19.07.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 19.07.2017
Updated: 21.07.2017

Update

34 वर्ष पुरानी दुर्लभ फोटो व् #आचार्यविद्यासागर जी ससंघ, श्री #जिनेन्द्रवर्णी जी के साथ #शिखरजी में:) #JinendraVarni #ShikharJi

25 अप्रैल, 1983 को आचार्य श्री विद्यासागर जी व् समस्त संघ का उपवास था तथा दोपहर के समय प्रवचन में आचार्य श्री ने जिनेन्द्र वर्णी जी के बारे में कहा "चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज के बाद ऐसी सल्लेखना हुई है, जो विरले ही होते है, मुझे विश्वास है कि वे 2-3 भव में अवश्य ही मोक्ष प्राप्त करेंगे, मेरी भावना है मेरी भी ऐसी ही सल्लेखना हो"

पूज्य जिनेन्द्र वर्णी जी ने 12 अप्रैल, 1983 को आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से सल्लेखना व्रत ग्रहण किया, जब आप धीरे धीरे सब कुछ आहार को छोड़ते जा रहे थे मात्र लोकी का पानी, मुनक्के के पानी को ही रखा था तब आपने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से मौन व्रत लेने की प्रार्थना की लेकिन आचार्य श्री ने कहा कि "आपके द्वारा किसी भव्य जीव कि शंका का निवारण हो सकता है " इसी कारन मौन कि स्वीकृति नहीं दी, 21 अप्रैल को आचार्य श्री ने जिनेन्द्र वाणी जी को क्षुल्लक दीक्षा प्रदान कि और उनका नाम "सिद्धांत सागर" रखा, धीरे धीरे सब आहार जल का त्याग करते हुए, 24 अप्रैल को पूर्ण जाग्रत अवस्था में, आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा णमोकार मंत्र श्रवण करते हुए, वस्त्र मात्र त्याग करके प्रात 11 बजे मंगल प्रस्थान कर गए!

Article Curtsey: “शांति पथ प्रदर्शन - जिनेन्द्र वर्णी ” #ShantiPathPradarshan #JinendraVarni #AcharyaShantiSagar

🎧 www.jinvaani.org @ e-Storehouse of Jinvaani, Be Blessed with Gem-trio! 😇

#Jainism #Digambara #Arihant #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #Rishabhdev #JainDharma #Parshwanatha #AcharyaVidyasagar #AcharyaShriVidyasagar #Ahinsa

Source: © Facebook

जिन-शासन क्या है? -क्षुल्लक ध्यानसागर जी शिष्य आचार्य विद्यासागर जी #KshullakDhyansagar

समणसुत्तं की गाथा क्रमांक 24 में लिखा है~
जं इच्छसि अप्पणतो जं च ण इच्छसि अप्पणतो।
तं इच्छ परस्स वि य एत्तियगं जिणसासणं॥

तीर्थंकर के धर्म-शासन को जिन-शासन कहते हैं। जिनेन्द्र भगवान् कहते हैं कि हे जीव! जो तू अपने लिये अच्छा अथवा बुरा समझता है, वही अन्य जीवों के विषय में भी समझ ले; बस इतना ही जिन शासन है। सभी को अपना जीवन और सुख प्रिय होता है तथा, कोई भी प्राणी मरना अथवा दुःखी होना नहीं चाहता। बस इसी भावना को सबके प्रति आचरण में लाने का नाम जिन शासन है।

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#Jainism #Digambara #Arihant #Tirthankara #Adinatha #Jain #LordMahavira #Rishabhdev #JainDharma #Parshwanatha #AcharyaVidyasagar #Shramana #AcharyaShriVidyasagar #Ahinsa

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34 वर्ष पुरानी दुर्लभ फोटो व् #आचार्यविद्यासागर जी ससंघ, श्री #जिनेन्द्रवर्णी जी के साथ #शिखरजी में:)

25 अप्रैल, 1983 को आचार्य श्री विद्यासागर जी व् समस्त संघ का उपवास था तथा दोपहर के समय प्रवचन में आचार्य श्री ने जिनेन्द्र वर्णी जी के बारे में कहा "चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज के बाद ऐसी सल्लेखना हुई है, जो विरले ही होते है, मुझे विश्वास है कि वे 2-3 भव में अवश्य ही मोक्ष प्राप्त करेंगे, मेरी भावना है मेरी भी ऐसी ही सल्लेखना हो"

पूज्य जिनेन्द्र वर्णी जी ने 12 अप्रैल, 1983 को आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से सल्लेखना व्रत ग्रहण किया, जब आप धीरे धीरे सब कुछ आहार को छोड़ते जा रहे थे मात्र लोकी का पानी, मुनक्के के पानी को ही रखा था तब आपने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से मौन व्रत लेने की प्रार्थना की लेकिन आचार्य श्री ने कहा कि "आपके द्वारा किसी भव्य जीव कि शंका का निवारण हो सकता है " इसी कारन मौन कि स्वीकृति नहीं दी, 21 अप्रैल को आचार्य श्री ने जिनेन्द्र वाणी जी को क्षुल्लक दीक्षा प्रदान कि और उनका नाम "सिद्धांत सागर" रखा, धीरे धीरे सब आहार जल का त्याग करते हुए, 24 अप्रैल को पूर्ण जाग्रत अवस्था में, आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा णमोकार मंत्र श्रवण करते हुए, वस्त्र मात्र त्याग करके प्रात 11 बजे मंगल प्रस्थान कर गए!

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जिन-शासन क्या है? -क्षुल्लक ध्यानसागर जी शिष्य आचार्य विद्यासागर जी #KshullakDhyansagar

समणसुत्तं की गाथा क्रमांक 24 में लिखा है~
जं इच्छसि अप्पणतो जं च ण इच्छसि अप्पणतो।
तं इच्छ परस्स वि य एत्तियगं जिणसासणं॥

तीर्थंकर के धर्म-शासन को जिन-शासन कहते हैं। जिनेन्द्र भगवान् कहते हैं कि हे जीव! जो तू अपने लिये अच्छा अथवा बुरा समझता है, वही अन्य जीवों के विषय में भी समझ ले; बस इतना ही जिन शासन है। सभी को अपना जीवन और सुख प्रिय होता है तथा, कोई भी प्राणी मरना अथवा दुःखी होना नहीं चाहता। बस इसी भावना को सबके प्रति आचरण में लाने का नाम जिन शासन है।

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"ध्यान तो हमारा हर समय लगा ही हुआ है लेकिन अभी ये विषय कषाये में ही लगा हुआ है और क्या ध्यान के कोई सींग या पूंछ होती है!!! [श्रावको में हंसी...]....नहीं..बस उस ध्यान को Divert करना है, उस ध्यान को Divert करने की कला सीखना है! ध्यान कुछ और है ही नहीं.......और आज कल खूब ध्यान से शिविर लगाये जा रहे है वो भी Air Condition में!!! [फिर श्रावको में हंसी....]" By - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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"ध्यान तो हमारा हर समय लगा ही हुआ है लेकिन अभी ये विषय कषाये में ही लगा हुआ है और क्या ध्यान के कोई सींग या पूंछ होती है!!! [श्रावको में हंसी...]....नहीं..बस उस ध्यान को Divert करना है, उस ध्यान को Divert करने की कला सीखना है! ध्यान कुछ और है ही नहीं.......और आज कल खूब ध्यान से शिविर लगाये जा रहे है वो भी Air Condition में!!! [फिर श्रावको में हंसी....]" By - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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गंदोदक की महिमॉ -मुनिश्री सुधासागर जी के प्रवचन से.. #MuniSudhasagar #share

१. भगवान को छूने का अधिकार जैन कुल ने दिया है लेकिन अगर इस अवसर का उपयोग नहीं किया तो कर्म आपको फिर इस अवसर से वंचित कर देगा!

२. प्राचीन शास्त्रों में पुरुषों के लिए जिन पूजा का नियम है और पूजा का आद्यांग (पहला अंग) अभिषेक है, केवल देव दर्शन नहीं; क्योंकि देव दर्शन तो पशु, हरिजन, महिला, कोड़ रोगी या पापी भी कर सकते हैं लेकिन ये सभी अभिषेक नहीं कर सकते!

३. मै (सुधा सागर महाराज जी) बहुत करुणा कर के कह रहा हूँ की बहुत गरीबी के समय माँ / घर की महिलाओं को भीख मंगवाने से भी बड़ा पाप है की तुम्हारे जीतेजी तुम्हारी माँ / घर की महिलाओं को मंदिर में जाके किसी और से गंदोदक माँगना पड़े!

४. १००० मुनिराज भी आशीर्वाद दे उससे भी ज्यादा मंगलकारी है अगर घर के पुरुष खुद गंदोदक बना के अपने घर की महिलाओं / बच्चो को लगाये

५. यहाँ तक की घर के पशुओं / नौकरों को भी गंदोदक दीजिये! घर पे आये मेहमान, घर पे आयी बारात का स्वागत गंदोदक से करिये! इसके लिए छोटा सा कलश रखिये और मंदिर जी से कभी खाली मत आओ! उस कलश में गंदोदक भर के घर लाइए! ऐसा करना बहुत ही मंगलकारी है! शाम को उस गंदोदक को या तो अपने सर पे लगा लीजिये, या ऐसी जगह डाल दीजिये जहा किसी के पैर न पड़ते हो!

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