09.07.2017 ►STGJG Udaipur ►News

Published: 10.07.2017
Updated: 10.07.2017

News in Hindi

आध्यात्म का अनूठा रिश्ता: बेटा है गुरु और पिता हैं उसका ही शिष्य
ये हैं आदिसागर अंकलिकर परंपरा के चतुर्थ पट्टाचार्य सुनील सागर और इनके सामने बैठे हैं इनके शिष्य आचार्य सुखद सागर। सांसारिक रिश्तों की बात करें तो सुखद सागर, आचार्य सुनील सागर के पिता हैं, लेकिन आध्यात्म की राह पर अब बेटा गुरु है और पिता उनके शिष्य। 66 वर्षीय भागचंद जैन इस महावीर जयंती को प्रतापगढ़ जिले के कुंडलपुर में अपने बेटे आचार्य सुनील सागर से दीक्षा लेकर आचार्य छुल्लक सुखद सागर बन गए थे। तब से वे अपने गुरु आचार्य सुनील सागर की सेवा में तत्पर हैं। हालही में आचार्य सुनील सागर उदयपुर के हुमड़ भवन में चातुर्मास कर रहे हैं।
आचार्य सुखद सागर बताते हैं कि 20 साल पहले जब आचार्य सम्मति सागर महाराज ने उनके बेटे संदीप को दीक्षा दी थी, तब पिता होने के नाते मन में कुछ पीड़ा जरूर हुई थी, लेकिन जब बेटे को आध्यात्म की राह पर चलते देखा तो लगा कि ये ही मेरे सच्चे गुरु हैं और मैं भी इस राह पर चल पड़ा। अब मेरा जीवन गुरु के चरणों में समर्पित है।
आचार्य सुनील सागर का कहना है कि पिता को दीक्षा देते समय उनके मन में तो कुछ संशय था कि पिता को शिष्य बनाकर उनसे वे कैसे संघ के नियम कायदे पूरे कराएंगे लेकिन उन्हें उन पर विश्वास था। आज संघ के अन्य संतों की तरह छुल्लक सुखद सागर भी सारे नियम निभा रहे हैं।
आचार्य सुनील सागर कहते हैं कि पिता-पुत्र का वो रिश्ता सांसारिक था। आध्यात्म में सिर्फ परमात्मा से रिश्ता रहता है। आदिनाथ ऋषभ देव के पिता नाभीराय ने भी अपने पुत्र से दीक्षा ली थी।
पिता से 20 साल पहले बेटे ने ली थी दीक्षा
आचार्य सुनील सागर का जन्म मध्यप्रदेश के सागर जिले के तिगोदा में सात अक्टूबर 1977 को हुआ। इनका बचपन का नाम संदीप कुमार जैन था। इन्होंने बीकॉम तक शिक्षा लेने के बाद आचार्य श्री सन्मति सागरजी महाराज से उत्तरप्रदेश के झांसी जिले के बरुआ सागर में 1997 में दीक्षा ली।

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जैनत्व संस्कार दीक्षा समारोह भव्यता के साथ संपन्न
नशे की लत ने युवाओं को किया खोखला: श्रमण डॉ. पुष्पेन्द्र
पूना 9 जुलाई 2017।
जैनत्व संस्कार दीक्षा संपन्न।
पूना शहर में प्रथम बार आयोजित हुए संस्कार दीक्षा समारोह में श्रमण डॉ. पुष्पेन्द्र ने उपस्थित युवा पीढी के अभिभावकों से आहवान किया कि युवा धरोहर को संरक्षित करें। जैनत्व संस्कार दीक्षा के अंतगर्त सर्वप्रथम नवकार महामंत्र का सुमिरण किया गया उसके पश्चात् उपस्थित श्रावक - श्राविकाओं, युवक - युवतियों को जैनत्व के सिद्धांतों व नियम समझाते हुए ‘सप्त कुव्यसन’ की प्रतिज्ञा संपन्न करवाई। उन्होने कहा कि युवाओं को अपनी कमाई का एक फीसदी हिस्सा माता पिता को देना चाहिए, ताकि उनको दान पुण्य करने के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाने पड़े। भारत का भविष्य युवा वर्ग है। लेकिन नशे की लत इन युवाओं को खोखला कर रही है। गांव के गलियारे से लेकर संसद के चौराहे तक नशे की जड़ें फैली हुई हैं। कौन रोकेगा इस तबाही को? आगे कहा कि छोटे से बच्चे के हाथ में सिगरेट, गुटखा पहुंच गया है। यह बहुत चिंतनीय विषय है। प्रत्येक पाउच पर कैंसर होने की चेतावनी के बाद भी अपने जीवन से खिलवाड़ क्यों करते हो। शराब आधुनिक फैशन का रूप ले चुकी है। ध्यान रखो, एक व्यक्ति शराब पीता है तो दुर्दशा पूरे परिवार की होती है। यह नशा हमारे देश के आंतरिक ढांचे को खोखला बना रहा है। जैनत्व संस्कार दीक्षा के अंतर्गत श्रावक - श्राविकाओं व युवा पीढी ने सप्त कुव्यसन को त्यागने का संकल्प लिया जिससे हर्ष हर्ष के जयकारों से आनंद दरबार गुंज उठा।

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Video

Video link: Pushkar muni Mangal Paath.mpg
VISHWA SANT UPADHYAY PUSHKAR MUNI MANGAL PAATH

🙏गुरु पूर्णिमा के इस सुनहरे दिवस पर आओ श्रवण करो उस महागुरु पुष्कर के मुखारविंद से मंगलमय मंगलपाठ 👇🏻👇🏻
https://youtu.be/JmZtYX50IsM

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