Update
👉 कोलकत्ता - अणुव्रत महासमिति पदाधिकारी श्री चरणों मे
👉 सिलीगुड़ी - अणुव्रत समिति द्वारा सेवा कार्य
👉 मोमासर: अणुव्रत समिति द्वारा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय व राजकीय इचरज देवी बालिका माध्यमिक विद्यालय को 'अणुव्रत पट्ट' भेंट
👉 ठाणे - श्री डांगी तेयुप अध्यक्ष निर्वाचित
👉 राजाराजेश्वरी नगर, बैंगलोर: तेरापंथ महिला मंडल द्वारा "सशक्तिकरण कार्यशाला" का आयोजन
👉 जयपुर - सी स्किम महिला मंडल द्वारा स्वच्छता अभियान
👉 बालोतरा - मुकेश सालेचा तेयुप अध्यक्ष निर्वाचीत
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 जयपुर - फ़ूड फॉर हंगर का आयोजन
👉 भीलवाड़ा - आचार्य श्री महाप्रज्ञ जन्म दिवस का आयोजन
👉 भीलवाड़ा- श्री पवन कोठारी तेयुप के अध्यक्ष मनोनीत
👉 मुम्बई -साध्वी श्री अणिमा श्री जी का प्रेक्षाध्यान योग केंद्र में पदार्पण
👉 दिल्ली - नशा मुक्ति कार्यशाला
👉 सूरत - साध्वी श्री मधुबाला जी का चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
👉 दिल्ली - अणुव्रत समिति द्वारा ड्राइवरों के मध्य नशामुक्ति अभियान
👉 मोमासर: साध्वी वृन्द के "मंगल पदार्पण" पर 'अणुव्रत समिति' के नव मनोनीत अध्यक्ष द्वारा अपनी नई कार्यकारिणी टीम की घोषणा
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 95📝
*व्यवहार-बोध*
*भाषा*
*10.*
मोती निर्मल मधुर जल, पीने वाला कौन?
मोती निर्मल मधुर वच बोले, खोले मौन।।
*4. मोती निर्मल...*
एक राजपूत जीविका की खोज में घूमता हुआ एक सेठ के पास पहुंचा। सेठ उदार था, दयालु था। उसने राजपूत को अपने पास रहने का निर्देश दे दिया। राजपूत ने काम के बारे में पूछा तो सेठ बोला— 'ठाकुर साहब! आप जैसे खानदानी और विश्वासी व्यक्ति का घर में रहना ही प्रतिष्ठा की बात है।' राजपूत मुफ्त खोर नहीं था। उसने कहा— 'सेठ साहब! मैं कोई काम नहीं करूंगा तो मन में हीनता का बोध होगा। आप चाहें तो मुझे किसी छोटे से काम में ही नियुक्त कर दीजिए।' सेठ ने राजपूत को नियुक्ति देते हुए कहा— 'आप मुझे पानी पिला दिया करें।' राजपूत पूरे मन से अपने काम में लग गया। वह इतना जागरुक था कि सेठ को कभी पानी मांगने का अवसर ही नहीं देता।
एक बार सेठ साहब किसी यात्रा पर गए। राजपूत झारी में पानी भरकर साथ हो गया। गर्मी का समय था और रास्ता कल्पना से अधिक लंबा निकल गया। इस कारण पानी रास्ते में ही पूरा हो गया।
राजपूत की नजरें इधर-उधर पानी खोजने लगीं। थोड़ी सी दूरी पर गांव देखकर वह पीछे रह गया। पानी की तलाश में वह गांव में गया। लोगों से पूछताछ की। पता चला कि गांव की उत्तर दिशा में एक बावड़ी है। वह स्वच्छ, सुंदर और शीतल जल से भरी है। पर वहां पानी पीने वाला जीवित नहीं लौटता।
राजपूत बावड़ी की दिशा में चलने के लिए उद्यत हुआ। गांव वालों ने उसे रोकना चाहा, पर वह नहीं रुका। कमर पर बंधी तलवार के हाथ लगा कर उसने निश्चिंतता का अनुभव किया। वह निर्भय होकर चला। बावड़ी तक पहुंच कर उसने इधर-उधर देखा वहां कोई नहीं था। वह सीढ़ियां उतरकर नीचे आया। पानी देख कर मुग्ध हो गया। उसने हाथ मुंह धोए। पानी पिया। झारी पानी से भरी। कहीं कोई व्यवधान नहीं आया। ज्योंही वह लौटने के लिए उद्यत हुआ, उसे आवाज सुनाई दी— 'कौन हो? खड़े रहो?' राजपूत ने समझ लिया कि अब मौत पुकार रही है। फिर भी वह घबराया नहीं। उसने पीछे मुड़कर देखा– एक लंबी चौड़ी विकृत आकृति वाली छाया सामने खड़ी थी। उसके हाथ में हड्डी का लंबा सा नुकीला टुकड़ा था। वह यक्ष था।
*क्या राजपूत जिंदा बच पाया...? और अगर बच पाया तो कैसे...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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