11.07.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 11.07.2017
Updated: 12.07.2017

Update

*द्वितीय वर्षगांठ मंगल स्थापना की* ❗
*आपके अपने तेरापंथ संघ संवाद की*‼

🍥📍🍥 *सिंहावलोकन*🍥📍🍥

🎖दो वर्ष पूर्व "तेरापंथ स्थापना-दिवस" के पावन अवसर पर तेरापंथ सोशल मीडिया के क्षेत्र में "तेरापंथ संघ संवाद" का उदय।
🎖संघ और संघपति के प्रति अटूट-आस्था तथा सहज-समर्पण इसकी सफलता-प्राप्ति का मूल मंत्र
🎖 *सफलता के कुछ ज्ञातव्य तथ्य* 🎖
📍संचालन ~ 7 सदस्यीय बोर्ड द्वारा
📍सम्पादन ~ 5 सदस्यीय सम्पादन मंडल द्वारा
📍प्रकाशन ~ 700 से अधिक ग्रुपों में
📍संप्रेषण ~ 234 ब्यूरो हेड/प्रतिनिधियों के माध्यम से
📍 विस्तार ~ भारत के 23 राज्यों व 5 विदेशों में
📍पाठक ~ 1 लाख से अधिक
📍विशेष ~ संघीय समाचार सम्प्रेषण के अलावा विशेष सामग्री यथा ~श्रावक-संबोध ~सम्बोध ~जैनधर्म के प्रभावक आचार्य ~आज का विचार ~प्रातःकालिन संकल्प सुझाव, इत्यादि।
🎖द्वितीय वर्षगाँठ के इस गौरवपूर्ण अवसर पर हम नतमस्तक हैं परम श्रद्धास्पद आचार्यप्रवर के प्रति। श्रद्धास्पद साध्वीप्रमुखाजी, आदरणीय मंत्रीमुनिजी, समादरणीय मुख्य नियोजिकाजी, मुख्यमुनिजी एवं साध्वीवर्याजी से मिलने वाला भविष्य का मार्गदर्शन एवं अंगुलीनिर्देश हमारा मार्ग प्रशस्त करे, ऐसी शुभाशंसा हम अपने प्रति करते हैं।
🎖हम अपने संपादक मंडल, ब्यूरो समूह, एडमिन वर्ग, प्रतिनिधियों एवं संवाद-प्रदाताओं के साथ-ही-साथ आप सभी समूह-सदस्यों का सम्मान सहित हार्दिक आभार प्रकट करते हैं एवं आशा करते हैं कि आपका स्नेहिल साथ सदैव हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा।
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

👉 *कोलकत्ता - तेरापंथ संघ संवाद सम्पादकीय समिति सदस्या श्रीमती कविता भंसाली जैन तेरापंथ नेटवर्क की राष्ट्रीय सह-संयोजिका नियुक्त*
👉 *तेरापंथ नेटवर्क का प्रथम वार्षिक द्विदिवसीय अधिवेशन सम्पन्न*

👉 *-42 अंचलों से पहुंचे कार्यकर्ता*

👉 *-अधिवेशन में अतीत की समीक्षा, भावी योजनाओं का चिन्तन एवं निर्णय*

👉 *-अंतिम दिन आचार्यश्री के चरणों में लोकार्पित हुआ ‘तेरापंथ नेटवर्क’ मोबाइल एप्लिकेशन*
👉 *कोलकत्ता - तेरापंथ नेटवर्क बूथ का प्रारम्भ*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

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Update

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 100* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*सन्त-श्रेष्ठ आचार्य श्याम के प्रभावक व्यक्तित्व*

गतांक से आगे...

*साहित्य*

आचार्य शाम द्रव्यानुयोग के विशेष व्याख्याकार थे। प्रज्ञापना जैसे विशालकाय सूत्र की रचना उनके विशद वैदुष्य का परिणाम है। प्रज्ञापना का प्राकृतिक रूप पन्नवणा है। पन्नवणा आगम का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है।

*प्रज्ञापना (पन्नवणा)* जैन आगम साहित्य दो भागों में विभक्त है। अंग साहित्य और अनंग साहित्य अथवा अंग साहित्य और उपांग साहित्य। प्रज्ञापना (पन्नवणा) चौथा उपांग है। इस उपांग के 36 प्रकरण हैं। यह समवायांग आगम का उपांग माना गया है। प्रज्ञापना के मुख्य दो विभाग हैं जीव प्रज्ञापना और अजीव प्रज्ञापना। जीव प्रज्ञापना में जैन दर्शन सम्मत जीव विज्ञान संबंधी विस्तृत विवेचन है। पांच स्थावर जीवों के वर्णन में वनस्पति विज्ञान को विस्तार से समझाया गया है। त्रस जीवों के प्रकरण में मनुष्य के तीन प्रकार बताए गए हैं। कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और अंतर्द्वीपक। अंतर्द्वीपक मनुष्यों के वर्णन में हयकर्ण, गजकर्ण, गोकर्ण, अयोमुख, गोमुख, गजमुख, हस्तीमुख, सिंहमुख आदि नाना प्रकार के मनुष्यों का अथवा मनुष्य जातियों का उल्लेख है जो शोध का विषय है। अनार्यों के प्रकरण में शक, यवन, किरात बर्बर आदि म्लेच्छ जातियों का तथा आर्यों के प्रकरणांतर्गत जात्यार्य, कुलार्य, कर्मार्य, शिल्पार्य के वर्णन में नाना प्रकार की आर्य जातियों, आर्य कुलों एवं आर्य जनोचित विविध कोटि के व्यापार का वर्णन है। इस ग्रंथ में अर्धमागधी बोलने वालों को भाषार्य कहा गया है। इससे सिद्ध होता है कि आर्य देश निवासी मनुष्यों की प्रमुख भाषा अर्धमागधी थी।

अजीव प्रज्ञापना प्रकरण में जैन दर्शन सम्मत धर्मास्ति, अधर्मास्ति आदि द्रव्य विभाग का वर्णन है। दार्शनिक दृष्टि से यह विभाग महत्त्वपूर्ण है। पन्नवणा का ग्यारहवां पद भाषा विज्ञान से संबंधित है।

चार अनुयोगों में प्रज्ञापना आगम द्रव्यानुयोग में परिगणित किया गया है। अंगों में भगवती आगम और उपांगों में पन्नवणा सर्वाधिक विशाल है। इस सूत्र पर टीकाकार आचार्य हरिभद्र की 3728 श्लोक परिमाण लघु टीका और आचार्य मलयगिरि की 16000 श्लोक परिमाण विशद पद व्याख्या विशाल नामक विशाल टिका है। विद्वान् हरिभद्र की टीका विषम पदों की व्याख्या मात्र है। मनीषी मलयगिरी की टीका हरिभद्र की लघु टीका के आधार पर रची गई है।

आचार्य श्याम की प्रभावकता एवं बहुश्रुतता के कारण उनके प्रज्ञापना ग्रंथ को आगम रूप में मान्यता प्राप्त हुई। यह अगम तत्त्वज्ञान का विशाल कोष ग्रंथ है। विशाल श्रुत सागर का मंथन कर आचार्य श्याम ने यह ग्रंथ रत्न जैन समाज को अर्पित किया है।

प्रज्ञापना ग्रंथ के प्रारंभिक स्तुति पद्यों में आचार्य श्याम को दुर्धरपूर्वश्रुतधारक 23वां वाचकपुरुष कहा है। इतिहास पुरुष आचार्य मेरुतुंग के अभिमत से गणधर आगमों के वाचकपुरुष हैं। उनकी संख्या संयुक्त कर लेने पर शामाचार्य को 23वां वाचकपुरुष माना जा सकता है। तीर्थंकर महावीर की आचार्य पट्ट परंपरा आचार्य सुधर्मा से प्रारंभ होती है। अतः, आचार्य श्याम सुधर्मा की पट्ट परंपरा में 13वें वाचकपुरुष हैं।

*समय-संकेत*

श्यामचार्य दीर्घजीवी थे। मुनि जीवन के 76 वर्ष के काल में 41 वर्षों तक वाचनाचार्य और युगप्रधानाचार्य दोनों पदों को अलंकृत कर आचार्य श्याम ने संत की भूमिका में श्रेष्ठ एवं गरिमामय स्थान प्राप्त किया। उनका संपूर्ण आयुष्य 96 वर्ष 1 मास में 1 दिन कम का बताया गया है। संत श्रेष्ठ श्यामाचार्य का स्वर्गवास वी. नि. 376, (वि. पू. 94, ई. पू. 151) में हुआ।

*आचार्य-काल*

(वी. नि. 335-376)
(वि. पू. 135-94)
(ई. पू. 192-151)

*शिव-सुखाकांक्षी आचार्य षाण्डिल्य के प्रभावक व्यक्तित्व* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 100📝

*व्यवहार-बोध*

*क्षान्ति*

*8. धन्य हुई है नववधू...*

पढ़ी-लिखी लड़की शादी के बाद ससुराल गई। वहां सास का स्वभाव उग्र था। वह सकारण, अकारण उत्तेजित हो जाती और बहू को प्रताड़ित करती। कुछ दिन बहू मौन रही। धीरे-धीरे उसकी सहनशीलता कम हो गई। वह भी बोलने लगी। घर में द्वंद्व युद्ध-सा मचा रहता। इससे घर के सभी लोग दुःखी हो गए। उन्होंने उन दोनों से बात करनी छोड़ दी। उनकी नाराजगी से बहू की परेशानी बढ़ गई।

पड़ोस में एक वृद्ध रहता था। मोहल्ले में उसकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। उसे घरेलू औषधियों की जानकारी थी। वह अनुभवी भी था। मोहल्ले में महिलाएं उससे मार्गदर्शन लेती रहती थीं। एक दिन मानसिक असंतुलन से परेशान बहू वृद्ध के पास गई। वृद्ध उसे पहले से जानता था। उसने पूछा— 'बेटी! तबीयत तो ठीक है? सुस्त कैसे हो रही हो?' सहानुभूति के दो बोल सुन बहू के मन की घुटन आंखों के द्वारा बाहर आ गई। उसे रोते देख वृद्ध ने रोग का अनुमान लगा लिया। फिर भी वह बोला— 'बेटी! शांत रहो, बोलो तुम्हें तकलीफ क्या है?' कुछ समझ लेते हुए बहू ने कहा— 'बाबा! गुस्सा बहुत आता है। गुस्से में सास से झगड़ा हो जाता है। फिर न खाना अच्छा लगता है और न काम करना। क्या करूं?'

वृद्ध बोला— 'बेटी! चिंता मत करो। मेरे पास एक दवा है। उसका प्रयोग करो। तुम्हारी समस्या सुलझ जाएगी।' इतना कहकर वृद्ध भीतर गया और दवा से भरी एक बोतल लेकर आया। बोतल बहू को देकर वृद्ध बोला— 'बेटी! जब भी गुस्सा आए, इसकी एक खुराक मुंह में ले लेना, पर उसे गले से नीचे मत उतारना। पांच-सात मिनट दवा को मुंह में रख कर थूक देना।' बहू ने पूछा— 'और कोई पथ्य-परहेज है?' वृद्ध बोला— 'नहीं, और कुछ करने की जरूरत नहीं है।'

बहुत दवा की बोतल लेकर घर गई। उसे देखते ही साथ उस पर बरस पड़ी। बहू के दिमाग का पारा ऊपर चढ़ने लगा। किंतु उसने कुछ कहा नहीं। झटपट भीतर गई और बोतल खोल एक खुराक मुंह में लेकर बाहर आ गई। सास बड़बड़ाती रही। बहू ने प्रतिवाद नहीं किया। करती भी कैसे? उसके मुंह में दवा थी। बोलने की स्थिति ही नहीं थी। सांस को मजा नहीं आया। प्रत्युत्तर न मिले तो अकेला व्यक्ति कितनी देर बोले। आखिर वह चुप हो गई। एक दिन में चार-पांच बार सास से झगड़ने का प्रसंग आया। बहू ने हर बार दवा का प्रयोग कर लिया। सास के सामने न बोलने से बहू के मन में पूरी शांति रही। शांति का गुर उसे मिल गया, फिर वह झगड़ा क्यों करती।

बहू के शांतिपूर्ण मौन से सांस को सोचने के लिए विवश कर दिया। वह भी पड़ोसी वृद्ध के पास जा दवा लेकर आई। उसने भी दवा का प्रयोग कर अपने आवेश को नियंत्रित कर लिया। कलह का वातावरण प्रेम में बदल गया। अनुभवी वृद्ध द्वारा बताई गई दवा ने नरक बने हुए घर को स्वर्ग बना दिया। सास-बहू मां-बेटी की तरह रहने लगीं। सास ने बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंच पारिवारिक दृष्टि से आनंद का जीवन जिया। बहू ने धन्यता का अनुभव किया।

*क्षान्ति का अर्थ विस्तृत रूप से* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 चेन्नई: जैन विद्या सप्ताह का शुभारंभ
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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👉 चेन्नई: 258 वें तेरापंथ स्थापना दिवस के अवसर पर "एक शाम तेरापंथ के नाम" भजन संध्या का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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  1. आचार्य
  2. कविता भंसाली
  3. तीर्थंकर
  4. दर्शन
  5. महावीर
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