24.07.2017 ►STGJG Udaipur ►Puna Chaturmas News

Published: 25.07.2017

News in Hindi

मानवीय चेतना के ओजस्वी आचार्य थे आनंदऋषि: दिनेष मुनि

जिनके जीवन से सीख मिले वही महापुरुष: डाॅ. द्वीपेन्द्र मुनि
  संतों के वचन समाज के लिए धरोहर: श्रमण डाॅ. पुष्पेन्द्र

पूना - 24 जुलाई 2017।

आचार्य आनंदऋषि ध्यान एवं ज्ञान योगी थे। वे पक्के अनुशासन प्रिय थे। वे सागर के समान गहराई, हिमालय सा शास्त्र चिंतन, कमल की तरह स्वच्छ मन, शेर की तरह निर्भीक, हाथी की तरह उदाŸा, मिश्री की तरह मीठी वाणी, सूर्य की तरह तेजस्वी तथा चन्द्रमा की तरह शीतलता लिए थे। उनमें आचार्य के 36 गुण मौजूद थे। उन्होंने 29 वर्ष तक श्रमण संघ के आचार्य पद का बड़ी कुशलता के साथ निर्वाह किया। उक्त विचार श्रमण संघीय सलाहकार दिनेश मुनि ने सोमवार दिनांक 24 जुलाई 2017 को पूना शहर के कात्रज स्थित ‘आनंद दरबार’  में आयोजित आचार्य आनंदऋषि के 118 वें जन्म जयन्ती समारोह में व्यक्त किए। 

सलाहकार दिनेश मुनि ने कहा कि आचार्य आनंदऋषि जी सिर्फ नाम के ही आनंद नहीं थे। उनका जीवन भी घनानंदी था। उनके सान्निध्य में जो भी आया उसने भी आत्मानंद का सुख लिया। इसलिए आनंद की प्राप्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिये। वे बहुभाषाविद् थे। उन्होंने स्वाध्याय पर बहुत बल दिया और जगह जगह स्वाध्याय संघों की स्थापना की। श्रमण संस्कृति के विकास में उनके दीर्घजीवी योगदान को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकेगा। कुल मिलाकर आचार्य श्री मानवीय चेतना के ओजस्वी पोशाक थे। संत समाज की अमूल्य धरोहर के रूप में हैं। संतों की जीवन मर्यादा व नियमों का केंद्र होता है, जिसे देखकर गृहस्थ समाज धर्मपथ पर चलने की प्रेरणा लेता है। उन्होंने कहा कि धन की तीन गतियां होती है दान, भाग व विनाश। इस कारण प्रत्येक मनुष्य को धन का सदुपयोग करते हुए अपनी सामर्थय के अनुसार समय-समय पर दान करते रहना चाहिए। अगर मनुष्य न तो दान देता है और न ही प्रयोग करता है तो धन की तीसरी गति विनाश निश्चित है। धन की रक्षा त्याग से होती है। श्रेष्ठ पुरुषों का धन दीन-दुखियों के दुखों को दूर करने के काम में आना चाहिए। किसी को जहर देने से तो खाली पात्र ही देना अच्छा होता है। मनुष्य को जो संपदा मिली है, वह संगृहित करते हुए फूंकने के लिए नहीं है बल्कि सत्कार्यों में उपयोग करने के लिए है। संतों का सानिध्य नगर-नगर और गांव-गांव में रहकर आत्मसाधना करने की प्रेरणा देता है। दान का क्षेय यश नहीं बल्कि आत्मसंतोष है और कहा भी गया है कि मांगने से तो देना बहुत बेहतर है। सच्चा धन वहीं है, जिसमें विनिमय की क्षमता है और जिसकी उपयोगिता है। मनुष्य के पास जो कुछ भी है, वह एक दिन दिया ही जाएगा। इस कारण मनुष्य जरूरतमंदों को अभी देने का काम करें ताकि उसे आत्मिक शांति की अनुभूति भी हो सकें। सच्चा धनी तो वह व्यक्ति है, जिसकी सोच है कि वह अपने धन से दीन दुखियों के आंसू पोंछे।

डाॅ. द्वीपेन्द्र मुनि ने आचार्य आनंदऋषि को सरलता की प्रतिमूर्ति बताते हुए कहा कि उनके जीवन में कभी अहं का भाव नहीं आया। वे छोटे के साथ छोटे व बडे के साथ बडे बन जाया करते थें। आचार्य पद पर आसीन होने के बावजूद वे बड़े सहज और सरलमना थे। दुनिया में उसी महापुरुष को स्मरण किया जाता है जिसके जीवन से प्रेरणा ली जा सके और कुछ ग्रहण किया जा सके। आचार्य आनंदऋषि प्रेरणा की प्रतिमूर्ति थे। उनके जीवन से त्याग, तप, अहिंसा, और संयम की प्रेरणा मिलती है। वे जैन संत रहते हुए जन - जन के संत थे।

डाॅ. पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि संतों के वचन समाज के लिए धरोहर हैं। राजा, रंक, संत सभी को इस दुनिया से जाना है। लेकिन संत के वचन सदियों तक मानव समाज का मार्गदर्शन करते रहते हैं। संसारी जन अपनी वसीयत अपने परिजन के लिए लिख कर जाता है। वहीं संत अपनी नसीहतें पूरे समाज को दे जाता है। जिससे जन कल्याण होता है। आजकल घरों में बड़ी मुश्किल से शास्त्र की किताबें मिलती हैं। जबकि हमें नियमित शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए। इससे ही जीवन का कल्याण होगा।

समारोह में गुरु आनंद कार्यक्षम पत्रकार पुरस्कार का आयोजन श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, दत्तनगर द्वारा आयोजित किया गया जिसमें महाराष्ट्र राज्य की सर्वप्रथम जैन मासिक पत्रिका ‘जैन जागृति’ के संस्थापक श्री कांतिलाल जी के सुपुत्र संजय सुनंदा चैरडिया व महाराष्ट्र का लोकप्रिय समाचार पत्र ‘लोकमत’ के पत्रकार श्री बजरंग निंबालकर को श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित करते हुए शाल माला व प्रतीक चिन्ह प्रदान किया गया। इसी क्रम में 25 देषों में भारत की ओर से जिम्नाटिक अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिता में सबसे कम उम्र की भाग लेने वाली पूना निवासी तनिषा चैपड़ा को भी जैन गौरव से सम्मानित किया गया इस अवसर पर आमदार भीमराव तापकीर, कात्रज डायरी के प्रबंधक प्रो. विवेक क्षीरसागर, नगरसेवक प्रवीण चोरबुले, नगरसेवक युवराज बेलदरे, नगरसेविका स्मिता कोन्डरे, नगरसेवक अष्विन कदम इत्यादि राजकीय गणमान्य महानुभाव उपस्थित थे। समारोह में आंनद महिला मंडल अध्यक्ष मंजूषा धोका, सुजाता सुराणा, प्रजक्त्या बागमार, सीमा डूंगरवाल, सतीष मुथा, सुनील गंुदेचा, रेष्मा धोका, सुषीला धोका सहित अनेक वक्ताओं ने विचार प्रस्तुत कर महापुरुष को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। संघपति बालासाहेब धोका ने उन्हें युगपुरुष बताते हुए 36 बार ‘श्री आंनद गुरुवे नमः’ का जाप संपन्न करवाया।

माज धर्मपथ पर चलने की प्रेरणा लेता है। उन्होंने कहा कि धन की तीन गतियां होती है दान, भाग व विनाश। इस कारण प्रत्येक मनुष्य को धन का सदुपयोग करते हुए अपनी सामर्थय के अनुसार समय-समय पर दान करते रहना चाहिए। अगर मनुष्य न तो दान देता है और न ही प्रयोग करता है तो धन की तीसरी गति विनाश निश्चित है। धन की रक्षा त्याग से होती है। श्रेष्ठ पुरुषों का धन दीन-दुखियों के दुखों को दूर करने के काम में आना चाहिए। किसी को जहर देने से तो खाली पात्र ही देना अच्छा होता है। मनुष्य को जो संपदा मिली है, वह संगृहित करते हुए फूंकने के लिए नहीं है बल्कि सत्कार्यों में उपयोग करने के लिए है। संतों का सानिध्य नगर-नगर और गांव-गांव में रहकर आत्मसाधना करने की प्रेरणा देता है। दान का क्षेय यश नहीं बल्कि आत्मसंतोष है और कहा भी गया है कि मांगने से तो देना बहुत बेहतर है। सच्चा धन वहीं है, जिसमें विनिमय की क्षमता है और जिसकी उपयोगिता है। मनुष्य के पास जो कुछ भी है, वह एक दिन दिया ही जाएगा। इस कारण मनुष्य जरूरतमंदों को अभी देने का काम करें ताकि उसे आत्मिक शांति की अनुभूति भी हो सकें। सच्चा धनी तो वह व्यक्ति है, जिसकी सोच है कि वह अपने धन से दीन दुखियों के आंसू पोंछे।

डाॅ. द्वीपेन्द्र मुनि ने आचार्य आनंदऋषि को सरलता की प्रतिमूर्ति बताते हुए कहा कि उनके जीवन में कभी अहं का भाव नहीं आया। वे छोटे के साथ छोटे व बडे के साथ बडे बन जाया करते थें। आचार्य पद पर आसीन होने के बावजूद वे बड़े सहज और सरलमना थे। दुनिया में उसी महापुरुष को स्मरण किया जाता है जिसके जीवन से प्रेरणा ली जा सके और कुछ ग्रहण किया जा सके। आचार्य आनंदऋषि प्रेरणा की प्रतिमूर्ति थे। उनके जीवन से त्याग, तप, अहिंसा, और संयम की प्रेरणा मिलती है। वे जैन संत रहते हुए जन - जन के संत थे।

डाॅ. पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि संतों के वचन समाज के लिए धरोहर हैं। राजा, रंक, संत सभी को इस दुनिया से जाना है। लेकिन संत के वचन सदियों तक मानव समाज का मार्गदर्शन करते रहते हैं। संसारी जन अपनी वसीयत अपने परिजन के लिए लिख कर जाता है। वहीं संत अपनी नसीहतें पूरे समाज को दे जाता है। जिससे जन कल्याण होता है। आजकल घरों में बड़ी मुश्किल से शास्त्र की किताबें मिलती हैं। जबकि हमें नियमित शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए। इससे ही जीवन का कल्याण होगा।

समारोह में गुरु आनंद कार्यक्षम पत्रकार पुरस्कार का आयोजन श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, दत्तनगर द्वारा आयोजित किया गया जिसमें महाराष्ट्र राज्य की सर्वप्रथम जैन मासिक पत्रिका ‘जैन जागृति’ के संस्थापक श्री कांतिलाल जी के सुपुत्र संजय सुनंदा चैरडिया व महाराष्ट्र का लोकप्रिय समाचार पत्र ‘लोकमत’ के पत्रकार श्री बजरंग निंबालकर को श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित करते हुए शाल माला व प्रतीक चिन्ह प्रदान किया गया। इसी क्रम में 25 देषों में भारत की ओर से जिम्नाटिक अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिता में सबसे कम उम्र की भाग लेने वाली पूना निवासी तनिषा चैपड़ा को भी जैन गौरव से सम्मानित किया गया इस अवसर पर आमदार भीमराव तापकीर, कात्रज डायरी के प्रबंधक प्रो. विवेक क्षीरसागर, नगरसेवक प्रवीण चोरबुले, नगरसेवक युवराज बेलदरे, नगरसेविका स्मिता कोन्डरे, नगरसेवक अष्विन कदम इत्यादि राजकीय गणमान्य महानुभाव उपस्थित थे। समारोह में आंनद महिला मंडल अध्यक्ष मंजूषा धोका, सुजाता सुराणा, प्रजक्त्या बागमार, सीमा डूंगरवाल, सतीष मुथा, सुनील गंुदेचा, रेष्मा धोका, सुषीला धोका सहित अनेक वक्ताओं ने विचार प्रस्तुत कर महापुरुष को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। संघपति बालासाहेब धोका ने उन्हें युगपुरुष बताते हुए 36 बार ‘श्री आंनद गुरुवे नमः’ का जाप संपन्न करवाया।

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Source: © FacebookPushkarWani

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