11.06.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 11.06.2017
Updated: 13.06.2017

Update

#London #BhagwanChandraPrabh लंदन के म्यूजियम में विराजमान भगवान श्री चंद्रप्रभु जी की अति दुर्लभ बहुमुखी प्रतिमा, यह प्रतिमा भगवान के समवसरण में विराजमान होने की धोतक है, क्यूंकि समवसरण में विराजमान भगवान को दसों दिशाओं से देखा जाता है तो भी भगवान की मुखाकृति स्पष्ट दिखती है ।इस तरह की कलाकृति की प्रतिमाऐं अब नही बनती है। #share

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#Jainism #Jain #Digambara #Nirgrantha #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #RishabhaDev #Ahinsa #Nonviolence

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#waow #share विदिशा (म. प्र.) के हरिपुरा क्षेत्र में नाले की खुदाई करते समय प्राप्त भगवान पार्श्वनाथ जी की 4 फीट खडगासन प्राचीन प्रतिमा को श्री शीतलनाथ मंदिर जी में स्थापित किये जाने हेतु पहुचाएं जाने पर जैन समाज में हर्ष व प्रतिमा के दर्शन हेतु लगी लोगों की भारी भीड़ -विश्व जैन संगठन #AntiquityOfJainism

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#waow #share विदिशा (म. प्र.) के हरिपुरा क्षेत्र में नाले की खुदाई करते समय प्राप्त भगवान पार्श्वनाथ जी की 4 फीट खडगासन प्राचीन प्रतिमा को श्री शीतलनाथ मंदिर जी में स्थापित किये जाने हेतु पहुचाएं जाने पर जैन समाज में हर्ष व प्रतिमा के दर्शन हेतु लगी लोगों की भारी भीड़ -विश्व जैन संगठन #AntiquityOfJainism

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#waow #share विदिशा (म. प्र.) के हरिपुरा क्षेत्र में नाले की खुदाई करते समय प्राप्त भगवान पार्श्वनाथ जी की 4 फीट खडगासन प्राचीन प्रतिमा को श्री शीतलनाथ मंदिर जी में स्थापित किये जाने हेतु पहुचाएं जाने पर जैन समाज में हर्ष व प्रतिमा के दर्शन हेतु लगी लोगों की भारी भीड़ -विश्व जैन संगठन #AntiquityOfJainism

शाम को एक दिन वैय्यावृत्ति कर रहे थे कि चर्चा के दौरान #आचार्यविद्यासागर जी ने कहा-आज दो अजैन बच्चियाँ हमारे पास आई और कहने लगी.. 😳🙂

आचार्य श्री जी ये लोग हम लोगो को नीचे से आपके दर्शन करने नहीं आने देते और दो पत्र पैरों के पास रख दिये।उनकी अच्छी भावना लगी पत्र को मैनें पढ़ा ऐसा लगा कोई जैन कवि कि भाषा हो पर वे तो रघुवंशी समाज की थी।उन्होंनें अंत में पद्य में दो पंक्ति लिखी, सुना है आप पत्र नहीं पढ़ेंगे पर मेरी भावना है आप संत ही नहीं कृपानिधान भी ह है अतः मुझे विश्वास है कि आप मेरी प्रार्थना पर अवश्य ध्यान देंगे और मुझे आशिर्वाद देंगे।देखो लोगो कि कितनी पवित्र भावनाएँ होती है ये जैन लोग, कार्यकर्ता समझते नहीं है इन्हें थोड़ा विवेक से कार करना चाहिए

वे पंक्तियाँ✨-(जो उन बहनों ने आचार्य श्री जी के लिए लिखी थी)

एक पथिक चल रहा निरंतर
रखकर अपना वेश दिगम्बर, एक पथिक..

*न चाह उसको छाँह की
*वो खुश है सबको छाँव देकर
*न कामना है विश्राम की
*वो चल रहा विश्राम देकर, एक पथिक..

*ग्रीष्म की विभिषिका भी
*नत है उसके सामने
*झुक रहा है सूर्य भी
*रोज उसको देखकर*।एक पथिक...

*मोह बंधन से दूर है
*वो ज्ञान का भंडार है
*कुबेर भी है भीख माँगे
*कोष उसका देखकर। एक पथिक

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प्रभु देव तुम्हारे पवित्र मुख से, निःसृत जो शीतलवाणी!
जन-मन के मल को धोती, अतः कहाती जिनवाणी|
जयवंतों में जग में तब तक, जब तक सूरज-चाँद रहे!
शीश नवाते कर्म हरो माँ, अब तक हम विषयांध रहे!!

श्रुतपञ्चमी महापर्व है -इस पावन दिन आचार्य धरसेन सूरी के शिष्य आचार्य भूतबली स्वामी ने षट्खण्डागम ग्रंथराज का लेखन पूर्ण किया था। श्रुतपंचमी पर्व 2100 से अधिक वर्षों से भारत में मनाया जाता रहा है। आचार्य भूतबली जी व पुष्पदंत जी आचार्य धरसेन स्वामी के शिष्य थे,जिनको आचार्य श्री ने सिद्धक्षेत्र गिरनार जी में वर्धमान महावीर स्वामी की दिव्य देशना में आए ज्ञान का साररुप प्रदान किया था। श्रुतपञ्चमी पर्व के दिन जिनालय में जिनवाणी माता की पूजन,स्तुति की जाती है,व जीर्ण-शीर्ण जिनवाणी को जिल्द लगाकर पुनः विनयपूर्वक विराजित किया जाता है। श्रुत विनय की महिमा निराली है,ग्वाले ने माँ जिनवाणी की रक्षा की उसके फलस्वरूप आगामी भव में वह आचार्य कुन्दकुन्द बनें। पूर्वाचार्य भगवंतों के हमपर अनन्य उपकार है जो अपनी साधना के अमूल्य समय में से उन्होंने समय निकालकर श्रुतग्रन्थों की रचना की,हमें उनका उपकार चुकाने के लिए नित्य कम से कम 15 से 20 मिनट स्वाध्याय करना चाहिए। जहाँ तक संभव हो सके स्वाध्याय मूल आर्ष ग्रन्थों से ही करे जिनके रचयिता दिगंबराचार्य हो,पंडितों द्वारा लिखित शास्त्र टीकाएँ मूल नहीं होती उनमें वह स्वविवेक के आधार पर विषय मिला देते है व मुख्य पक्ष गौण हो जाता है।

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News in Hindi

#आचार्य_ज्ञानसागर जी मुनिराज ससंघ का मंगल विहार बद्रीनाथ से ऋषिकेश हेतु चल रहा है। विहार के दौरान सड़क किनारे विराजमान आचार्य श्री, अभी महाराज जी का स्वास्थ्य ढीला चल रहा हैं.. जल्दी स्वस्थ होने की भावना करे!! #AcharyaGyansagar

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