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दिनांक 11 - 05- 2017 के विहार और पूज्य प्रवर के प्रवचन का विडियो
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
12 मई का संकल्प
*तिथि:- ज्येष्ठ कृष्णा द्वितीया*
सभी जीवों के प्रति मैत्री हृदय में समाएं।
समता सागर से करुणा की गंगा बहाएं।।
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 जालना - आचार्य श्री महाश्रमण अभिवंदना समारोह
👉 राजगढ़ - अणुव्रत आचार संहिता पट्ट भेंट
👉 जयपुर - शासन स्तम्भ मंत्री मुनि श्री का महाप्रज्ञ इन्टरनेशमल स्कूल में पदार्पण
प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*
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👉 दिल्ली - अणुव्रत महासमिति की कार्यसमिति बैठक का आयोजन
👉 भिवानी - युवा दिवस पर नशा मुक्ति अभियान
👉 राजगांगपुर (ओडिशा) - आचार्यश्री महाश्रमणजी का 44 वां दिक्षा दिवस
👉 सूरत - आचार्य श्री महाश्रमण जन्मदिवस, पदाभिषेक व दीक्षा दिवस समारोह
प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 52* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*भवाब्धिपोत आचार्य भद्रबाहु*
*जीवन-वृत्त*
श्रुतधर आचार्य भद्रबाहु को प्रकृति से श्रेष्ठ शरीर संपदा प्राप्त थी। *'तित्थोगालिय पइन्ना'* में उल्लेख है।
*सत्तमतो थिर बाहु जाणुयसीससुपडिच्छिय सुबाहु।*
*नामेण भद्दबाहु अविही साधम्म सद्दोति (2)*
*।।714।।*
*सोवि य चोद्दसपुव्वी, बारस वासाइ जोग पडिवन्नो।*
*सुतत्थेणं निबंधइ, अत्थं अज्झयण बंधस्स*
*।।715।।*
योग साधक श्रुतधर आचार्य भद्रबाहु महासत्व संपन्न थे। उनकी प्रलंबमान आजानु भुजाएं सुंदर, सुदृढ़ और सुस्थिर थीं। इसी ग्रंथ का एक और श्लोक है
*तो वंदिउण पाएसु, भद्दबाहु दीह बाहुस्स।*
*पुच्छन्ति भाउओ सो, कत्थगतो थूलभद्दो त्ति ।।756।।*
यहां भी भद्रबाहु को 'दीर्घ-भुजा' विश्लेषण से संबोधित किया गया है।
पंचकल्प महाभाष्यकार के शब्दों में भद्रबाहु नाम उनकी सुंदर भुजाओं के कारण था। वह पद्य इस प्रकार है
*भद्दत्ति सुन्दर त्ति य पुल्लवो जत्थ सुन्दरा बाहू।*
*सो होति भद्दबाहू गोण्णं जेणं तु वालत्ते ।।7।।*
शरीर लक्षण शास्त्र के अनुसार लंबी भुजाएं उत्तम पुरुषों की होती हैं।
भद्रबाहु ने वैराग्यपूर्वक श्रुतधर आचार्य यशोभद्र के पास वी. नि. 139 (वि. पू. 331) में मुनि-दीक्षा ग्रहण की। गुरु के पास 17 वर्ष तक रहकर उन्होंने आगमों का गंभीर अध्ययन किया। पूर्वों की संपूर्ण श्रुतधारा को आचार्य यशोभद्र से ग्रहण करने में वे सफल हुए। आचार्य यशोभद्र के बाद धर्मसंघ का दायित्व संभूतविजय के कंधों पर आया। संभूतविजय का शासनकाल 8 वर्ष का था। संभूतविजय के स्वहस्त दीक्षित बुद्धिमान शिष्य स्थूलभद्र थे। भद्रबाहु संभूतविजय के सतीर्थ्य बंधु थे। स्थूलभद्र से वय ज्येष्ठ और संयम पर्याय में ज्येष्ठ होने के कारण भद्रबाहु का अनुभव ज्ञान अधिक परिपक्व था। उनके पास आगम ज्ञान और पूर्व ज्ञान का अक्षय भंडार था। उस समय केवल श्रमण स्थूलभद्र एकादशागम के धारक थे। उनका दृष्टिवाद का अध्ययन अवशिष्ट था। वह पूर्वांशों के ज्ञाता भी नहीं थे। गुरु-शिष्य परंपरा के आधार पर आचार्य संभूतविजय के बाद श्रमण स्थूलभद्र का क्रम होते हुए भी महामेधावी मुनि भद्रबाहु ने वी. नि. 156 वि. पू. 314) में 62 वर्ष की उम्र में आचार्य पद का दायित्व संभाला था।
परिशिष्ट पर्व के अनुसार श्रुतधर आचार्य यशोभद्र द्वारा आचार्य पद पर शिष्य संभूतविजय और भद्रबाहु दोनों की नियुक्ति एक साथ की गई थी। अवस्था में ज्येष्ठ होने के कारण यह दायित्व पहले संभूतविजय ने संभाला। उनके बाद भद्रबाहु धर्मसंघ के अग्रणी बने।
जिनशासन आचार्य भद्रबाहु जैसे सामर्थ्य संपन्न, श्रुतसंपन्न, अनुभव संपन्न व्यक्तित्व को पाकर धन्य हो गया, कृतार्थ हो गया।
*आचार्य भद्रबाहु के विराट व्यक्तित्व व उनकी शिष्य सम्पदा* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*भाव द्वारा परिवर्तन*
भावना के द्वारा शारीरिक परिवर्तन होते हैं । उसके द्वारा आदतों का परिवर्तन भी किया जा सकता है ।ह्रदय की धडकन को कम करने के लिए हल्का- फुलका होने की भावना करो, वह कम हो जायेगी ।
ह्रदय की धडकन को बढाने के लिए दौडने की भावना करो, वह बढ जाएगी ।
भावना के द्वारा अनेक परिवर्तन किए जा सकते हैं । अपने रंग - रुप को बदला जा सकता है । भद्दा सुन्दर बन सकता है । अच्छे भाव की पुनरावृति से सौंदर्य बढ जाता है ।
11 मई 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 52📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
*लावणी के पद्यों में प्रयुक्त तेरापंथ धर्मसंघ के प्रेरक व्यक्तित्व*
*19. सेवाभावी...*
मुनि चंपालाल जी मेरे (ग्रंथकार आचार्यश्री तुलसी) ज्येष्ठ भ्राता होने के कारण *'भाईजी महाराज'* और अपनी विशिष्ट सेवाभावना के कारण सेवाभावी का अलंकरण प्राप्त कर *'सेवाभावीजी'* के नाम से प्रसिद्ध थे।
सेवाभावीजी सेवा को अपना आत्मधर्म समझते थे। बालक, युवा या वृद्ध कोई भी साधु हो, वे जिसकी सेवा का दायित्व संभाल लेते, उसे सर्वथा निश्चिंत बना देते। रुग्ण व्यक्ति के लिए वे एक प्रकार से 'पीहर' थे। स्त्री पीहर (पितृघर) जा कर स्वयं को सुरक्षित अनुभव करती है, वैसे ही रुग्ण व्यक्ति उनके पास स्वयं को सुरक्षित अनुभव करता था। कठिन से कठिन बीमारी में भी उनकी सहानुभूति और सेवाभावना व्यक्ति को आश्वस्त कर देती थी।
सेवाभावीजी श्रमशील साधु थे। उन्हें यात्रा करने का बहुत शौक था। वे कई बार कहते-- बैठे-बैठे पैर घायल हो रहे हैं। शरीर में जब तक चलने का सामर्थ्य है, तब तक यात्रा हो सकती है। बुढ़ापा आने के बाद यात्रा कैसे होगी?
सेवाभावीजी की रुचि के कामों में एक काम था गोचरी। कोई भावना भानेवाला मिल जाता तो वे सर्दी-गर्मी, दूर-नजदीक स्थान की परवाह किए बिना गोचरी करते। इसी प्रकार वृद्ध या बीमार को दर्शन देने का प्रसंग आता तो वे किंचित् भी आलस्य नहीं करते थे। तपस्या और संथारे में भी वे व्यक्ति को पूरा आध्यात्मिक सहयोग देते थे।
आर्थिक दृष्टि से संपन्न परिवारों के लोग उनको जितना चाहते थे, साधारण व्यक्ति भी उनके उतने ही भक्त थे। जिस व्यक्ति से कोई बोलना तक पसंद नहीं करता, वह उनका श्रावक कहलाता था।
सेवाभावीजी की लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती रही। उनका स्वर्गवास होने के बाद अनुभव हुआ कि लोगों के दिलों में उनका कितना स्थान था। वे आचार्य के भाई थे, इस कारण उनका सम्मान हो सकता था। किंतु उन्होंने अपनी विशेषताओं के कारण अपना स्थान बनाया। अब तक भी लोग उन्हें भूल नहीं पाए हैं।
*धर्मसंघ के और प्रेरक व्यक्तित्वों* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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News in Hindi
👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 8 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - शिकारीपाड़ा*
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दिनांक - 11/05/2017
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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