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प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
News in Hindi
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 88📝
*संस्कार-बोध*
(दोहा)
*70.*
संवत पैंतालीस शुभ, सन अठ्यासी खास।
डूंगरगढ़ 'तुलसी' सफल, चातुर्मास प्रवास।।
*71.*
पावन 'प्रज्ञापर्व' है, 'योगक्षेम' प्रसंग।
'तुलसी' तेरापंथ की, आभा अतुल अभंग।।
(सोरठा)
*72.*
महाप्रज्ञजी आदि, श्रमण साथ पैंतीस हैं।
महाश्रमणी संवादि विनयवती बासठ सती।।
*60. आस्था की जोत जला...*
आस्था व्यक्ति का सबसे बड़ा संबल है। जिसके मन में आस्था की लौ जल उठती है। उसका जीवन आलोकित हो जाता है। आस्था के आलोक से आचरण का पथ प्रशस्त होता है। आचार-बोध के संगान की उपयोगिता इसी धरातल पर है। आचार पक्ष को पुष्ट करने के लिए संस्कारों की जड़ को सिंचन देना जरूरी है। संस्कार-बोध की रचना का यही उद्देश्य है। जीवनगत जड़ता को दूर करने के लिए इसका अनुशीलन होना चाहिए।
आचार-बोध और संस्कार-बोध ये व्यक्तित्व निर्माण के दो आयाम हैं। निर्माण की प्रक्रिया को गति देने के लिए समय-समय पर प्रायोगिक साधना की अपेक्षा रहती है। ऐसा करने से ही विकास के नए शिखरों पर आरोहण हो सकता है। योगक्षेम वर्ष के अंतर्गत प्रज्ञापर्व की आयोजना व्यक्तित्व निर्माण का एक सामूहिक प्रयोग है। सैद्धांतिक ज्ञान और प्रायोगिक अनुष्ठान इन दो भूमिकाओं के द्वारा एक नया इतिहास का सृजन करना है। यह आयोजन विक्रम संवत 2045, 46 (ईस्वी सन् 1988, 89) में लाडनूं में जैन विश्वभारती के परिसर में हुआ। इस विषय की विशेष जानकारी के लिए पढ़ें *'मैं तिरूं म्हारी नाव तिरै'* पुस्तक के अंतर्गत पांचवां आख्यान *'शासण-सुषमा' (योगक्षेम)*।
*व्यवहार-बोध* के बारे में पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 88* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*सद्धर्म-धुरीण आचार्य सुहस्ती*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
श्रमण भगवान के निर्वाणोत्तर काल में सांभोगिक संबंध विच्छेद की सर्वप्रथम घटना आचार्य सुहस्ती और सम्राट संप्रति के निमित्त से घटित हुई।
दुष्काल के विपिन्न क्षणों में सम्राट संप्रति ने श्रमणों के लिए भिक्षा संबंधी अनेकविध सुविधाएं प्रदान की। सभी प्रकार के व्यापारी वर्ग को सम्राट संप्रति का आदेश था "वे मुक्त भाव से श्रमणों को यथेप्सित द्रव्यों का दान करें, उनका मूल्य मैं दूंगा। मेरे घर का भोजन राजपिंड होने के कारण मुनिजनों के लिए ग्रहणीय नहीं है। सम्राट संप्रति की उदारता के कारण आचार्य सुहस्ती के शासनकाल में शिथिलाचार की प्रवृत्ति प्रारंभ हुई। साधुचर्या में अजागरूक श्रमण मुक्त भाव से सदोष दान ग्रहण करने लगे।
आचार्य महागिरि जब आचार्य सुहस्ती से मिले, और घोर दुष्काल में भी साधुओं को पर्याप्त एवं विशिष्ट भोजन मिलता देखकर आचार्य महागिरि को राजपिंड तथा सदोषआहार की शंका हुई। उन्होंने आचार्य सुहस्ती से समग्र स्थिति को जानना चाहा।
गवेषणा किए बिना ही आचार्य सुहस्ती बोले "यथा राजा तथा प्रजा। प्रजा राजा की अनुगामी होती है। यही कारण है राजा की भक्ति के अनुसार प्रजा में भी धार्मिक अनुराग है। तेली तेल, घृत बेचने वाला घी, वस्त्र के व्यापारी वस्त्र अपने-अपने भंडार से मुनि वर्ग को सभी यथेप्सित वस्तुओं का दान कर रहे हैं।"
आचार्य महागिरि, आचार्य सुहस्ती के उपेक्षा भरे उत्तर से विक्षुब्ध हुए। वे गंभीर होकर बोले "आर्य! आगमविज्ञ होकर भी शिष्यों के मोहवश जानबूझकर इस शिथिलाचार को पोषण दे रहे हो?"
आचार्य महागिरि चरित्रनिष्ठ, उदात्त चिंतक, निर्दोष परंपरा के पक्षपाती आचार्य थे। संघ व शिष्यों का व्यामोह उनके निर्मल मानस में कभी अपना स्थान नहीं पा सका।
गण में शिथिलाचार को पनपने देख उन्होंने तत्काल प्रतिभासंपन्न प्रभावी शिष्य सुहस्ती से भी अपना सांभोगिक (भोजन आदि का व्यवहार) संबंध विच्छेद कर लिया था।
आचार्य सुहस्ती, आचार्य महागिरि को गुरुतुल्य सम्मान देते थे। उनके उपालंभ को सुनकर भी क्षमायाचना की तथा वे पुनः ऐसा नहीं करने के लिए संकल्पबद्ध हुए। आचार्य सुहस्ती की विनम्रता के सामने आचार्य महागिरि झुके। उन्होंने अपना विचार बदला एवं सांभोगिक संबंध की विच्छिन्नता के प्रतिबंध को हटा दिया पर भविष्य में मनुष्य की माया प्रधान प्रवृत्ति का विचार कर अपना आहार-व्यवहार उनके साथ नहीं किया।
सरल, सुविनीत, मृदुस्वभावी, पूर्वज्ञानी गुण संपन्न आर्य सुहस्ती ने महिमाशाली आचार्य महागिरि के सुदृढ़ अनुशासनात्मक व्यवहार से प्रशिक्षण पाकर अपनी भूल का सुधार किया, पर शिष्यगण में पनपते सुविधावाद के संस्कारों का प्रवाह सर्वथा नहीं रुक सका।
*आधुनिक शोध के आधार पर यह घटना सम्राट बिंदुसार के समय की मानी गई है।* विस्तार रूप में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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