10.07.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 10.07.2017
Updated: 11.07.2017

Update

Lifestory of Tirthankara #Parshvanatha -कमठ के साथ कैसे बैर शुरू हुआ #share

भगवान् पार्श्वनाथ 10वे भव पूर्व - मरुभूति >> क्रोधी कमठ ने पार्श्वनाथ के जीव को सर पर पत्थर की शिला पटक कर मार डाला! [यहाँ से शुरू हुआ कमठ [क्रोध] तथा भगवान् पार्श्वनाथ [उत्तम क्षमा] के जीव का वैर विरोध ]

भगवान् पार्श्वनाथ 9वे भव पूर्व - हाथी >> हाथी [पार्श्वनाथ का जीव] नदी में कीचड़ में फस गया तथा सल्लेखना धारण कर णमोकार मन्त्र के ध्यान में मग्न होगया कुछ ही देर में एक कुक्कुट जाती का सर्प [कमठ का जीव मरकर सर्प होगया था ] ने पूर्व जन्म के संस्कार वश उसे डस लिया तथा हाथी शांत भाव से मर गया..

भगवान् पार्श्वनाथ 8वे भव पूर्व - शशिप्रभ देव >> पार्श्वनाथ के जीव को सर्ग में १६ सागर की आयु मिली उधर कमठ का जीव पांचवे नरक गया और भयंकर दुःख को भोगता रहा.., फिर आयु क्षय होने पर पार्श्वनाथ के जीव विद्याधर होगया जबकि वो कमठ का जीव अजगर सर्प की योनी में अगया...

भगवान् पार्श्वनाथ 7वे भव पूर्व - अग्निवेग विद्याधर >> एक दिन वैराग्य धारण कर अग्निवेग [पार्श्वनाथ के जीव] ने जैनेश्वरी दीक्षा धारण करली, एक बार वो मुनि ध्यान में लीं थे तब वहा पर अगजर आया [कमठ का जीव] तथा मुनि को देखते ही पूर्व भाव संस्कार के कारन क्रोधित होकर...मुनिराज को निगल गया...मुनिराज [पार्श्वनाथ के जीव] समता परिणाम के कारण..16वे स्वर्ग में देव हुए तथा...वो अगजर [कमठ का जीव] ६वे नरक चलागया...और २२ सागर तक नरको के दुःख भोगे...

भगवान् पार्श्वनाथ 6वे भव पूर्व - अच्चुत स्वर्ग में देव >> वहा पार्श्वनाथ के जीव ने २२ सागर के आयु का सुखो का भोग किया..तथा स्वर्ग से आयु पूर्ण कर महादुर्लभ मानव पर्याय मिलती है तथा जो कमठ का जीव नरक से निकलकर...भील की पर्याय में जन्म लेता है...

भगवान् पार्श्वनाथ 5वे भव पूर्व - वज्र नाभि चक्रवर्ती >> छः खंड प्रथ्वी पर राज्य करते हुए एक दिन एक महामुनिराज के दर्शन, उपदेश से वैराग्य तथा राजपाट को त्याग दिया, एक बार वज्र नाभि मुनिराज जंगल में घोर तपस्या करते हुई वन में जो कमठ का जीव नरक से निकल कर जंगल में भील बना था...उसने मुनिराज को देखते ही...उनके उपर बाण चला चला कर खूब उपसर्ग किया.

भगवान् पार्श्वनाथ 4वे भव पूर्व - अहमिन्द्र >> शांति से उपसर्ग सहकर...16वे स्वर्ग में देव [पार्श्वनाथ का जीव] 27 सागर तक दिव्यसुखो का भोग किया, उधर वो भील मरकर 7वे नरक गया और....जिसको कहा ही नहीं जा सकता ऐसे ऐसे दुखो को उसने नरक में भोगा!

भगवान् पार्श्वनाथ 3वे भव पूर्व - राजा आनंद >> १६ वे स्वर्ग से आयु पूरी कर मध्यलोक में अयोध्या नगरी में महामंडलीक राजा आनंद के रूप में मनुष्य जन्म धारण कर लिया और कमठ का जीव सातवे नरक से निकल कर वही निकटवर्ती वन में सिंह हो गया, महामंडलीक राजा आनंद ने राज्य सुखो को उपभोग करते हुए एक बार मंदिर में नन्दीश्वर पूजन में मध्य में पधारे विपुलमति मुनिराज के मुखारविंद से तीनो लोको के अक्रत्रिम चैत्यालयो का वर्णन सुना तो उन्हें सूर्य विमान के जिनमन्दिर के प्रति अगाढ़ श्रद्धा हो गयी, अतः उन्होंने...कुशल कारीगरों से अयोध्या नगरी में मणि और सुवर्ण का एक सूर्य विमान बनवाया तथा उसमे रत्नमयी जिन प्रतिमाये विराजमान करवाई फिर अनेक प्रकार की महापुजाये की...उत्तर पूरण में लिखा है..उसी समय से सूर्य की उपासना चल पड़ी..आनंद नरेश ने एक दिन राज्यसभा में अपना मुख देखा तो सिर में एक सफ़ेद बाल देखते ही उन्हे वैराग्य हो गया तथा उन्होंने सागरदत्त मुनिराज के पास दीक्षा ग्रहण कर ली...पुनः गुरुचरणों में सोलह कारण भावनाओ के भाकर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया!!! वे मुनिराज एक बार ध्यान में लीं थे तब सिंह वहा आकर उन्हें खा लेता है और मुनि समता भाव से उप्सेग सहन करके १३वे स्वर्ग में इन्द्र हो जाते है और सिंह मरकर ५वे नरक में चला जाता है...

भगवान् पार्श्वनाथ 2वे भव पूर्व - आनत स्वर्ग में देव >> इन्द्र होते ही इनको अवधिज्ञान से ज्ञात हो जाता है की उन्होंने पूर्ण जन्म में महामुनि बन कर कठिन तपस्या की थी..इसलिए उसके प्रभाव से मुझे इंद्र का वैभव प्राप्त हुआ है...अतः वे धर्म में रथ धर्मं फल में और ज्यादा श्रद्धा रखने लगे...वो कभी नन्दीश्वर दीप जाते पूजा करते, कभी विदेह क्षेत्र जाते सीमंधर स्वामी के समवशरण में दिव्यध्वनी का पान करते, लेकिन वो भावी तीर्थंकर..स्वर्गो के सुखो को भोगते हुए भी..उसमे आसक्त नहीं हो रहे थे...इस प्रकार उन्होंने बीस सागर तक दिव्या सुखो का भोग किया...!

भगवान् पार्श्वनाथ 1वे भव में - तीर्थंकर पार्श्वनाथ - इस भव में उन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया...तथा...कमठ का जीव अन्तः महान क्षमा के धारक के चरणों में गिरं गया...तथा एक जगह ऐसा भी लिखा मिलता है की कमठ के जीव को सम्यक दर्शन भी प्राप्त हो गया था...

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#आचार्यविद्यासागर जी सासंघ का #चातुर्मास के लिए #भगवानशांतिनाथ ओर #भगवानराम की नगरी #रामटेक में प्रवेश थोड़ी देर में - आज सुबह का अनुपम द्रश्य #AcharyaVidyasagar #Ramtek #ShantinathBhagwan pic by Piyush Jain -big thanks him! 🔥🔥

News in Hindi

Exclusive Photograph Direct from #Shravanbelgola ⊱✿ #भगवानबाहुबली जहाँ अटल खड़े है ऐसे #श्रवणबेलगोला में #आचार्यवर्धमानसागर जी सासंघ का वर्षायोग चातुर्मास स्थापना हुई, # भट्टारक #चारुकीर्ति जी के निर्देशन में, कर्नाटक के राज्यपाल महामहिम #वाजुभाईवाला ने अपने सुंदर भाव प्रकट किए ✿⊰ #AcharyaVardhmanSagar जी के प्रवचन तथा #KarnatakaGoverner #VajuBhaiVala ने क्या कहा सुने: https://youtu.be/6l97wM2KRg8 #share

साधु संत भक्तों को धनवान नही गुणवान बनाने हेतु आते है। भारतवर्ष में जैन सम्प्रदाय सबसे ज्यादा दान देता है। श्रवणबेलगोला में चातुर्मास कलश स्थापना उद्घाटन समारोह पर कहा कर्नाटक के राज्यपाल महामहिम वाजु भाई आर वाला ने:)

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