29.06.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 29.06.2017
Updated: 01.07.2017

Update

Chirping Sparrow - संयम स्वर्ण महोत्सव वर्ष विशेषांक

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#must_read_share कल #गिरनार @ #भगवान्_नेमिनाथ जी का मोक्ष कल्याणक हैं, तथा जिनके जीवन समर्पण के कारण आज गिरनार बचा हुआ हैं ऐसे #आचार्य_निर्मलसागर जी महाराज का 50th मुनि दीक्षा दिवस भी हैं:) #Special_Article_Girnar #AcharyaNirmalsagar

गिरनार पर्वत @ History- नेमिनाथ भगवान् ने जहा से दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण प्राप्त किया, श्री कृष्ण के पुत्र प्रधुम्नकुमार, अनिरुद्धकुमार, शम्भुकुमार आदि 72 करोड़ 700 मुनिराजो ने मोक्ष प्राप्त किया तथा जहा आचार्य धरसेन स्वामी ने मुनि पुष्पदंत तथा मुनि भुतबली महाराज को जिनवाणी का दुर्लभ/बहुमूल्य ज्ञान चन्द्र गुफा में दिया, जिसके कारण दोनों मुनिराजो ने षटखंडागम की रचना करी! जहा राजुल ने तपस्या करी, जहा भद्रबाहु स्वामी, समंतभद्र स्वामी, कुंद कुंद देव आदि महान आचार्यो ने वंदना की और ग्रंथो में इस पर्वत की महिमा गाये बिना नहीं रह सके!! सोचो कितना महान है ये गिरनार!!! जब समन्तभद्र स्वामी इस गिरनार पर आये तो इसकी महिमा गाये बिना रह ना सके, जब आचार्य कुन्द कुन्द स्वामी इस पर्वत आये तो खूब ध्यान लगाए और देवी अम्बिका को बुला आदि दिगंबर कहलवाए, इसी पर्वत पर आचार्य धरसेन स्वामी ने पुष्पदंत महाराज और भूतबली महाराज को बचा हुआ दुर्लभ जिनवाणी का ज्ञान दिया जिसके बाद षतखंडागम ग्रन्थ की रचना की जो की 2,000 वर्ष से भी प्राचीन तथा वर्तमान मूल ग्रन्थ है!!

जूनागढ़ - यहाँ शहर में धरसेन आचार्य जी की गुफा है, इस स्थान पर आचार्य धरसेन जी ने गहन तपस्या की थी, राजुलमती प्राचीन महल भी है, इस महल में एक विशेष शिलालेख भी है जिसमे भगवान् नेमिनाथ, सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त मोर्य तथा जैन संस्कृति के बारे में काफी कुछ लिखा हुआ है, यहाँ शहर में एक प्राचीन संग्रालय भी है जिसमे यहाँ से सम्बंधित सभी प्राचीन चीज़े यहाँ रखी गयी है! जैन धर्मं का णमोकार मंत्र लिखा 'कीर्ति स्तम्भ' भी यहाँ मार्किट में है तथा यहाँ का Gir Forest National Park को पुरे विश्व में एशियाई शेरो के लिए प्रसिद्द है!

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Update

#must_read 28 जून को जैन दानवीर व जैन धर्म की शान बढाने वाले वीर भामाशाह जी की 470 वीं (28 जून 1547) जन्म जयंती पर शत - शत नमन #share_करना_ना_भूले_इस_जानकारी_को

वह धन्य देश की माटी है, जिसमें भामा सा लाल पला।
उस दानवीर की यश गाथा को, मेट सका क्या काल भला।।

भामाशाह जैन त्याग-बलिदान और दान के प्रतीक थे। भामाशाह महान व्यक्ति थे। उन्होंने महाराणा प्रताप को प्रचूर धन दान में दिया ताकि वे अकबर से युद्ध कर सकें और वे स्वयं युद्ध क्षेत्र में तलवार लेकर लड़े!

अपरिग्रह को जीवन का मूलमंत्र मानकर संग्रहण की प्रवृत्ति से दूर रहने की चेतना जगाने में आप सदैव अग्रणी रहे । आपको मातृ-भूमि के प्रति अगाध प्रेम था और दानवीरता के लिए आपका नाम इतिहास में अमर है ।आपकी दानशीलता के चर्चे उस दौर में आसपास बड़े उत्साह, प्रेरणा के संग सुने-सुनाए जाते थे ।

1. आपका जन्म अलबर राजस्थान के मेवाड़ राज्य में 28 जून 1547 को हुआ । अपने पिता की तरह आप भी राणा प्रताप परिवार के लिए समर्पित थे।

2. आप जैन धर्म के अनुयायी थे और परम देशभक्त और अद्भूत दानी थे। आप व्यापार करते थे।

3. आपके पास स्वयं का तथा पुरखों का कमाया हुआ अपार धन था। उन्होंने यह सब महाराणा प्रताप के चरणों मंे अर्पित कर दिया।

4. इतिहासकारों के अनुसार भामाशाह ने 25 लाख रूपए (इस समय यह रकम कई अरब बैठेगी) तथा 20000 अशर्फी महाराणा प्रताप को दी।

5. महाराणा प्रताप ने आखों में आसूं भरकर भामाशाह जैन को गले से लगा लिया।

6. भामाशाह जैन से प्राप्त धन से महाराणा प्रताप ने सेना को संगठित करके अपने क्षेत्रा को मुक्त करा लिया।

7. परम देशभक्त भामाशाह जैन ने अकबर के दरबार में मनचाहा पद लेने का प्रस्ताव ठुकरा दिया।

8. अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होनें अपने पुत्रा को आदेश दिया कि, वह महाराणा प्रताप के पुत्रा के साथ वैसा ही व्यवहार करे, जैसा उन्होंने महाराणा प्रताप के साथ किया हैं!

9. भामाशाह जैन की सोच, चिन्तन, मानसिकता अति सराहनीय व प्रशंसनीय है। वे महाराणा प्रताप के साथ सदैव याद किए जाएंगे।

लोकहित और आत्मसम्मान के लिए अपना सर्वस्व दान कर देने वाली उदारता के गौरव-पुरुष की इस प्रेरणा को चिरस्थायी रखने के लिए शासन ने उनकी स्मृति में दानशीलता, सौहार्द्र एवं अनुकरणीय सहायता के क्षेत्र में दानवीर भामाशाह सम्मान स्थापित किया है ।

Info Source - श्री संजय जैन, विश्व जैन संगठन

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News in Hindi

#amazing_Info भगवान पार्श्वनाथ @ चन्द्रगुप्त बसदी, चन्द्रगिरि पर्वत #श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) -यह मंदिर #मोर्य_चंद्रगुप्त_सम्राट के द्वारा बनवाया गया है 🔥😇#share

चंद्रगुप्त बसदि के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर चंद्रगुप्त सम्राट के द्वारा बनवाया गया है। कुछ लोग उनके पौत्र अशोक के द्वारा निर्मित भी मानते हैं। जैन परंपराओं के अनुसार, चंद्रगुप्त अपने अंतिम दिनों में जैन-मुनि हो गए| चन्द्र-गुप्त अंतिम मुकुट-धारी मुनि हुए, उनके बाद और कोई मुकुट-धारी (शासक) दिगंबर-मुनि नही हुए | अतः चन्द्र-गुप्त का जैन धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है | स्वामी भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोल चले गए। वहीं उन्होंने उपवास द्वारा शरीर त्याग किया। श्रवणबेलगोल में जिस पहाड़ी पर वे रहते थे, उसका नाम चंद्रगिरि है और वहीं उनका बनवाया हुआ 'चंद्रगुप्तबस्ति' नामक मंदिर भी है। इस मंदिर में तीन कोठों में तीर्थंकर पार्श्वनाथ, पद्मावती और कूष्माण्डिनी की मूर्तियाँ हैं। सभाभवन में क्षेत्रपाल की मूर्ति है और बरामदे की दाई ओर धरणेन्द्र यक्ष तथा बार्इं ओर सर्वाण्ह यक्ष बने हुए हैं। इस मंदिर में ऐतिहासिक महत्वपूर्ण रचना है मंडप की दीवार पर उकेरा गया जाली का दृश्य। इस जाली में ९० फलक या चित्रखंड हैं। इन फलकों में श्रुतकेवली भद्रबाहु और चंद्रगुप्त के जीवन से सम्बन्धित दृश्य अंकित हैं। #Shravanbelgola #ChandragupMorya

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