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उनकी महत्वाकांक्षा को ठेस तो लगी, लेकिन संतान की बेहतरी के लिए गृह त्याग की अनुमति दे दी।
किसी भी परीक्षा में टॉपर बनने के बाद शायद हर छात्र का सपना सुख-सुविधाओं वाला जीवन चुनने का होता है, लेकिन वर्शील शाह 12वीं में 99.9 पर्सेंटाइल लाने के बाद सन्यास अपनाकर संत मुनिराज सुवीर्य रत्न विजयजी महाराज बन चुके हैं। उनकी जीवन शैली बदल चुकी है। अब वे जमीन पर ही सोएंगे और सूर्यास्त होने के बाद पानी भी नहीं पिएंगे। इसके अलावा वो सभी कठिन तप में ही जीवन व्यतीत करेंगे।
पुष्करवाणी ग्रुप ने जानकारी लेते हुए बताया कि अपनी दादी भानूमतिबेन कनुभाई शाह के लाडले रहे वर्शील का बचपन से ही आध्यात्म की ओर झुकाव रहा। वे माता-पिता तथा बहन के साथ अक्सर देरासर जाते थे तथा जिन शासन के प्रवचनों को बड़े ध्यान से सुनते थे। वर्शील से छह साल बड़ी उनकी बहन जैनी जिगरभाई शाह ने भी 12वीं कॉमर्स बोर्ड की परीक्षा में 99.99 पर्सेंटाइल से टॉप किया था।
कठिन मार्गों से गुजरना होगा, जमीन पर सोएंगे, सूर्यास्त के बाद पानी भी नहीं पिएंगे
अब तक सांसारिक जीवन में सभी भौतिक सुख साधनों के बीच पले-बढ़े युवा संत आजीवन नंगे पांव चलेंगे। आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे। सदैव प्रकृति के अनुसार जीवन का अनुसरण करेंगे। आजीवन उबला हुआ पानी ही पिएंगे। आजीवन गुरु के सानिध्य में रहेंगे। सदैव गुरू के निर्देशों का पालन करते हुए संयम के मार्ग पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ेंगे।
कुछ ऐसी होगी उनकी दिनचर्या-
जैन धर्म के मूल उद्देश्यों का पालन करेंगे, सूर्यास्त के बाद पानी तक नहीं पिएंगे, सात्विक आहार लेंगे। सदैव उबला हुआ पानी पिएंगे। अपने पास रुपए-पैसे, बैंक अकाउंट, जगह-जमीन, धन-दौलत कुछ नहीं रखेंगे। विद्युत तथा आधुनिक उपकरणों का प्रयोग नहीं करेंगे। सदैव श्वेत वस्त्र धारण करेंगे, कुदरत को नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी साधन का प्रयोग नहीं करेंगे। पांच महाव्रतों का पालन करेंगे। मन, कर्म तथा वचन से अहिंसा का पालन करेंगे। कभी असत्य नहीं बोलेंगे। अपरिग्रह का पालन करेंगे यानी जीवन में किसी चीज का संग्रह नहीं करेंगे। बिना पूछे किसी का सामान नहीं छुएंगे। ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे। भूमि पर शयन करेंगे। घर-घर से गऊचरी लेकर आहार के रूप में ग्रहण करेंगे। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर साधना उपासना करेंगे। रात में जल्दी से जाएंगे। केवल चातुर्मास में चार महीने एक जगह रहेंगे। बाकी महीनों में सदैव विचरण करते रहेंगे। घर कभी नहीं जाएंगे। किसी भी महिला को स्पर्श नहीं करेंगे।
आयकर अफसर पिता चाहते थे देश की सेवा करे वर्शील, लेकिन इच्छा सुन दे दी अनुमति
वर्शील के पिता जिगर कनुभाई शाह आयकर अधिकारी हैं और मां अमीबेन गृहिणी। मां ने तो संयम का मार्ग अपनाने की इच्छा सुनते ही वर्शील को अनुमति दे दी, लेकिन पिता चाहते थे कि वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर देश की सेवा करे। लेकिन, बेटे की प्रबल इच्छा देखते हुए दीक्षा की अनुमति दे दी। जिगरभाई कहते हैं कि उनकी महत्वाकांक्षा को ठेस तो लगी, लेकिन संतान की बेहतरी के लिए गृह त्याग की अनुमति दे दी। गुजरात के खेड़ा जिले के बारसद गांव के मूल निवासी वर्शील शाह के दादा कनुभाई हीरालाल शाह 70 वर्ष पहले गांव से अहमदाबाद कपड़का व्यवसाय करने आए थे। बाद में वहीं, बस गए।
सीए, सीएस और एमबीए भी हैं कल्याण रत्नी जी
वर्शील के गुरु मुनिराज कल्याण रत्न विजयजी 9 से 28 वर्ष की उम्र के 23 मुमुक्षुओं काे दीक्षा दे चुके हैं। इनमें सीए, सीएस और एमबीए जैसे प्रोफेशनल्स भी हैं। उन्होंने 14 साल पहले दीक्षा ली थी। वे अपने प्रवचनों से श्रावक-श्राविकाओं को संसार के वास्तविक स्वरूप का बोध कराते हैं।
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