06.06.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 06.06.2017
Updated: 07.06.2017

Update

👉 मंगलुरु - महासभा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष संगठन यात्रा पर
👉 चेन्नई - "टेक्नोलॉजी का ज्ञान बनेगा सशक्त पहचान" कार्यशाला एवं "गुरु महाश्रमण कलात्मक प्रतियोगिता" का आयोजन
👉कालीकट - महासभा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष संगठन यात्रा पर
👉 बैंगलोर - महाश्रमण अष्टकम पर आधारित कलात्मक प्रतियोगिता आयोजित
👉 बैंगलोर - कैसे बनाये घर के वातावरण को कर्फ्यू मुक्त

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*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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News in Hindi

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 74* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*तेजोमय नक्षत्र आचार्य स्थूलभद्र*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

राजा नंद के विचारों में कई उतार-चढ़ाव आए। मगधेश्वर की अंतश्चेतना के दर्पण में अमात्य का विश्वासघाती रूप एक बार भी प्रतिबिंबित नहीं हुआ। बुद्धि उन्हें बार-बार प्रेरित कर रही थी वह एक बार इस विषय की विश्वस्त जानकारी प्राप्त करें। स्वच्छ अंतश्चेतना और जटिल तर्क पाशबद्ध मेधा के संघर्ष में बुद्धि की विजय हुई। राजा नंद द्वारा निर्देश पाकर गुप्तचर अमात्य के घर पहुंचा वह अपने लक्षित भेद की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लौटा और उसने राजा नंद के सामने आंखों देखा विवरण प्रस्तुत किया।

महामात्य के लिए मौत की घंटी बजने लगी। जिस मंत्री को राजा का पूर्ण विश्वास प्राप्त था, उसी मंत्री का रूप राजा की आंखों में संदेहास्पद बन गया। शकडाल सच्चाई के पथ पर होते हुए भी उसके लिए वातावरण का उल्टा चक्र घूमना प्रारंभ हुआ। वर्षों से संचित यश सूर्य को कालिमा का राहु ग्रसने का प्रयास कर रहा था। मंत्री के घर पर प्राप्त राजसम्मानार्ह सामग्री ने नंद के हृदय को पूर्णतः बदल दिया। कवि की यह अनुभूतिपूर्ण वाणी सत्य प्रमाणित हुई—
*राजा योगी अगन-जल इनकी उलटी रीत।*
*करते रहिए परशराम-ए थोड़ी पाले प्रीत।।*

बलिदान हो जाने वाले अमात्य के प्रति भी राजा का विश्वास डोल गया। चिंतन के हर बिंदु पर अमर्त्य का कुटिल हो उधर-उभर कर राजा नंद के सामने आ रहा था।

प्रातःकालीन क्रियाकलाप से निवृत्त होकर शकडाल राजयसभा में पहुंचा। नमस्कार करते समय राजा की मुखमुद्रा को देखकर महामात्य चिंता के महासागर में डूब गया। वह जानता था, राज प्रकोप की परिणति कितनी भयंकर होती है। समग्रता से अपने परिवार के भावी विनाश का भीषण रूप उसकी आंखों में तैरने लगा। अपकीर्ति से बचने और परिवार को विनाशलीला से बचा लेने के लिए अपने प्राणोत्सर्ग के अतिरिक्त कोई मार्ग अमात्य की कल्पनाओं में नहीं था। उसने अपने घर आकर श्रीयक से कहा "पुत्र! अपने परिवार के लिए किसी पिशुन के प्रयत्न ने संकट की घड़ी उपस्थित कर दी है। हम सब को मौत के घाट उतार देने का राजकीय आदेश किसी भी क्षण प्राप्त हो सकता है। परिवार की सुरक्षा और यश को निष्कलंक रखने के लिए मेरे जीवन का बलिदान आवश्यक है। यह कार्य पुत्र, तुम्हें करना होगा, अतः मैं जिस समय राजा के चरणो में नमस्कार हेतु तू झुकूं उस समय निश्शंक होकर, अंगज! तीव्र असिधारा से मेरा प्राणान्त कर देना। इस समय पितृ-प्राणों का व्यामोह अदूरदर्शिता का परिणाम होगा।"

पिता की बात सुनकर श्रीयक स्तब्ध रह गया। दो क्षण रुककर बोला "तात्! पितृ-हत्या का यह जघन्य कार्य मेरे द्वारा कैसे संभव हो सकता है?

*शकडाल ने अपने पुत्र को कैसे समझाया और आगे क्या घटित हुआ...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 74📝

*संस्कार-बोध*

*प्रेरक व्यक्तित्व*

*संस्कारी श्रावक*

*39. लाला बिरधी तेरापंथ...*

लाला बिरधीचंद मूलतः हरियाणा के थे। व्यवसाय की दृष्टि से वे दिल्ली में जाकर बस गए। दिल्ली के प्रथम कोटि के श्रावकों में उनकी गणना की जा सकती है। लाला बिरधी धर्म और धर्मगुरु के प्रति जितने आस्थावान थे, उतने ही तत्त्व के जानकार थे। तेरापंथ के दान-दया विषयक सिद्धांतों का उन्हें गहरा ज्ञान था। तत्त्वज्ञान विषयक अनेक ढालें उन्हें याद थीं। वे उनका बराबर स्वाध्याय करते थे। लाला स्वयं गीत बनाते थे और गाते थे। गिरधारीलाल, नानकचंद आदि अपने पुत्रों को भी उन्होंने धार्मिक दृष्टि से संस्कारी बना दिया। नानकचंद का तत्त्वज्ञान भी अच्छा था।

जयाचार्य मुनि अवस्था में दिल्ली गए थे। वहां उन्होंने थोड़े समय में बहुत काम किया। उनके बाद दिल्ली जाने का क्रम एक बार छूट गया। कालूगणी के युग में लाला बिरधी आदि कुछ श्रावकों ने विशेष अनुरोध किया और अपनी जिम्मेवारी पर साधुओं को वहां ले गए।

लाला बिरधी के पास रतन नाम का एक नौकर था। उन्होंने उसे कासीद के रूप में संतों के साथ रखा। उसे गोचरी-पानी आदि विधियों का प्रशिक्षण देकर अपने काम में दक्ष बना दिया। जो व्यक्ति साधु-सतियों के साथ रहे, वह उनकी चर्या या विधि से परिचित ही न हो तो उपयोगी नहीं बन सकता। इस संदर्भ में एक प्राचीन प्रसंग अनुश्रुत है—

एक श्राविका आचार्य भिक्षु के पास जाती और कहती संतो को मेरे घर गोचरी के लिए भेजें। उसने कई बार आग्रहपूर्ण अनुरोध किया। आचार्य भिक्षु ने संतों को उसके घर गोचरी जाने का निर्देश दिया। संत गए। श्राविका के घर का दरवाजा बंद था। संत लौट आए। वे लगातार चार दिनों तक गए। दरवाजा खुला नहीं मिला। इधर वह अपनी भावना लेकर पुनः आचार्य भिक्षु के पास गई तो आपने कहा—
दीखत दीखै पूठरी,
पगां में थारै कड़ी।
किवाड़ जड़ नै भावना भावै,
साधुजी कांई ऊपर स्यूं पड़ी?

तुम घर का दरवाजा बंद रखते हो और साधुओं को गोचरी के लिए बुलाना चाहती हो। क्या साधु ऊपर से आएंगे? श्राविका को अपने अज्ञान का अनुभव हो गया।

लाला बिरधी ने कासीद रतन को इतना अच्छा ज्ञान दिया कि वह पक्का तेरापंथ श्रावक बन गया। दिल्ली जाने वाले साधु-साध्वियों की उसने बहुत उपासना की।

*धर्मसंघ की सेवा को अपना सौभाग्य मानने वाले विष्णुदयालजी गोयल* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 ब्यावर - तेरापंथी सभा का वार्षिक अधिवेशन
👉 जींद - लाइफ मैनेजमेंट कार्यशाला का आयोजन
👉इस्लामपूर - विश्व पर्यावरण दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
👉 भीलवाड़ा - विश्व पर्यावरण दिवस पर चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन
👉 इस्लामपूर - विश्व पर्यावरण दिवस पर कार्यक्रम आयोजित

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👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 2 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - उत्तरपाड़ा, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*

दिनांक - 06/06/2017

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  1. आचार्य
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