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उपदेश के बिना भी विद्या प्राप्त हो सकती है। जिस राह नहीं चलते वहां रास्ता नहीं यह धारणा नहीं बनाना चाहिए। कुछ लोग होते हैं जो रास्ता बनाते जाते हैं महापुरूष आगे चलते जाते हैं और रास्ता बनता जाता है। --पूज्य #आचार्यश्री #विद्यासागर महाराज
आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचनों में आगे कहा कि समवशरण में सब कुछ प्राप्त हो जाता है। लेकिन सम्यग्दर्शन मिले जरूरी नहीं। बाहरी कारण मिलने के साथ भीतरी कारण मिले यह नियम नहीं होता। अंतरंग निमित्त बहुत महत्वपूर्ण होता है। चक्रवर्ती भरत के 923 बालक जिन्होंने कभी नहीं बोला वे दादा तीर्थंकर से 8 वर्ष पूर्ण होने के बाद कहते हैं कि हमें भगवन हमें दीक्षा प्रदान करें। साक्षात तीर्थंकर भगवान का निमित्त पाकर बिना उपदेश सुने ही स्वयं दीक्षित हो जाते हैं। यह समवशरण का अतिशय है। वे दीक्षा धारण कर सीधे जंगल चले जाते हैं। उपदेश के बिना समग्यदर्शन भी संभव है। जानकर भी शास्त्र का श्रद्धान नहीं करना शास्त्र का अवर्णवाद है। मोक्ष मार्ग का निरूपरण करते समय स्वयं को संयत कर लेना चाहिए, वरना स्वयं के साथ-साथ मोक्ष मार्ग का भी बिगाड़ हो जाता है। कषाय के रूप अनेक प्रकार के होते हैं। जिस तरह सूर्य चंद्रमा और दीपक से अलग अलग रोशनी मिलती है। मुझे मोक्ष मार्ग मिला है तो दूसरों को भी प्राप्त हो जाए, ऐसा बात्सल्य भाव ज्ञानी को होता है। जिस तरह गाय अपने बछड़े के प्रति वात्सल्य भाव रखती है। जो केवल ज्ञान का विषय होता है वह उसे मति ज्ञान और श्रुत ज्ञान का विषय नहीं बना सकते ।
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आन्ध्र प्रदेश के वेस्ट गोदावरी जिले में कोव्वुर के पास कुमारादेवम गाँव में गांववासियों द्वारा महादेव समझ कर प्राचीन समय से पूजते आये कमर तक बालों (जटाओं) वाली प्राचीन जैन (संभवत: भगवान आदिनाथ जी) प्रतिमा जी की जानकारी प्राप्त होने पर जैन समाज द्वारा प्रतिमा को अपने कब्जे में लेकर गाँव में ही एक छोटे मंदिर जी का निर्माण कर प्रतिमा जी की स्थापना 18 मई 2017 को करने का लिया निर्णय......विश्व जैन संगठन #AntiquityOfJainism
उपरोक्त प्रतिमा में कुमारादेवम गाँववासियों की आस्था होने के कारण गाँववासियों ने जैन समाज को प्रतिमा को गाँव से बाहर न ले जाने की शर्त पर गाँव में ही मंदिर का निर्माण कर स्थापित करने हेतु सौपीं!
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