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वास्तविक सौंदर्य
"दुर्गन्ध पैदा करने वाले इन खाद्यान्नों से बनी हुई चमड़ी पर आप इतने फिदा हो रहे हो तो...."
जैन धर्म में कुल 24 तीर्थांकर हो चुके हैं। उनमें एक राजकन्या भी तीर्थंकर हो गयी, जिसका नाम था मल्लियनाथ। राजकुमारी मल्लिका इतनी खूबसूरत थी कि कई राजकुमार व राजा उसके साथ ब्याह रचाना चाहते थे लेकिन वह किसी को पसंद नहीं करती थी आखिरकार उन राजकुमारों व राजाओं ने आपस में एकजुट मल्लिका के पिता को किसी युद्ध में हराकर उसका अपहरण करने की योजना बनायी।
मल्लिका को इस बात का पता चल गया। उसने राजकुमारों व राजाओं को कहलवाया कि 'आप लोग मुझ पर कुर्बान हैं तो मैं भी आप सब पर कुर्बान हूँ। तिथि निश्चित करिये। आप लोग आकर बातचीत करें। मैं आप सबको अपना सौंदर्य दे दूँगी।"
इधर मल्लिका ने अपने जैसी ही एक सुन्दर मूर्ति बनवायी एवं निश्चित की गयी तिथि से दो-चार दिन पहले से वह अपना भोजन उसमें डाल देती थी। जिस महल में राजकुमारों व राजाओं को मुलाकात देनी थी, उसी में एक ओर वह मूर्ति रखवा दी गयी। निश्चित तिथि पर सारे राजा व राजकुमार आ गये। मूर्ति इतनी हूबहू थी कि उसकी ओर देखकर राजकुमार विचार ही कर रहे थे कि 'अब बोलेगी... अब बोलेगी....' इतने में मल्लिका स्वयं आयी तो सारे राजा व राजकुमार उसे देखकर दंग रह गये कि 'वास्तविक मल्लिका हमारे सामने बैठी है तो यह कौन है?"
मल्लिका बोलीः "यह प्रतिमा है। मुझे यही विश्वास था कि आप सब इसको ही सच्ची मानेंगे और सचमुच में मैंने इसमें सच्चाई छुपाकर रखी है। आपको जो सौंदर्य चाहिए वह मैंने इसमें छुपाकर रखा है।" यह कहकर ज्यों ही मूर्ति का ढक्कन खोला गया, त्यों ही सारा कक्ष दुर्गन्ध से भर गया। पिछले चार-पाँच दिन से जो भोजन उसमें डाला गया था, उसके सड़ जाने से ऐसी भयंकर बदबू निकल रही थी कि सब 'छि...छि...छि...' कर उठे।
तब मल्लिका ने वहाँ आये हुए राजाओं व राजकुमारों को सम्बोधित करते हुए कहाः "भाइयो! जिस अन्न, जल, दूध, फल, सब्जी इत्यादि को खाकर यह शरीर सुन्दर दिखता है, मैंने वे ही खाद्य-सामग्रियाँ चार-पाँच दिनों से इसमें डाल रखी थीं। अब ये सड़कर दुर्गन्ध पैदा कर रही हैं। दुर्गन्ध पैदा करने वाली इन खाद्यान्नों से बनी हुई चमड़ी पर आप इतने फिदा हो रहे हो तो इस अन्न को रक्त बनाकर सौंदर्य देने वाला वह आत्मा कितना सुंदर होगा।"
मल्लिका की इस सारगर्भित बातों का राजा एवं राजकुमारों पर गहरा असर हुआ और उन्होंने कामविकार से अपना पिण्ड छुड़ाने का संकल्प किया। उधर मल्लिका संत-शरण में पहुँच गयी और उनके मार्गदर्शन से अपने आत्मा को पाकर मल्लियनाथ तीर्थंकर बन गयी। आज भी मल्लियनाथ जैन धर्म के प्रसिद्ध उन्नीसवें तीर्थंकर के रूप में सम्मानित होकर पूजी जा रही हैं।
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*आॅंसू पोछने वाले हाथों की गरिमा कुछ और होती है: उपाध्याय प्रवीण ऋषी
- जहाॅं मनुष्य का जन्म होता है, वो मनुष्य गति । जहाॅं प्राणीयों का जन्म होता है, वो तिर्यंच गति । किसी केा इन्सान बनाने का, बुध्दीमान बनाने का सामथ्र्य कैसे प्राप्त होता है, हम जानते है । किसी को भगवान बनाने का सार्मथ्य ज्ञान, श्रध्दा या तप से प्राप्त नही होता है । वैयावच्च से दुसरों का दुःख दूर करने का, ओरों को भगवान बनाने का सामथ्र्य प्राप्त होता है ।
सेवा नर्स करती है, माॅं भक्ति करती है । जरूरत मंद समझकर की तो सेवा होती है तथा भगवान समझकर वैैयावच्च में भक्ति की जाती है ।
*भक्ति भाव से दुसरें का दुःख दूर करने से ओंरो को भगवान बनाने का सार्मथ्य आता है । महावीर हाॅस्पीटल में गरिबों के आॅंसू पोंछेे जाते है वो भगवत्ता का मंदीर है । आॅंसू पोछने वाले हाथों की गरिमा कुछ और होती है । आप भगवत्ता के मंदिर के पुजारी हो । आप सौभाग्यषाली है, ये सौभाग्य परम दुर्लभ है ।*
वैयावच्च से कर्म निर्जरा होती है साथ ही पुण्यबंध भी होता है । केवल निर्जरा हुयी तो सिध्दी मार्ग पर बछते है । निर्जरा के साथ पुण्यार्जन हुआ तो तीर्थंकर नामकर्म का बंध होता है । कर्जा चुकाते 2 साहुकार बन जाते है ।
प्रभु के 2500 वी निर्वाण शताब्दी वर्ष में बहोत से कार्य हुअे । ज्यादातर समारोह प्रसीध्दि प्राप्त करने के लिए हुए। लेकिन शताब्दी वर्ष से प्रारंभ हुआ महावीर हाॅस्पिटल का जनसेवा के कार्य रचनात्मक रूप लेते हुये अविरत चल रहा है ।
उपाध्यायश्री जी ने मेडीकल क्षेत्र में अधुनिक विज्ञान और प्रभु महावीर के साधना मार्ग का दैनंदिन जीवन में संगम कराने हेतु मार्गदर्षन करते हुये कहा की *सायन्स के साथ साधना जुडी तो अभूतपूर्व क्रांती हो सकती है । इसके लिए रिसर्च कराने की आवष्यकता पर सुझााव दिये ।*
उन्हों ने कहा, अश्टमंगल और पुरुषाकार पराक्रम ध्यान साधना के माध्यम से हजारों कॅन्सर के मरीजों पर उपचार किये गये है । *साधना के साथ वैज्ञानीक रिसर्च हुआ तो वैश्विक मान्यता मिल सकती है ।
स्वैच्छीक सेवा कर विना उपयोग की दवाइयाॅं एकत्रीत करने व उसका उपयोग में लाने के उपक्रम में युवा जुडे ऐसा सुझाव उपाध्यायश्री ने दिया ।
उपाध्याय प्रवीण ऋषी
*22 मई 2017 - महावीर हाॅस्पिटल, कसाब टॅंक*, हैदराबाद।
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हथौड़े ने चाभी से पूछा कि मैं तुमसे ज्यादा शक्तिशाली हूँ, लेकिन फिर भी मुझे ताला तोड़ने में बहुत समय लगता है और तुम इतनी छोटी हो फिर भी इतनी आसानी से मजबूत ताला कैसे खोल देती हो!*
*चाभी ने मुस्कुरा कर कहा कि तुम प्रहार करते हो लेकिन मैं ताले के अंतर्मन को छूती हूँ और ताला खुल जाया करता है..!!*
_*आप कितने भी शक्तिशाली हों लेकिन जब तक आप लोगों के दिल में नहीं उतरेंगे तो सम्मान अधूरा है.!*_
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