी और युगप्रहरी आचार्य थे। उनका आचार्यकाल अत्यंत सुखद और शांतिमय था। यह आचार्य यशोभद्र के सक्षम व्यक्तित्व का प्रभाव था।
*समय-संकेत*
तीर्थंकर महावीर के उत्तरवर्ती युगप्रधान आचार्यों की परंपरा में उस समय तक सर्वाधिक लंबा आचार्यकाल आचार्य यशोभद्र का था। संयम-पर्याय के 64 वर्ष के काल में 50 वर्ष तक उन्होंने युगप्रधान पद को अलंकृत किया। आचार्य यशोभद्र का स्वर्गवास वी. नि. 148 (वि. पू. 322, ई. पू. 379) में 86 वर्ष की अवस्था में हुआ।
*आचार्य-काल*
वी. नि. 98-148
वि. पू. 372-322
ई. पू. 429-379
*महावीर के छठे पट्टधर व श्रुतकेवली परम्परा के चतुर्थ श्रुतकेवली संयमसूर्य आचार्य सम्भूतविजय* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*लेश्या*
लेश्या के छः प्रकार है ----
1) कृष्ण लेश्या 2) नील लेश्या 3) कापोत लेश्या 4) तेजो लेश्या 5) पद्म लेश्या 6) शुक्ल लेश्या
ये प्रत्येक प्राणी में होती है पर इनमें कोई लेश्या प्रधान होती है, कोई गौण ।
साधना का प्रयोग लेश्याजनित स्वभाव के आधार पर निर्धारित करना चाहिए ।
लेश्या
1) कृष्ण लेश्या प्रधान ---
2) नील लेश्या प्रधान ----
3) कापोत लेश्या प्रधान ----
4) तेजो लेश्या प्रधान ----
5) पद्म लेश्या प्रधान ---
6) शुक्ल लेश्या प्रधान ---
स्वभाव
1) आर्त्त---'
2) प्रमत्त (अजगर की भांति)----
3) चंचल (बंदर की भांति)---
4) अचपल ----
5) प्रशांत ----
6) उपशान्त----
साधना
1) भजन (अन्यथा नींद)
2) वाचिक जप
3) वाचिक जप
4) एकाग्रता ध्यान
5) निर्विकल्प ध्यान
6) दीर्घकालिक निर्विकल्प ध्यान
29 अप्रैल 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 67 - *धार्मिक-आराधना*
*सचित्त-अचित्त-मर्यादा क्रमशः...* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
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❇ हरियाणा की पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं तेरापंथ धर्मसंघ के विशिष्ट श्रावक स्व. श्री ओमप्रकाश जी जिंदल की धर्मपत्नी *श्रीमती सावित्री देवी जिंदल* को जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय की *कुलाधिपति* नियुक्त किया गया है। इस गौरवशाली नियुक्ति पर *तेरापंथ संघ संवाद परिवार* की ओर से हार्दिक बधाई एवं मंगलकामना।
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