26.06.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 26.06.2017
Updated: 27.06.2017

Update

👉 वापी - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 होसपेट - ज्ञानशाला रजत जयंती समारोह आयोजित
👉 कालू- ''संयुक्त परिवार में छिपा है सुखी संसार'' विषय पर कार्यशाला आयोजित
👉 कोयम्बटूर - निर्मल जी बेगवानी ते.यु.प. अध्यक्ष मनोनीत
👉 कोटा: श्री सुनील जी बेगवानी निर्विरोध तेयुप अध्यक्ष निर्वाचित
👉 भागलपुर - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 सरदारशहर - तेयुप शपथ ग्रहण समारोह
👉 इचलकरंजी - योग साधना शिविर का आयोजन
👉 गांधीधाम - साध्वी वृन्द का चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
👉 जगराओं - योग दिवस पर प्रेक्षा योग कार्यशाला
👉 हिसार - तेयुप द्वारा पौधारोपण
👉 नोखा - मुमक्षु मंगल भावना समारोह
👉 चेन्नई: तेरापंथ महिला मंडल, चेन्नई का 51 वां वार्षिक अधिवेशन सम्पन्न श्रीमती कमला देवी गेलडा सर्वानुमति से बनी तेरापंथ महिला मंडल, चेन्नई अध्यक्षा
👉 मंड्या - मुनिश्री का भव्य मंगल प्रवेश

प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢
आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 90📝

*व्यवहार-बोध*

*भाषा*

*8.*
है निरवद्य मधुर मित वाणी,
कार्यसाधिका कल्याणी।
विष-भावित तलवार जीभ है,
वही सुधा की सहनाणी।।

*1. विष-भावित तलवार जीभ है...*

शेर के बच्चे को उसकी मां ने सीख दी— 'बेटा! तेरा पिता जंगल का राजा है। तुझे यहां किसी का भय नहीं है। तू निर्भय होकर घुमा कर। पर एक बात का ध्यान रखना। काले सिर वाला आदमी हमारा दुश्मन है। उससे सावधान रहना।' मां की सीख उसके मन में गहरे तक पैठ गई। आदमी के बारे में वह बहुत कुछ जानना चाहता था, पर उससे कभी उसकी मुलाकात नहीं हुई।

शेर का बच्चा कुछ बड़ा हो गया। वह शेर बन गया। एक दिन जंगल में घूमता-घूमता बस्ती के निकट चला गया। उस दिन गांव से कोई सुथार अपने औजारों के साथ जंगल में लकड़ी काटने आया। दोनों ने एक दूसरे को देखा। शेर को देखते ही आदमी कांप उठा। वह उल्टे पांव गांव की ओर भागा। शेर ने काला सिर देख समझ लिया कि यह वही आदमी है, जिससे सावधान रहने के लिए मां ने कहा था। उसने भी अपना रास्ता बदल लिया। कुछ कदम चलने के बाद शेर ने पीछे मुड़कर देखा। उसने भागते हुए आदमी को देखकर सोचा— यह तो खुद ही डरकर भाग रहा है, इससे क्या डरना?

शेर खड़ा रहा। उसने आवाज देकर आदमी को बुलाया। आदमी डरता-डरता शेर के पास पहुंचा। दोनों ने एक दूसरे से परिचय किया। परिचय के बाद शेर बोला— 'मैंने तुम्हारे बारे में बहुत बातें सुनी हैं। अपनी कोई करतूत दिखा।' आदमी ने कहा— 'इसके लिए मुझे थोड़ा समय दो। तुमने पहले ही हत्थल उठा ली तो मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा।' शेर ने उसको समय दे दिया।

आदमी ने थैले से औजार निकाला। पास में पड़े लकड़ी के कुंदे को छीला। उस में शेर का सिर घुसाया और ऊपर से कीली ठोंक दी। अपना काम पूरा कर आदमी ने शेर से कहा— 'तुम जंगल के राजा हो। तुम्हारे नाम से ही सब कांपते हैं। तुम अपनी शक्ति दिखाओ और इस बंधन से मुक्त होकर बाहर आ जाओ।' शेर ने प्रयत्न किया पर सफलता नहीं मिली। आदमी ने कीली निकाली। शेर मुक्त हुआ। आदमी का कौशल देखकर वह चकित हो गया।

शेर और आदमी बात करते-करते मित्र बन गए। शेर बोला— 'मेरे मन से तुम्हारा भय दूर हो गया। तुम भी मेरी ओर से अभय रहो। तुम जंगल में आते ही हो, मेरे पास भी आते रहो।' उसके बाद वह आदमी नियमित रूप से जंगल में जाता और शेर के साथ थोड़ी देर गपशप कर गांव लौट जाता।

*एक और आदमी की यह दोस्ती कहां तक चली...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢

🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 90* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*सद्धर्म-धुरीण आचार्य सुहस्ती*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

कोमल शय्या पर सोने वाले अवंति सुकुमाल दीर्घकालीन तपस्या के द्वारा कर्म निर्जरा करने में सक्षम थे। दीक्षा के प्रथम दिन ही गुरु से आदेश प्राप्त कर यावज्जीवन अनशनपूर्वक कठोर साधना करने के लिए वहां से प्रस्थित हुए और श्मशान भूमि की ओर बढ़े। उन्हें नंगे पांव चलने का अभ्यास नहीं था। पथ में सुतीक्षण कांटों और कंकरों के प्रहार से उनके कोमल पदतल से रक्तबिंदु टपकने लगे। पथगत बाधाजनित क्लेश को समतापूर्वक सहन करते हुए अवंति सुकुमाल मुनि निर्णीत स्थान पर पहुंचे एवं शमशान में जाकर ध्यानस्थ हो गए। मध्याह्न के तीव्र ताप ने उनकी कड़ी परीक्षा ली। वे पंच नमस्कार मंत्र का स्मरण करने लगे। दिन ढला, रजनी का आगमन हुआ। रात्रि में सुकोमल मुनि के चरणों से टपकी रक्तबूंदों से मिश्रित पथ के धूलकणों की गंध क्षुधार्त्त शिशुओं के साथ मांसभक्षणी जंबुकी को खींच लाई। उसने रक्तप्लावित मुनि के तलवों को चाटा। कृतांत सहोदरा की भांति वह मुनि के वपु का भक्षण करने लगी। चर्म का आवरण चट-चट करता टूटता गया। मास, मेद और मज्जा के स्वाद में लुब्ध श्रृंगालिनी रक्त सनी कशेरुका (पीठ की हड्डी), पर्शुका (पार्श्व की हड्डी), करोटि (मस्तक की हड्डी), कपालास्थियों का भी चर्वण करने लगी। उसके शिशु परिवार ने और उसने मिलकर प्रथम प्रहर में मुनिके पैरों को, द्वितीय प्रहर में जंघा को, तृतीय प्रहर में उदर को और चतुर्थ प्रहर में मुनि के शरीर के ऊपरी भाग का मांसादि निगल लिया।

उत्तरोतर चढ़ती हुई भावना की श्रेणी से मुनि अपने लक्ष्य तक पहुंच गए। धैर्य से भयंकर वेदना को सहते हुए भद्रापुत्र अवंति में उत्पन्न सुकुमाल नलिनी गुल्म विमान में उत्पन्न हुए। देवताओं ने आकर उनका मृत्यु महोत्सव मनाया। महानुभाव! महासत्त्व! कहकर मुनि के गुणों की प्रशंसा की।

अवंति सुकुमार के मुनि बनने के दूसरे ही दिन भद्रापुत्र की पत्नी ने आचार्य सुहस्ती की परिषद में अपने पति को नहीं देखा। उसने वन्दन कर मुनिन्द्र से पूछा "भगवन्! मेरे पति कहां हैं?" सुहस्ती ने ज्ञानोपयोग से अवंति सुकुमाल की पत्नी को समग्र वृतांत सुनाया। भद्रापुत्र की पत्नी रोती बिलखती घर पहुंची और मुनि भद्रापुत्र के स्वर्गवास की सूचना सबको दी।

पुत्रवधू द्वारा अपने पुत्र के स्वर्गवास की सूचना प्राप्त कर भद्रा पागल की भागती दौड़ती हुई शमशान भूमि में पहुंची। वहां पुत्र के अस्थिपंजर को देखकर फूट-फूटकर रोने लगी और विलपती हुई कहने लगी, "पुत्र! तुमने संसार को छोड़ा, मां की ममता और वधुओं का मोहपाश तोड़ा, पर प्रव्रजित होकर एक ही अहोरात्रि की साधना कर प्राणों का परित्याग क्यों किया? क्या यही रात्रि तुम्हारे लिए कल्याणकारी थी? तुम परिवार से निर्मोही बने तो क्या धर्मगुरु से भी निर्मोही बन गए? संत वेश में एक बार मेरे आंगन में आकर भवन को पवित्र तो करते।"

पुत्र के दाहसंस्कार के साथ भद्रा के मानस में ज्ञान की लौ जल उठी। भद्रा की पुत्रवधुओं को भी भोगप्रधान जीवन से विरक्ति हो गई। एक गर्भिणी वधू को छोड़कर सारा परिवार आचार्य सुहस्ती के पास दीक्षित हो गया।

अवंति सुकुमाल के पुत्र ने पिता की स्मृति में उनकी देहावसान के स्थान पर जैन मंदिर बनवाया। वह आज भी अवंति में महाकाल के नाम से प्रख्यात है।

आचार्य सुहस्ती के जीवन से संबंधित श्रेष्ठि पुत्र अवंति सुकुमाल निर्ग्रंथ की यह घटना दुर्बल आत्माओं में धैर्य का संबल प्रदान करने वाली है।

*आचार्य सुहस्ती की गण परंपरा* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 वापी - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 होसपेट - ज्ञानशाला रजत जयंती समारोह आयोजित
👉 कालू- ''संयुक्त परिवार में छिपा है सुखी संसार'' विषय पर कार्यशाला आयोजित
👉 कोयम्बटूर - निर्मल जी बेगवानी ते.यु.प. अध्यक्ष मनोनीत
👉 कोटा: श्री सुनील जी बेगवानी निर्विरोध तेयुप अध्यक्ष निर्वाचित
👉 भागलपुर - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 सरदारशहर - तेयुप शपथ ग्रहण समारोह
👉 इचलकरंजी - योग साधना शिविर का आयोजन
👉 गांधीधाम - साध्वी वृन्द का चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
👉 जगराओं - योग दिवस पर प्रेक्षा योग कार्यशाला
👉 हिसार - तेयुप द्वारा पौधारोपण
👉 नोखा - मुमक्षु मंगल भावना समारोह
👉 चेन्नई: तेरापंथ महिला मंडल, चेन्नई का 51 वां वार्षिक अधिवेशन सम्पन्न श्रीमती कमला देवी गेलडा सर्वानुमति से बनी तेरापंथ महिला मंडल, चेन्नई अध्यक्षा
👉 मंड्या - मुनिश्री का भव्य मंगल प्रवेश

प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 90📝

*व्यवहार-बोध*

*भाषा*

*8.*
है निरवद्य मधुर मित वाणी,
कार्यसाधिका कल्याणी।
विष-भावित तलवार जीभ है,
वही सुधा की सहनाणी।।

*1. विष-भावित तलवार जीभ है...*

शेर के बच्चे को उसकी मां ने सीख दी— 'बेटा! तेरा पिता जंगल का राजा है। तुझे यहां किसी का भय नहीं है। तू निर्भय होकर घुमा कर। पर एक बात का ध्यान रखना। काले सिर वाला आदमी हमारा दुश्मन है। उससे सावधान रहना।' मां की सीख उसके मन में गहरे तक पैठ गई। आदमी के बारे में वह बहुत कुछ जानना चाहता था, पर उससे कभी उसकी मुलाकात नहीं हुई।

शेर का बच्चा कुछ बड़ा हो गया। वह शेर बन गया। एक दिन जंगल में घूमता-घूमता बस्ती के निकट चला गया। उस दिन गांव से कोई सुथार अपने औजारों के साथ जंगल में लकड़ी काटने आया। दोनों ने एक दूसरे को देखा। शेर को देखते ही आदमी कांप उठा। वह उल्टे पांव गांव की ओर भागा। शेर ने काला सिर देख समझ लिया कि यह वही आदमी है, जिससे सावधान रहने के लिए मां ने कहा था। उसने भी अपना रास्ता बदल लिया। कुछ कदम चलने के बाद शेर ने पीछे मुड़कर देखा। उसने भागते हुए आदमी को देखकर सोचा— यह तो खुद ही डरकर भाग रहा है, इससे क्या डरना?

शेर खड़ा रहा। उसने आवाज देकर आदमी को बुलाया। आदमी डरता-डरता शेर के पास पहुंचा। दोनों ने एक दूसरे से परिचय किया। परिचय के बाद शेर बोला— 'मैंने तुम्हारे बारे में बहुत बातें सुनी हैं। अपनी कोई करतूत दिखा।' आदमी ने कहा— 'इसके लिए मुझे थोड़ा समय दो। तुमने पहले ही हत्थल उठा ली तो मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा।' शेर ने उसको समय दे दिया।

आदमी ने थैले से औजार निकाला। पास में पड़े लकड़ी के कुंदे को छीला। उस में शेर का सिर घुसाया और ऊपर से कीली ठोंक दी। अपना काम पूरा कर आदमी ने शेर से कहा— 'तुम जंगल के राजा हो। तुम्हारे नाम से ही सब कांपते हैं। तुम अपनी शक्ति दिखाओ और इस बंधन से मुक्त होकर बाहर आ जाओ।' शेर ने प्रयत्न किया पर सफलता नहीं मिली। आदमी ने कीली निकाली। शेर मुक्त हुआ। आदमी का कौशल देखकर वह चकित हो गया।

शेर और आदमी बात करते-करते मित्र बन गए। शेर बोला— 'मेरे मन से तुम्हारा भय दूर हो गया। तुम भी मेरी ओर से अभय रहो। तुम जंगल में आते ही हो, मेरे पास भी आते रहो।' उसके बाद वह आदमी नियमित रूप से जंगल में जाता और शेर के साथ थोड़ी देर गपशप कर गांव लौट जाता।

*एक और आदमी की यह दोस्ती कहां तक चली...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 90* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*सद्धर्म-धुरीण आचार्य सुहस्ती*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

कोमल शय्या पर सोने वाले अवंति सुकुमाल दीर्घकालीन तपस्या के द्वारा कर्म निर्जरा करने में सक्षम थे। दीक्षा के प्रथम दिन ही गुरु से आदेश प्राप्त कर यावज्जीवन अनशनपूर्वक कठोर साधना करने के लिए वहां से प्रस्थित हुए और श्मशान भूमि की ओर बढ़े। उन्हें नंगे पांव चलने का अभ्यास नहीं था। पथ में सुतीक्षण कांटों और कंकरों के प्रहार से उनके कोमल पदतल से रक्तबिंदु टपकने लगे। पथगत बाधाजनित क्लेश को समतापूर्वक सहन करते हुए अवंति सुकुमाल मुनि निर्णीत स्थान पर पहुंचे एवं शमशान में जाकर ध्यानस्थ हो गए। मध्याह्न के तीव्र ताप ने उनकी कड़ी परीक्षा ली। वे पंच नमस्कार मंत्र का स्मरण करने लगे। दिन ढला, रजनी का आगमन हुआ। रात्रि में सुकोमल मुनि के चरणों से टपकी रक्तबूंदों से मिश्रित पथ के धूलकणों की गंध क्षुधार्त्त शिशुओं के साथ मांसभक्षणी जंबुकी को खींच लाई। उसने रक्तप्लावित मुनि के तलवों को चाटा। कृतांत सहोदरा की भांति वह मुनि के वपु का भक्षण करने लगी। चर्म का आवरण चट-चट करता टूटता गया। मास, मेद और मज्जा के स्वाद में लुब्ध श्रृंगालिनी रक्त सनी कशेरुका (पीठ की हड्डी), पर्शुका (पार्श्व की हड्डी), करोटि (मस्तक की हड्डी), कपालास्थियों का भी चर्वण करने लगी। उसके शिशु परिवार ने और उसने मिलकर प्रथम प्रहर में मुनिके पैरों को, द्वितीय प्रहर में जंघा को, तृतीय प्रहर में उदर को और चतुर्थ प्रहर में मुनि के शरीर के ऊपरी भाग का मांसादि निगल लिया।

उत्तरोतर चढ़ती हुई भावना की श्रेणी से मुनि अपने लक्ष्य तक पहुंच गए। धैर्य से भयंकर वेदना को सहते हुए भद्रापुत्र अवंति में उत्पन्न सुकुमाल नलिनी गुल्म विमान में उत्पन्न हुए। देवताओं ने आकर उनका मृत्यु महोत्सव मनाया। महानुभाव! महासत्त्व! कहकर मुनि के गुणों की प्रशंसा की।

अवंति सुकुमार के मुनि बनने के दूसरे ही दिन भद्रापुत्र की पत्नी ने आचार्य सुहस्ती की परिषद में अपने पति को नहीं देखा। उसने वन्दन कर मुनिन्द्र से पूछा "भगवन्! मेरे पति कहां हैं?" सुहस्ती ने ज्ञानोपयोग से अवंति सुकुमाल की पत्नी को समग्र वृतांत सुनाया। भद्रापुत्र की पत्नी रोती बिलखती घर पहुंची और मुनि भद्रापुत्र के स्वर्गवास की सूचना सबको दी।

पुत्रवधू द्वारा अपने पुत्र के स्वर्गवास की सूचना प्राप्त कर भद्रा पागल की भागती दौड़ती हुई शमशान भूमि में पहुंची। वहां पुत्र के अस्थिपंजर को देखकर फूट-फूटकर रोने लगी और विलपती हुई कहने लगी, "पुत्र! तुमने संसार को छोड़ा, मां की ममता और वधुओं का मोहपाश तोड़ा, पर प्रव्रजित होकर एक ही अहोरात्रि की साधना कर प्राणों का परित्याग क्यों किया? क्या यही रात्रि तुम्हारे लिए कल्याणकारी थी? तुम परिवार से निर्मोही बने तो क्या धर्मगुरु से भी निर्मोही बन गए? संत वेश में एक बार मेरे आंगन में आकर भवन को पवित्र तो करते।"

पुत्र के दाहसंस्कार के साथ भद्रा के मानस में ज्ञान की लौ जल उठी। भद्रा की पुत्रवधुओं को भी भोगप्रधान जीवन से विरक्ति हो गई। एक गर्भिणी वधू को छोड़कर सारा परिवार आचार्य सुहस्ती के पास दीक्षित हो गया।

अवंति सुकुमाल के पुत्र ने पिता की स्मृति में उनकी देहावसान के स्थान पर जैन मंदिर बनवाया। वह आज भी अवंति में महाकाल के नाम से प्रख्यात है।

आचार्य सुहस्ती के जीवन से संबंधित श्रेष्ठि पुत्र अवंति सुकुमाल निर्ग्रंथ की यह घटना दुर्बल आत्माओं में धैर्य का संबल प्रदान करने वाली है।

*आचार्य सुहस्ती की गण परंपरा* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

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  3. ज्ञान
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  5. स्मृति
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