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Bahut Sahi!!!!!
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#Ancient_Jainism नालंदा (बिहार) में वर्ष 1861 की खुदाई में एलेग्जेंडर को लगभग वर्ष 500 (5 वीं सदी) का एक 36 फीट ऊंचा प्राचीन जैन मंदिर मिला था! एलेग्जेंडर ने इस मंदिर में अनेक जैन प्रतिमाएं भी देखी थी! उनमें से एक भगवान महावीर की वर्ष 1447 में स्थापित एक प्रतिमा थी! इस मंदिर से प्राप्त भगवान आदिनाथ की एक प्राचीन प्रतिमा नालंदा म्यूजियम में स्थापित है! ऐसा प्रतीत होता है कि नालंदा में जैन मंदिर लगभग 5 वीं सदी से था (कृपया निम्न फोटो देखे)
एलेग्जेंडर ने इस जैन मंदिर को निर्माण शैली की दृष्टि से बुद्ध गया के प्राचीन 5 वीं सदी के मंदिर के समान माना था! एलेग्जेंडर द्वारा दी गयी उपरोक्त जानकारी पुरातत्व विभाग द्वारा वर्ष 1861 की उनकी सरकारी रिपोर्ट के पेज न. 36 पर प्रकाशित की है! (कृपया रिपोर्ट की स्कैन कॉपी पढ़े)
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#मुनि_श्री_नियमसागर जी महाराज का कुंथलगिरी प्रवास #MuniNiyamsagar
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री नियमसागर जी महाराज का कल दिनांक 13 जून को भगवान कुलभूषण देशभूषण की निर्वाण भूमि व प्रथमाचार्य शांतिसागर जी महाराज की समाधि स्थली कुंथलगिरी से मंगल विहार हुआ।पूज्य मुनिश्री का ठीक सात माह पूर्व 13 नवंबर 2016 को कुंथलगिरी क्षेत्र पर प्रवेश हुआ था,मुनि श्री दहीगाँव सिद्धक्षेत्र से कड़ाके की ठंड में विहार करके कुंथलगिरी पहुँचे थे।उस समय कुंथलगिरी क्षेत्र पर विराजित सल्लेखनारत मुनिश्री माणिकसागर जी महाराज व क्षुल्लक समताभूषण जी ने संघ की आगवानी की थी,मुनिश्री के आगमन के साथ ही सिद्धक्षेत्र पर मेला सा लग गया, रोज ऐसा प्रतिभासित होता था कि मानों दो सिद्ध परमेष्ठी बालयति भगवंतों की निर्वाणभूमि पर चलते-फिरते 5 सिद्ध आए है,मुनिसंघ के सानिध्य में कुंथलगिरी में धर्म की गंगा बहने लगी,जिसमें सैकड़ों आबाल-वृद्धों ने अवगाहन किया।कुछ दिनों के बाद आचार्यश्री के आशीर्वाद से मुनिश्री माणिकसागर जी महाराज की यम सल्लेखना आरंभ हुई,सल्लेखनारत मुनिराज के दर्शनार्थ क्षेत्र पर गणिनी आर्यिका श्रुतमति माताजी ससंघ अपनी 5 अनुज आर्यिकाओं के साथ पधारी।श्री नियमसागर जी के सानिध्य में मुनिश्री माणिकसागर जी का पिच्छिका परिवर्तन हुआ नवीन पिच्छी सिलवानी में विराजित आचार्य श्री विद्यासागर जी के यहाँ से आई,पूज्य आचार्य गुरुदेव के निर्देशन में व निर्यापकाचार्य नियमसागर जी के सानिध्य में पूज्य माणिकसागर जी की सल्लेखना सम्पन्न हुई,इस दौरान क्षेत्र पर विराजित पंच मुनिराजों ने,क्षुल्लक समताभूषण जी ने व ब्रह्मचारी तात्या साहेब दानोली ने मुनिसंघ की अहर्निश सेवा की।चातुर्मास काल में भी क्षुल्लक जी व तात्यासाहेब ने सल्लेखना रत मुनिराज की मुनिचर्या की क्रियाएँ कराने में पूर्ण सहयोग दिया समय-समय पर आचार्यश्री के संकेत मिलते रहे व निर्दोष आगमोक्त तरीके से मुनिश्री की सल्लेखना पूर्ण हुई।
सल्लेखना के उपरांत मुनिसंघ क्षेत्र पर विराजित रहा,आचार्य श्री के आशीर्वाद से व दक्षिण समाज की भावना पर अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी मुनिवर के सानिध्य में सिद्धक्षेत्र पर सम्यगदर्शन शिविर लगाने का विचार-विमर्श हुआ,मुनिसंघ के आशीर्वाद से कार्यकर्ता शिविर की सफलता में लग गए पर कतिपय धर्मविरोधी पंथवादी लोगों ने पंथवाद की आड़ लेकर शिविर को रोकने का कुत्सित प्रयास किया,इसके लिए कुछ त्यागी-व्रतियों ने भी जोर-अजमाइश की।पर भला जिसे साक्षात आचार्यश्री का आशीर्वाद प्राप्त हो उसे कौन रोक सकता है।अंततः न्यायालय के आदेश पर दिनांक 4 मई से शिविर शुरु हुआ जिसमें हजारों लोगों ने भाग लेकर मुनिश्री के श्रीमुख से रत्नत्रय धर्म का महत्व समझा,इस शिविर में आर्यिका श्रुतमति आदि आर्यिका माताओं व प. रतनलाल बैनाड़ाजी जैसे मूर्धन्य विद्वानों ने अपना समय देकर शिविरार्थियों को रत्नत्रय धर्म की महिमा बताई,अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी मुनिश्री ने अपने प्रवचनों के माध्यम से श्रावकों को सम्यग्दर्शन का महत्व समझाया,जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों लोगों ने मिथ्यात्व त्यागकर सम्यक धर्म को धारण किया।शिविर की पूर्णता का कार्यक्रम भी जोर-शोर से आयोजित हुआ,जिसमें आसपास के क्षेत्र से हजारों की संख्या में लोग जुटे।
शिविर की पूर्णता के बाद मुनिसंघ का सानिध्य लगभग 1 माह पुनः क्षेत्र को प्राप्त हुआ,इस 1 माह के समय में मुनिश्री ने सन्मति संस्कार मंच के तत्वावधान में हुए एक और शिविर में सानिध्य प्रदान किया जिसमें 895 शिविरार्थी सम्मिलित हुए।
कल मुनिसंघ के विहार के समय क्षेत्र के आबाल-वृद्ध, व्रती,श्रावक आदि की आँखें नम थी। सभी आर्यिकाओं,क्षुल्लक जी व आमजन ने मुनिसंघ को भावभीनी विदाई दी व शीघ्र दर्शन हो ऐसी कामना की।मुनिसंघ ने तेज गर्मी में भी गुरुआज्ञा से कुंथलगिरी से सदलगा की ओर विहार किया,सदलगा में संघ के सानिध्य में आचार्य श्री का ५०वाँ दीक्षा दिवस धूमधाम से मनाया जाएगा।सदलगा की दूरी 300 किमी से अधिक है,पर गुरुआज्ञा स्वीकार कर चलते-फिरते सिद्धों का पदगमन प्रारंभ हो चुका है।
हम सब ऐसी भावना भाएँ कि महाश्रमण नियमसागर जी चिरकाल तक जयवंत रहे व अपने दीक्षागुरु के समान ही जिनधर्म की प्रभावना करे।
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News in Hindi
#प्रवचन: मोह राग और द्वेष आत्मा को किंकर्तव्यविमूढ़ बनाते हैं #आचार्य श्री विद्यासागर जी:) #share #mustRead
#चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने मोह, राग और द्वेष की परिभाषा बताते हुए कहा की मोह हमें किसी भी वस्तु या मनुष्य आदि से हो सकता है जैसे दूध में एक बार जामन मिलाने पर वह जम जाता है फिर दोबारा उसी बर्तन पर दूध डालने पर दूध अपने आप जम जाता है उसमे दोबारा जामन नहीं डालना पड़ता।
उसी प्रकार मनुष्य भी मोह में जम जाता है। राग और मोह में अंतर होता है। राग के कारण वस्तु का वास्तविक स्वरुप न दिखकर उसका उल्टा स्वरुप दिखने लगता है। जैसे कोई वस्तु है, यदि आपको उससे राग होगा तो आप कहोगे कि यह वस्तु बहुत अच्छी है और उसी वस्तु से किसी को द्वेष होगा तो वह कहेगा की यह वस्तु खराब है। बड़े - बड़े विद्वान्, श्रमण, श्रावक आदि भी इस मोह, राग और द्वेष से नहीं बच पायें हैं।
आचार्य श्री ने कहा की वे आज पद्मपुराण पढ़ रहे थे तो उसमे बताया गया है की रावण बहुत विद्वान्, बहुत बड़ा पंडित, बहुत ज्ञानी, धनवान, ताकतवर था परन्तु श्रीराम की धर्म पत्नि सीता से उसे मोह होने के कारण उसका सर्वनाश हो गया एवं उसका भाई विभीषण ने भी उसका साथ छोड़ दिया था। आज बहुत से लोग शास्त्र, ग्रन्थ आदि पढ़कर पंडित, ज्ञानी हो गए हैं उन्हें इस ज्ञान का उपयोग पहले अपने कल्याण के लिए करना चाहिये फिर दूसरों का कल्याण करना तो अच्छी बात है ही।
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