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बिच्छू के डंक मारने के बाद भी करूणा का भाव आए यहीं है जैन दर्शन -सुधासागर जी महाराज #MuniSudhaSagar
पुण्यात्मा अहित करने वाले का भी बुरा नही चाहती है। द्वेष का प्रतिकार द्वेष से नही प्रेम से करना चाहिए। शिकायत करने की परम्परा संस्कृति को मिटा देती है। भारतीय संस्कृति बुरे के साथ भी अच्छा करने वाली है। उक्त उद्गार मुनि पुंगव सुधासागर महाराज ने आर.के. कम्यूनिटी सेन्टर में चल रहे प्रवचन के दौरान कहे। मुनिश्री ने कहा कि बिच्छू डंक मारता है यह इसका स्वभाव है, सम्यक दृष्टि वह होती है अगर बिच्छू का जीवन संकट में है तो वह उसको बचाए चाहे वह उसको डंक ही मार दे। क्योंकि सम्यक दृष्टि धर्मात्मा जीव होता है और उसका स्वभाव है दया। जब बिच्छू अपना स्वभाव नहीं छोड़ता है तो फिर तुम अपना स्वभाव कैसे छोड़ सकते हो। अगर चार बार बिच्छू के डंक मारने के बाद भी तुम्हारे मन में उसके प्रति करूणा का भाव आता है, तो समझो तुम में धर्म उतर गया है और यही जैन दर्शन है। मुनिश्री ने कहा कि जीवन में नरम व गरम दोनों नीति होनी चाहिए। क्योंकि जब चोट नहीं लगेगी तो मरहम कैसे लगेगा।
अपमान का बदला सम्मान से दे वहीं भारत है और अपमान का बदला अपमान से लिया जाए वह पाश्चात संस्कृति है। मुनिश्री ने कहा कि दुश्मन देश भारतीय सैनिकों को आतंकवादी मान कर उसके शरीर का अपमान करता है लेकिन भारत अपने दुश्मन को मार कर भी उसे सम्मान के साथ लौटा देता है। भारत देश की महानता है कि जो हमारा बुरा चाहता है करता है हम उसका विकास करते है। मुनिश्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि निजी व समाज की लडाई में भागवान व मुनि को दोष नहीं देना चाहिए। भगवान व गुरू का कोई गु्रप नहीं होता वे सभी के लिए है। देव, शास्त्र, गुरू व ज्ञानी सूरज के समान होते है। हाथ में कला व समर्थ है तो जरूरतमंद की मदद करनी चाहिए। दृढ संकल्प व पावन आत्मा की सहायता देवता भी करते है। जीवन में सदैव सत्य व धर्म से मतलब होना चाहिए। श्रमण व जैन संस्कृति विनाश करके नही विकास करके जिंदा है। सम्यक दृष्टि व ज्ञानी का स्वभाव धर्म व दान करना है। धर्मात्मा वही है जिसके साथ बार बार बुरा होने पर भी वह सदैव दया भाव रखते हुए सहायता करता है। आज के श्रावक श्रेष्ठी के सवाल के जवाब में मुनिश्री ने कहा कि राखी का त्यौहार केवल भाई बहन तक ही सीमित नहीं है। यह रूढि़वादिता चली आ रही है। राखी हम उन सब को बांध सकते है जिससे हम अपनी रक्षा कराना चाहते है। एक पत्नि अपने पति के भी राखी बांध सकती है क्योंकि वह अपने पति से अपनी रक्षा चाहती है। रक्षा बंधन का अर्थ है रक्षा सूत्र।
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विद्याधर जैसा यार कहा.. कहा ऐसा याराना.. याद करेगी दुनिया इनका संयम मार्ग पर आजाना.. #AcharyaVidyasagar 😄😊😊 #HappYFriendshiDaY 😊☺️
#आचार्यविद्यासागर जी की दीक्षा के बाद जब उनके बचपन के मित्र मारुति मिलने पहुंचे और उनसे कहा कि मुझे अकेला छोड़ दिया, अब मैं क्या करूंÓ तब आचार्यश्री ने उन्हें विवाह के झंझट से दूर रहने को कहा और अपने मित्र की बात मानते हुए आचार्य ज्ञानसागर जी से ही ब्रम्हचर्य दीक्षा लेकर निरंतर व्रत का पालन कर रहे हैं। 😊😊
प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र रामटेक में मै और मेरे मित्र गेट के सामने खडे थे तो हमारा अचानक सामना हुआ मारूति काका से....पुरानी स्टाईल से सजे एक बुजुर्ग काकाजी से......प.पू.आचार्य गुरूवर के जीवन की कथा...जब भी आप पढेंगे....मारूति जी के प्रति सम्मान से भाव विभोर हो जायेंगे.... आचार्य विद्यासागरजी बनने की राह आसान की...। कर्नाटक के छोटे से गांव सद्लगा के रहने वाले मारुति अपने गांव के लोगों के साथ रामटेक में मिले.. उन्हें अहंकार नहीं बल्कि गर्व है कि ईश्वर ने आचार्यश्री की मदद का श्रेय उनकी झोली में डाला है। मारुति अपने बाल सखा यानी आचार्य विद्यासागर जी से इतने प्रभावित हैं कि उन्होंने भी आजीवन ब्रम्हचर्य का व्रत धारण कर लिया है। सिर पर सफेद गांधी टोपी, हल्की डाढ़ी पर सफेद बाल और चेहरे पर असीम शांति के अनूठे भाव...।
यह परिचय है आचार्य विद्यासागरजी के बालसखा मारुति का..। आचार्यश्री के साथ बीते बचपन के संस्मरण सुनाने की बात पर वे थोड़ा सकुचाए और फिर भाव विभोर होकर यादों में खो गए। 77 वर्षीय मारुति ने बताया कि आचार्यश्री बचपन से ही दृढ़ निश्चियी रहे। उनका घर का नाम विद्याधर था। करीब 20 की उम्र रही होगी, तभी से विद्याधर के मन में वैराग्य के भाव जाग उठे थे। वे शांतचित्त रहते थे और आध्यात्मिक किताबों में खोए रहते थे। वे बेहद सहज थे और लोगों के बीच रहकर भी दुनिया से अलग नजर आते थे।
मजदूरी करके की मित्र की मदद -मारुति के अनुसार विद्याधर की वह बात सीधे उनके दिल में लगी थी उन्होंने कहा कि वे आजीवन ब्रम्हचर्य अपनाना चाहते हैं। पहले मित्र के बिछडऩे का दुख हुआ, लेकिन जब विद्याधर ने मिथ्या संसार के सच से परिचय कराया तो मारुति की आंखें खुल गईं। फिर भी माता-पिता का भय था। विद्याधर अजमेर जाना चाहते थे। इसके लिए पैसों की बात आई तो मारुति ने उनका ढाढ़स बंधाया। मित्र की इच्छा को पूरा करने के लिए एक रुपए दिन के हिसाब से मजदूरी करके उन्होंने रुपए जोड़े और 117 रुपए विद्याधर को दिए। इन्हीं रुपयों की मदद से विद्याधर यानी आचार्य विद्यासागर1966 में जयपुर के चूलगिरी मंदिर पहुंचे। वहां उन्होंने आचार्य देशभूषणजी से ब्रम्हचर्य व्रत लिया।
एक साथ पढ़ाई, मारुति व विद्याधर सद्लगा गांव के ही विद्यालय में एक साथ पढ़ते थे। आचार्यश्री ने लौकिक जीवन में प्राइमरी से लेकर ९ वीं तक की पढ़ाई अपने बालसखा मारुति के साथ ही की। इतना ही नहीं मारुति उनके इतने करीब रहे कि वे अपना सुख-दुख भी उनसे साझा करते थे। खुद भी अपनाया ब्रम्हचर्य, हिन्दू परिवार में जन्मे मारुति के चेहरे पर ही देवत्व के भाव नजर आते हैं। एक सवाल पर उन्होंने कहा कि आचार्यश्री के शब्दों में जादू है। उन्होंने मिथ्या संसार का रहस्य बताया, यह बात मन को भा गई और मैने भी ब्रम्हचर्य के साथ जैन पंथ अपना लिया।
उम्र में पांच वर्ष का फासला,लौकिक जीवन के मित्र मारुति उम्र में आचार्य श्री से पांच वर्ष बड़े हैं, लेकिन उनका मन आचार्यश्री के चरणों का अनुरागी है। मारुति ने बताया कि 1968 में आचार्यश्री ने अजमेर में ही आचार्यश्री ज्ञानसागर जी से मुनि दीक्षा ली थी। विद्यासागरजी की मुनि दीक्षा भी आचार्य देशभूषणजी से होती लेकिन वे दक्षिण में उनके गृह गांव सद्लगा के पास ही स्वर्ण बेलगुरा जा रहे थे और उनको ऐसा आभास था कि घर के पास जाने पर परिवार के लोग पथ भटका सकते हैं, इसलिए उनकी आज्ञा से ही वे आचार्यश्री ज्ञानसागर जी के पास जाकर मुनि दीक्षा ली। उनकी दीक्षा के बाद जब मारुति मिलने पहुंचे और उनसे कहा कि मुझे अकेला छोड़ दिया, अब मैं क्या करूंÓ तब आचार्यश्री ने उन्हें विवाह के झंझट से दूर रहने को कहा और अपने मित्र की बात मानते हुए आचार्य ज्ञानसागर जी से ही ब्रम्हचर्य दीक्षा लेकर निरंतर व्रत का पालन कर रहे हैं। - अनीश जैन विदर्भ
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News in Hindi
Aura of #AcharyaVidyaSagar G -एक दिन अपने आपको वास्तुविद कहने वाले एक महाशय #आचार्यविद्यासागर जी महाराज के संघ में दर्शनार्थ पहुचे ओर वहां पहुच कर सभी मुनिराजों के दर्शन कर एक स्थान पर विराजित कुछ महाराजो के मध्य में आकर बैठ गए और अपने ज्ञान के बारे में बतलाने लगे चूंकि वह अपने आपको वास्तु की विद्या में पारंगत मानते थे सो सभी को उस ज्ञान की बिबिधताओ के बारे में बताते रहे वह अपने साथ ऊर्जा को नापने वाला एक यंत्र भी साथ लिये थे जिसे उन्होंने अभी कुछ ही दिनों पूर्व समझा था वह जमीन के नीचे बहने वाले ऊर्जा के स्रोत को पहिचान कर जमीन के गुण बता सकते थे कि वह कितनी उपजाऊ ओर रहने लायक है जमीन के नीचे कितना पानी और कहा है यह ज्ञान भी उन्हें था सो उत्सुकता वश मुनिराज ने उनसे अपने ज्ञान का कुछ प्रदर्शन करने को कहा..
महानुभाव ने तुरंत ही अपने यंत्र का उपयोग करते हुए जिस जमीन पर बैठे थे उसमे कितना ओर कहा पानी है ओर उस जमीन की उत्पादन क्षमता कितनी ओर कितनी ऊर्जा से युक्त है सब बता दिया तभी मुनिराज ने प्रश्न किया यदि मशीन जमीन आदि की ऊर्जा को नापने में सक्षम है तो फिर यह मशीन मानव शरीर मे स्थित ऊर्जा को भी माप सकती है ऐसा सुन कर उन महानुभाव ने तुरंत प्रभाव से इस प्रयोग को करने का उपक्रम किया और उन्होंने पास में बैठे एक श्रावक की ऊर्जा को नापने के प्रयास किया जो कि अत्यंत न्यून रही और उन्हें लगा कि वह इस प्रयोग में असफल रहे है, किन्तु मुनिराज के कहने पर जब ब्रह्मचारी जी के शरीर की ऊर्जा का माप किया गया तो उस यंत्र में हलचल तो हुई मगर जरा सी फिर क्षुल्लक जी के ऊपर प्रयोग किया गया ऊर्जा का विस्तार होता गया पुनः ऐलक जी के पास ऊर्जा और भी अधिक पायी गयी मुनिराज की ऊर्जा को नापने का प्रयास किया तो वह सर्वाधिक पायी गयी
अब प्रयोग को बहुआयामी विस्तार देने की बात मुनिराज ने कही उन्होंने कहा यह भी पता लगाओ की व्यक्ति की ऊर्जा का क्षेत्र कितनी दूर तक है अथार्त आभामण्डल का क्षेत्र कितना है पुनः वही प्रक्रिया दोहरायी गयी पहिले श्रावक दो कदम, क्षुल्लक जी पांच कदम, ऐलक जी दस कदम ओर मुनिराज लगभग बीस कदम तक की ऊर्जा से ओत प्रोत दिखाई दिए अथार्थ हम किसी ऐसे मुनिराज के पास जाते है तो हमारे भावो का परिवर्तन उनके आभा मण्डल में प्रवेश करते ही इसीलिये ही हो जाता है, अब सभी मुनिराजों में उत्सुकता हुई क्यों ना चल कर चुपके से आचार्य भगवंत के आभामण्डल को नापने का प्रयास किया जाए किन्तु सभी यह देख कर दंग रह गए बालकनी के दूसरी छोर पर बैठे आचार्य भगवंत की ऊर्जा का प्रभाव इस ओर तक फैला हुआ था सभी ज्यूँ ज्यूँ आगे बढ़ते गये ऊर्जा का प्रभाव बहुत अधिक होने लगा वह महानुभाव भी स्वयं चकित हो गए और उन्होंने आचार्य भगवंत के चरणों मे साक्षात दंडवत प्रणाम किया और आशीर्वाद लेकर बगैर कुछ कहे ही वापिस आ गए, आचार्य भगवंत की ऊर्जा का क्षेत्रफल लगभग 200 फ़ीट चारो दिशाओं में हमेशा महसूस किया जा सकता है तभी तो क्रूर से क्रूर प्राणी भी चरणों मे जा कर नतमस्तक हो जाता है*, कौतूहल वश मुनिराजों के मन मे एक विचार और आया जब यह यंत्र हमारी ऊर्जा को बता रहा है तो शरीर के विभिन्न भागों की भी अलग अलग ऊर्जा को बता भी सकता है ऐसा जान कर एक मुनिराज के अंगों पर प्रयोग शुरू किया गया पहिले पैरो की ओर से जांच शुरू हुई जो धीरे धीरे नापते हुए मस्तिष्क तक पहुची सभी यह जानकर अचंभित रह गए मुनिराज के ऊर्ध्व भाग में विद्यमान ऊर्जा सामान्य से कई गुना अधिक थी जो किसी की भी कल्पना से परे थी तुरंत ही सभी मुनिराजों ने कहा हम जानते थे ऐसा ही होगा क्योंकि यही वो स्थान है जहाँ ज्ञान का अदभुत भंडार है, में लिखू अथवा नही लिखू कोई फर्क नह पड़ता ऐसे ज्ञान के धारी मुनिराज को आप सभी अच्छी तरह से जानते है और उनके नाम को भी जानते है इसलिये अपने ज्ञान से उनके ज्ञान को प्रणाम अवश्य कीजिये ताकि आपके ज्ञान में भी कुछ बृद्धि हो, ऊर्जा के अथाह भंडार आचार्य भगवंत गुरु विद्यासागर जी महाराज पंचमकाल के सूर्य बनकर चमक रहे है उनकी रोशनी से हम सदा जगमगाते रहे इसी मंगल कामना के साथ उनके पचास्वे दीक्षा वर्ष की शुभकानाएं
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