02.05.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 02.05.2017
Updated: 03.05.2017

Update

👉 जयपुर -विद्यार्थियों को रिजल्ट डे पर संस्कारो की शिक्षा व मिठाई और अल्पाहार वितरण
👉 हैदराबाद:- जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 कटक - अणुव्रत कवि सम्मेलन का आयोजन

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Update

💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢
आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 44📝

*संस्कार-बोध*

*प्रेरक व्यक्तित्व*

*दोहों में प्रयुक्त तेरापंथ धर्मसंघ के प्रेरक व्यक्तित्व*

*11. नियमित दिनचर्या रहे...*

मुनि भीमराजजी आमेट के थे। उनकी दीक्षा विक्रम संवत 1949 में मघवागणी के करकमलों से रतनगढ़ में हुई। उनकी अध्ययन में अच्छी रुचि थी। वे संस्कृत और प्राकृत भाषा के जानकार थे। उनकी गणना संघ के उच्च कोटि के विद्वान् साधुओं में होती थी। वे व्याकरण, ज्योतिष और आयुर्वेद के ज्ञाता थे। जैन आगमों का उन्हें गंभीर ज्ञान था। मुनि फौजमलजी के साथ रहकर उन्होंने शास्त्रार्थ की कला सीखी। उनके उत्तर यौक्तिक और निर्णायक होते थे। मुनि फौजमलजी ने ब्यावर में स्थानकवासी आचार्य जवाहरमलजी के साथ लगातार एक महीने तक चर्चा की। उस समय मुनि भीमराजजी उनके अनन्य सहयोगी रहे।

मुनि भीमराजजी विज्ञान में बहुत रुचि रखते थे। वैज्ञानिक जानकारी वाले व्यक्ति मिल जाते तो वे उनसे खुलकर बात करते थे। उन्हें खगोल विद्या का अच्छा ज्ञान था। 28 नक्षत्रों के तारों का आकार क्या है, वे आकाश में कहां होते हैं, इस बात की उन्हें पूरी जानकारी थी। जैन मुनियों द्वारा बनाए गए भूगोल और खगोल के चित्रों में उक्त तथ्यों का आकलन मिलता है। पर वे उन्हें प्रत्यक्षतः दिखा देते थे। उन्होंने मुझे (ग्रंथकार आचार्य तुलसी) अश्विनी, भरिणी, रोहिणी, कृत्तिका आदि नक्षत्रों के तारे दिखाए थे। प्राचीन काल में साधु नक्षत्रों की घड़ी के आधार पर ही समय का ज्ञान करते थे। मुनिश्री की दिनचर्या बहुत नियमित थी। समय पर सोना, समय पर उठना, स्वाध्याय, आहार, विश्राम, पंचमी समिति के लिए दूर जाना, आचार्यों का पादप्रमार्जन करना, गत दिवस वार्ता सुनाना, लिखत में हस्ताक्षर करना आदि किसी भी कार्य में प्रमाद नहीं होता था। कालूगणी व्याख्यान में पधारते, उस समय पूठा लेकर साथ जाना उनका अनिवार्य कार्य था। *'काले कालं समायरे'--* यह आगम वाक्य उनके जीवनगत हो चुका था। टाइम मैनेजमेंट की ट्रेनिंग आजकल दी जाती है, उन्होंने उस समय समय-प्रबंधन का सहज प्रशिक्षण पा लिया था।

मैंने (ग्रंथकार आचार्य तुलसी) उनको मरणोपरांत *'संघनिष्ठ'* और *'शासन-स्तंभ'* संबोधन देकर उनका सम्मान किया।

*संघनिष्ठ मुनि भोपजी और अनुशासनप्रिय मुनि स्वरूपचंदजी* के बारे में पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢

🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 44* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*संयमसूर्य आचार्य सम्भूतविजय*

गतांक से आगे...

मुनि स्थूलभद्र अपनी संयम-साधना में स्थितप्रज्ञ की भांति जागरूक एवं स्थिर थे। सुरांगना के रूप को भी अभिभूत कर देने वाली गणिका कोशा के मद्य छलकते नयन, वक्र कटाक्ष, भ्रू-विक्षेप, भाव भंगिमा और नृत्य मुनि स्थूलभद्र को इंच मात्र भी विचलित न कर सके। पावस सानंद संपन्न हुआ। जो चित्रशाला कामशाला थी वह धर्मशाला बन गई। गणिका कोशा व्रतधारिणी श्राविका एवं अर्हद्धर्म की दृढ़ उपासिका बनी।

वर्षावास की संपन्नता पर चारों मुनि लौटे। आचार्य संभूतविजय ने अपने प्रथम तीन मुनियों का सम्मान 'दुष्कर क्रिया के साधक' का संबोधन देकर किया। श्रमण स्थूलभद्र के आगमन पर आचार्य संभूत विजय सात-आठ पैर सामने गए और 'महादुष्कर क्रिया के साधक' का संबोधन देकर उन्हें विशेष सम्मान प्रदान किया।

स्वर्गोपम चित्रशाला में सुखपूर्वक चातुर्मास संपन्न करने वाले श्रमण स्थूलभद्र के प्रति 'महादुष्कर क्रिया के साधक' जैसा आदरसूचक संबोधन सुनकर सिंह-गुफावासी मुनि के मन में स्पर्धा का प्रबल भाव जागृत हुआ। उन्होंने सोचा अमात्य-पुत्र होने के कारण आचार्य संभूतविजय ने 'षट्रस भोजी' मुनि स्थूलभद्र को इतना सम्मान प्रदान किया है। सरस भोजन करने से महादुष्कर साधना निष्पन्न में हो सकती है तो कोई भी साधक इस साधना में सफल हो सकता है। सिंह गुफावासी मुनि चिंतित रहने लगे।

दिन पर दिन बीतते गए। आगामी-पावस का समय निकट आया जानकर मात्सर्य भाव से आक्रांत सिंह-गुफावासी मुनि ने आचार्य संभूतविजय के पास आकर प्रार्थना की "गुरुदेव! मैं आगामी चातुर्मास गणिका कोशा की चित्रशाला में करना चाहता हूं।"

आचार्य संभूतविजय के योग-दर्पण में अवांछनीय घटना का प्रतिबिंब झलक रहा था। उन्होंने कहा "वत्स! इस दुष्कर अभिग्रह को मत ग्रहण करो। अद्रिराज की तरह स्थिर स्थूलभद्र जैसा व्यक्ति ही इस प्रकार के अभिग्रह को निभा सकता है।"

मुनि बोले "मेरे लिए यह अभिग्रह दुष्कर नहीं है। आप जिसे दुष्कर-दुष्कर और महादुष्कर कह रहे हैं, वह मार्ग मेरे लिए बहुत सरल है।"

आर्य संभूतविजय ने मधुर स्वर में पुनः शिक्षण देते हुए कहा "इस अभिग्रह में तुम सफल नहीं हो सकोगे। तुम्हारा पूर्व तपोयोग भी भ्रष्ट हो जाएगा। दुर्बल कंधों पर आरोपित अतिभार गात्र-भंग (शरीर-नाश) का निमित्त बनता है।"

आर्य संभूतविजय इतना कहकर मौन हो गए। दर्प-दलित, इर्ष्यानाग दंशित सिंह-गुफावासी मुनि गुरु के वचनों को अवगणित कर कोशा की चित्रशाला की ओर बढ़ गए। अविरल गति से चलते चरण मंजिल के निकट पहुंचे, चित्रशाला में पावस बिताने के लिए कोशा गणिका से अनुमति मांगी।

कोशा बुद्धिमती महिला थी। उसने समझ लिया, तपस्वी मुनि का आगमन मुनि स्थूलभद्र से ईर्ष्या के कारण हुआ है। वह व्यवहार कुशल थी। उसने उठकर वंदन किया और अपनी चित्रशाला में चातुर्मास प्रवास के लिए उन्हें अनुमति प्रदान की।

*क्या सिंह-गुफावासी मुनि गणिका कोशा की चित्रशाला में सफलतापूर्वक चातुर्मास संपन्न कर पाए...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

♻❇♻❇♻❇♻❇♻❇♻

*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 69 - *गोचरी*

*गोचरी...* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠

*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*लेश्या ध्यान ---[ 3 ]*

लेश्या का सम्बन्ध रंग के साथ है । रंग हमारे शारीरिक तंत्र को प्रभावित करता है ।
1) लाल रंग एड्रिनल ग्लैण्ड को उत्तेजित करता है । शरीर में स्फूर्ति व सक्रियता को बढाता है । रक्त संबंधी सभी रोगों पर डालता है ।
2) नारंगी रंग प्रतिरोधी क्षमता को बढता है ।फेफडा, पेन्क्रियाज और प्लीहा को सशक्त बनाता है ।कैल्शियम की अभिवृद्धि करता है । नाडी की गति बढती है, रक्तचाप सामान्य रहता है, फेफडों एवं छाती से संबंधित रोगों के लिए उपयोगी होता है ।
3) पीला रंग मांसपेशियों की मजबूती और पाचन संस्थान को स्वस्थ रखने में सहायक है । छोटी आंत और बडी आत संबंधी बीमारियों में प्रभावकारी है ।

02 मई 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠🅿💠

News in Hindi

👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 11 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - पुनसीआ बाजार*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*

दिनांक - 02/05/2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Share this page on:
Page glossary
Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
  1. आचार्य
  2. आचार्य तुलसी
  3. आयुर्वेद
  4. ज्ञान
  5. भाव
  6. श्रमण
Page statistics
This page has been viewed 394 times.
© 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
Home
About
Contact us
Disclaimer
Social Networking

HN4U Deutsche Version
Today's Counter: