29.06.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 29.06.2017
Updated: 07.07.2017

Update

👉 वापी - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 होसपेट - ज्ञानशाला रजत जयंती समारोह आयोजित
👉 कालू- ''संयुक्त परिवार में छिपा है सुखी संसार'' विषय पर कार्यशाला आयोजित
👉 कोयम्बटूर - निर्मल जी बेगवानी ते.यु.प. अध्यक्ष मनोनीत
👉 कोटा: श्री सुनील जी बेगवानी निर्विरोध तेयुप अध्यक्ष निर्वाचित
👉 भागलपुर - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 सरदारशहर - तेयुप शपथ ग्रहण समारोह
👉 इचलकरंजी - योग साधना शिविर का आयोजन
👉 गांधीधाम - साध्वी वृन्द का चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
👉 जगराओं - योग दिवस पर प्रेक्षा योग कार्यशाला
👉 हिसार - तेयुप द्वारा पौधारोपण
👉 नोखा - मुमक्षु मंगल भावना समारोह
👉 चेन्नई: तेरापंथ महिला मंडल, चेन्नई का 51 वां वार्षिक अधिवेशन सम्पन्न श्रीमती कमला देवी गेलडा सर्वानुमति से बनी तेरापंथ महिला मंडल, चेन्नई अध्यक्षा
👉 मंड्या - मुनिश्री का भव्य मंगल प्रवेश

प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 90📝

*व्यवहार-बोध*

*भाषा*

*8.*
है निरवद्य मधुर मित वाणी,
कार्यसाधिका कल्याणी।
विष-भावित तलवार जीभ है,
वही सुधा की सहनाणी।।

*1. विष-भावित तलवार जीभ है...*

शेर के बच्चे को उसकी मां ने सीख दी— 'बेटा! तेरा पिता जंगल का राजा है। तुझे यहां किसी का भय नहीं है। तू निर्भय होकर घुमा कर। पर एक बात का ध्यान रखना। काले सिर वाला आदमी हमारा दुश्मन है। उससे सावधान रहना।' मां की सीख उसके मन में गहरे तक पैठ गई। आदमी के बारे में वह बहुत कुछ जानना चाहता था, पर उससे कभी उसकी मुलाकात नहीं हुई।

शेर का बच्चा कुछ बड़ा हो गया। वह शेर बन गया। एक दिन जंगल में घूमता-घूमता बस्ती के निकट चला गया। उस दिन गांव से कोई सुथार अपने औजारों के साथ जंगल में लकड़ी काटने आया। दोनों ने एक दूसरे को देखा। शेर को देखते ही आदमी कांप उठा। वह उल्टे पांव गांव की ओर भागा। शेर ने काला सिर देख समझ लिया कि यह वही आदमी है, जिससे सावधान रहने के लिए मां ने कहा था। उसने भी अपना रास्ता बदल लिया। कुछ कदम चलने के बाद शेर ने पीछे मुड़कर देखा। उसने भागते हुए आदमी को देखकर सोचा— यह तो खुद ही डरकर भाग रहा है, इससे क्या डरना?

शेर खड़ा रहा। उसने आवाज देकर आदमी को बुलाया। आदमी डरता-डरता शेर के पास पहुंचा। दोनों ने एक दूसरे से परिचय किया। परिचय के बाद शेर बोला— 'मैंने तुम्हारे बारे में बहुत बातें सुनी हैं। अपनी कोई करतूत दिखा।' आदमी ने कहा— 'इसके लिए मुझे थोड़ा समय दो। तुमने पहले ही हत्थल उठा ली तो मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा।' शेर ने उसको समय दे दिया।

आदमी ने थैले से औजार निकाला। पास में पड़े लकड़ी के कुंदे को छीला। उस में शेर का सिर घुसाया और ऊपर से कीली ठोंक दी। अपना काम पूरा कर आदमी ने शेर से कहा— 'तुम जंगल के राजा हो। तुम्हारे नाम से ही सब कांपते हैं। तुम अपनी शक्ति दिखाओ और इस बंधन से मुक्त होकर बाहर आ जाओ।' शेर ने प्रयत्न किया पर सफलता नहीं मिली। आदमी ने कीली निकाली। शेर मुक्त हुआ। आदमी का कौशल देखकर वह चकित हो गया।

शेर और आदमी बात करते-करते मित्र बन गए। शेर बोला— 'मेरे मन से तुम्हारा भय दूर हो गया। तुम भी मेरी ओर से अभय रहो। तुम जंगल में आते ही हो, मेरे पास भी आते रहो।' उसके बाद वह आदमी नियमित रूप से जंगल में जाता और शेर के साथ थोड़ी देर गपशप कर गांव लौट जाता।

*एक और आदमी की यह दोस्ती कहां तक चली...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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Update

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 93* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*विश्वबंधु आचार्य बलिस्सह*

*समकालीन राजवंश*

आचार्य बलिस्सह के शासन काल में मगध पर मौर्य वंश का राज्य था। इस राज्य का प्रथम सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य था और अंतिम सम्राट वृहद्रथ था। सेनापति पुष्पमित्र शुंग ने वृहद्रथ का वध कर वी. नि. 323 (वि. पू. 147, ई. पू. 204) में मगध की सत्ता को अपने हाथ में ले लिया था। इस प्रसंग से यह सिद्ध है कि आचार्य बलिस्सह के शासनकाल में लगभग 78 वर्षों तक मगध पर मौर्य वंश का शासनकाल रहा। मौर्य सम्राट अधिकांश जैनी या जैन धर्म के समर्थक रहे हैं। मौर्य शासन का सुप्रसिद्ध अमात्य चाणक्य भी जैन था।

वी. नि. की चतुर्थ शताब्दी के तृतीय दशक में मगध पर शुंग वंश का आधिपत्य हो गया था। शुंग वंश के शासनकाल में ब्राह्मण धर्म की उन्नति हुई।

कलिंग में इस समय सम्राट खारवेल का शासन था। सम्राट खारवेल आर्हद् धर्म का परम उपासक था। सम्राट खारवेल के कारण श्रमण धर्म विरोधी शुंग वंश के शासनकाल में भी जैन धर्म का बगीचा फलता-फूलता रहा। आचार्य बलिस्सह का धर्म प्रचार कार्य बदलती हुई राजनैतिक परिस्थितियों में भी अनेक दृष्टियों से विकासमान था।

कल्पसूत्र स्थविरावली में बलिस्सह गण की चार शाखाओं का उल्लेख है। *(1)* कोसंबिया (कौशम्बिका) *(2)* सोइत्तिया *(3)* कोडंबिणी *(4)* चंदनागरी। आर्य बलिस्सह के चार शिष्यों से इन चार शाखाओं का जन्म हुआ था।

*समय-संकेत*

आचार्य बलिस्सह आचार्य महागिरि गण के गणाचार्य एवं वाचक परंपरा के प्रथम वाचनाचार्य थे। इन्होने लगभग 84 वर्षों तक गणाचार्य एवं वाचनाचार्य पद पर रह कर जैन शासन की सेवा की एवं आचार्य महागिरि के गण को चतुर्मुखी विकास दिया। आचार्य बलिस्सह लगभग 105 वर्ष की उम्र में वी. नि. 329 (वि. पू. 141, ई. पू. 198) स्वर्गवासी हुए।

आचार्य महागिरि का स्वर्गवास वी. नि. 245 (वि. पू. 225, ई. पू. 282) में हुआ था।

वाचनाचार्य स्वाति का कार्यकाल वी. नि. 329 (वि. पू. 141, ई. पू. 198) से प्रारंभ होता है।

*आचार्य-काल*

वाचनाचार्य बलिस्सह का आचार्य-काल आचार्य महागिरि और स्वाति के मध्यवर्ती होने के कारण (वी. नि. 245 से 329)
(वि. पू. 225 से 141)
(ई. पू. 282 से 198) तक अनुमानित है।

पट्टावलीकारों ने आचार्य बलिस्सह के आचार्य काल का उल्लेख नहीं किया है।

*गुणगणमण्डित आचार्य गुणसुंदर के प्रभावक व्यक्तित्व* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 93📝

*व्यवहार-बोध*

*भाषा*

(दोहा)

*9.*
मीठी केवल जीव है, फीके सब पकवान।
खाया-पीया सब खतम, बेगम करे बयान।।

*3. मीठी केवल जीभ है...*

बादशाह अकबर का दरबार लगा था। विशिष्ट दरबारी उपस्थित थे। प्रश्न सामने आया की सबसे मीठी चीज क्या होती है? मिश्री की मिठास प्रसिद्ध है। यहीं से बात आगे बढ़ी। किसी ने मधु को मीठा बताया। किसी ने द्राक्षा को। किसी ने खीरखांड के भोजन का नाम लिया तो किसी ने इक्षुरस का। विभिन्न विचार सामने आए। सब लोग एक मत हो जाएं, यह संभव ही नहीं था। कवि ने कहा है—
दधि मधुरं मधु मधुरं,
द्राक्षा मधुरा च शर्करा मधुरा।
तस्य तदेव हि मधुरं,
यस्य मनो यत्र संलग्नम्।।

दही, शहद, अंगूर, मिश्री आदि वस्तुएं मीठी हैं। पर सर्वोत्कृष्ट मिठास का कोई मानक नहीं है। क्योंकि जिस व्यक्ति को जो पदार्थ रुचिकर लगता है, उसके लिए वही मीठा हो जाता है।

बात यहीं पर समाप्त हो जाती, पर बादशाह को संतोष नहीं हुआ। उसने बीरबल से उत्तर मांगा। बीरबल बोला— 'जहांपनाह! बहुत चीजों के नाम आ गए, अब मैं क्या कहूंगा?' बादशाह ने कहा— 'बीरबल! ऐसा कहकर बच नहीं सकोगे। तुम बताओ, सबसे मीठी चीज क्या है?' बीरबल बोला— 'सबसे मीठी है जीभ।' बीरबल के इस कथन पर सभासद ठहाका लगाकर हंसे। बादशाह ने बीरबल की ओर देखा तो वह बोला— 'जहांपनाह! यह मेरा पक्का अनुभव है।' बादशाह ने प्रमाण मांगा। बीरबल ने समय आने पर प्रमाण देने का वादा किया।

कुछ दिन बीते। बीरबल ने बेगम साहिबा को भोजन पर आमंत्रित किया। बादशाह ने कहा— 'बीरबल! तुम्हारी इच्छा है तो बेगम अवश्य आएगी।' बेगम को सूचना मिली तो वह प्रसन्न हुई। उसे बाहर जाने का मौका ही नहीं मिलता था। असूर्यंपश्या राजदारा– राजकुल की स्त्रियां सूर्य को भी नहीं देख पातीं, राजप्रासाद से बाहर जाने की तो बात ही क्या।

बेगम सज-धजकर बीरबल के घर गई। बीरबल ने उसके स्वागत में अनूठी तैयारी की थी। कदम-कदम पर बिछावन तथा चारों और सुंदर सजावट। बेगम की तबियत खुश हो गई। भोजन के समय उसे जो पदार्थ परोसे गए, उसने कभी उन उनका स्वाद ही नहीं चखा था। खाद्य-पदार्थों की संख्या इतनी थी कि किसी पदार्थ का दूसरा ग्रास नहीं लिया जा सका। मीठा, ठंडा और सुगंधित पानी सहज ही तृप्तिदायक था। भोजन करने के बाद पान का बीड़ा मुंह में लेकर प्रशंसात्मक भाव में बेगम उठी। भोजनकक्ष के बाहर कदम रखते ही बीरबल ने तेज स्वर में दासी से कहा— 'कमरे की सफाई जरा ठीक से करना। यहां "तुरकणी" खाना खाकर गई है।'

बीरबल के उक्त शब्द बेगम के कानों में पड़े। उसके रोम-रोम में आग लग गई। वह बोली कुछ नहीं, पर उसका खाया-पिया सब समाप्त हो गया।

*आगे क्या हुआ...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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News in Hindi

👉 विजयवाड़ा - श्रीमती कुसुमजी डोसी म. म. के अध्यक्ष पद हेतु मनोनीत
👉 रायगंज - ते.म.म.अध्यक्ष पद हेतु मंजू देवी चोपड़ा मनोनीत
👉 इरोड - श्री हेमन्त दुगड़ तेयुप के अध्यक्ष मनोनीत
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  1. आचार्य
  2. कोटा
  3. भाव
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