13.07.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 13.07.2017
Updated: 14.07.2017

Update

👉 अहमदाबाद - जैन विद्या सप्ताह का शुभारंभ
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👉 चेन्नई: नवगठित तेरापंथ थली परिषद का "मेल-जोल" कार्यक्रम आयोजित

प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 102📝

*व्यवहार-बोध*

*क्षान्ति*

लय– देव! तुम्हारे...

*9. मेरी हरकत सहे...*

गतांक से आगे...

युवक का मन बुझ गया। वह वहां से जाने के लिए उद्यत हुआ तो कबीर बोले– 'वाह! ऐसे कैसे चले जा रहे हो? कुछ पेय तो लो।' युवक ने जाने के लिए बहाना बनाया, पर कबीर ने आज्ञा नहीं दी। उसने अपनी पत्नी से कहा— 'देखो जी, घर में मेहमान आया है। उसे कुछ खिलाओ-पिलाओ तो सही।' आतिथ्य के प्रसंग में कबीर की अच्छी प्रसिद्धि थी।

कबीर की पत्नी ने दूध के दो कटोरे लाकर रख दिए। कबीर ने एक कटोरा अपने सामने रखा और दूसरा युवक के हाथ में थमा दिया। वे दोनों दूध पीने लगे। इसी बीच कबीर की पत्नी यह पूछने के लिए आई कि दूध में मीठा कम तो नहीं है? कबीर बोले— 'तुम्हारा हाथ इतना सधा हुआ है कि तुम्हारा डाला हुआ मीठा कभी कम होता ही नहीं।' पत्नी आश्वस्त होकर चली गई। पर युवक को हंसी आ गई। वह मौन नहीं रह सका। उसने कबीर के मुखातिब होकर कहा— 'श्रीमान! मैं आपसे मार्गदर्शन लेने आया हूं, नाटक देखने नहीं।' कबीर बोले— 'कैसा नाटक?' विद्यार्थी ने कहा— 'दूध में नमक डाला गया है। दूध खारा है और आप क्या कह रहे हैं? दूसरी बात– यहां प्रकाश ही प्रकाश है। फिर भी आपने लैंप क्यों मंगवाया?'

कबीर बोले— 'वत्स! यह नाटक नहीं तेरे प्रश्न का उत्तर है।' युवक सहमा। कबीर ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा— 'वत्स! मैंने लैंप जलाने के लिए कहा, पत्नी ने कोई आपत्ति नहीं की। एक छोटा बालक भी जानता है कि अभी लैंप की जरूरत नहीं है। फिर भी मेरी इस हरकत को उसने सहजता से सहन कर लिया।'

कबीर रुके नहीं। उन्होंने दूध वाले प्रसंग को स्पष्ट करते हुए कहा— 'दूध मीठा नहीं है। उसमें चीनी के स्थान पर नमक डाला गया है। जहां तक मैं सोचता हूं, उसने यह गलती जान-बूझकर नहीं की है। तुम दोनों घटनाओं की तुलना करो। मैंने लैंप मंगवाया। पत्नी ने मेरी हरकत को सहन कर लिया। वह मुझे सहन कर सकती है तो क्या मैं इतना दुर्बल हूं कि उसके छोटे से प्रमाद को सहन न करूं। हम परस्पर एक दूसरे को सहन करते हैं। इसलिए शांति से रहते हैं। तुम अपनी जीवनसंगिनी की किसी भी हरकत को सहन कर सको और वह भी तुम्हारी हर हरकत को सहन कर सके तो गृहस्थी के द्वार पर दस्तक दो। अन्यथा कुछ समय प्रतीक्षा कर अपने आप को उस योग्य बनाओ। जो सहता है, वही सामूहिक जीवन में सुखी रहता है– यह बोधपाठ तुम्हारा मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।'

*अनासक्ति मुक्ति है और आसक्ति बंधन है। कैसे...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 102* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*अहमिन्द्र आचार्य इन्द्रदिन्न*
*आचार्य दिन्न*
*आचार्य सिंहगिरि*

प्रभावक आचार्यों की परंपरा में आचार्य इन्द्रदिन्न, आचार्य दिन्न, आचार्य सिंहगिरि तीनों को एक साथ प्रस्तुत किया जा रहा है। आचार्य सुहस्ती की गणाचार्य परंपरा में इन तीनों का क्रमशः उल्लेख है। कल्पसूत्र स्थविरावली में इनका वर्णन है।

*गुरु-परंपरा*

आचार्य सुहस्ती की परंपरा में गणाचार्य सुस्थित, सुप्रतिबुद्ध के बाद आचार्य इन्द्रदिन्न, आचार्य दिन्न, आचार्य सिंहगिरि हुए हैं। आचार्य सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध के पांच शिष्य थे। उनमें इंद्रदिन्न का नाम प्रथम है। आचार्य दिन्न के दो शिष्य थे। शांतिसेन और सिंहगिरि दशपुर्वधर गगनगामिनी विद्या के धारक, प्रभावक आचार्य वज्रस्वामी के आचार्य सिंहगिरि गुरु थे।

*जीवन-वृत्त*

आचार्य इंद्रदिन्न और आचार्य दिन्न में की जीवन संबंधी सामग्री विशेष प्राप्त नहीं है। आचार्य इंद्रदिन्न के गुरुबंधु मुनि आचार्य प्रियग्रंथ के जीवन की एक घटना उपलब्ध है।

प्रियग्रंथ मुनि मंत्र विद्या के ज्ञाता थे। एक बार वे हर्षपुर नगर में गए। वहां एक यज्ञ में बकरे की बलि दी जा रही थी। प्रियग्रंथ ने सोचा किसी प्रकार से इस बकरे की बलि को रोकने पर जैन धर्म की प्रभावना होगी। मुनि प्रियग्रंथ ने श्रावकों को मंत्रित चूर्ण दिया और उस चूर्ण को बकरे पर डालने के लिए कहा। श्रावकों ने वैसा ही किया। अभिमंत्रित चूर्ण के प्रभाव से बकरा बोलने लगा। बकरे के मुंह से मनुष्य की भाषा सुनकर लोग चकित रह गए। बकरे ने यज्ञ में होने वाली हिंसा को बंद करने का उपदेश दिया और मुनि प्रियग्रंथ की उपासना करने की प्रेरणा दी।

मंत्रविद्या के बल पर मुनि प्रियग्रंथ ने ब्राह्मण समाज को प्रतिबोध देकर अध्यात्म के अनुकूल बनाया। इतिहास में प्रियग्रंथ मुनि मंत्रवादी के रूप में प्रख्यात हैं।

*आचार्य सिंहगिरि के प्रभावक व्यक्तित्व* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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13 जुलाई का संकल्प

*तिथि:- सावन कृष्णा चतुर्थी*

राग - द्वेष विजेता जिन है जैन धर्म के प्रवर्तक ।
सुमिरन उनका आध्यात्मिक चेतना संवर्धक ।।

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*अणुव्रत महासमिति द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अणुव्रत साहित्यकार सम्मेलन*

👉 *विश्व शांति के लिए अणुव्रत का प्रयास अद्वितीय - केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल*
👉 *अणुव्रत साहित्य युवा पीढ़ी ले लिए अति आवश्यक केंद्रीय युवा एवं खेल राज्य मंत्री श्री विजय गोयल*
👉 *विभिन्न सत्रों मे साहित्यकारों ने बताई अणुव्रत की प्रासंगिकता*
👉 ख्यातनामा साहित्यकारो ने सम्मेलन में भाग लिया
👉 डॉ बलदेव भाई शर्मा, डॉ वेदप्रताप वैदिक, पद्मश्री सुरेन्द्र शर्मा, श्रीमती किरण चौपड़ा सहित ख्यातनामा साहित्यकारों की उपस्थिति में हुआ सम्मेलन

दिनांक - 09-07-2017

प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*

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दिनांक 12-07-2017 राजरहाट, कोलकत्ता में पूज्य प्रवर के आज के प्रवचन का संक्षिप्त विडियो..
प्रस्तुति - अमृतवाणी
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