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06 अगस्त का संकल्प
*तिथि:- सावन शुक्ला चतुर्दशी*
छोटे-छोटे तप बने नित का श्रृंगार ।
उज्जवल बने आत्मा आए निखार ।।
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🌻 *#तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 #जयपुर - महिला मंडल शपथ ग्रहण समारोह
👉 #जोरावरपुरा - तप अभिनंदन समारोह
👉 #बिड (#महा.) - तीन मास खमण तप का अभिनन्दन समारोह
प्रस्तुति - 🌻 *#तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 119📝
*व्यवहार-बोध*
*जीने की कला*
*(सोरठा)*
*53.*
उत्थान कर्म पौरुष प्रधान जिनदर्शन,
सब भाव नियत आजीवक मत संदर्शन।
सद्दालपुत्र ज्यों अपना आग्रह छोड़ें,
बन पुरुषार्थी जीवन की धारा मोड़ें।।
*29. उत्थान कर्म पौरुष प्रधान...*
गोशालक आजीवक मत का प्रसिद्ध आचार्य था। उसके लाखों श्रावक थे। पोलासपुर निवासी सद्दालपुत्र उनमें प्रमुख था। गोशालक के प्रति उसकी प्रगाढ़ आस्था थी। वह मानता था कि संसार का सर्वोत्तम धर्माचार्य गोशालक है। गोशालक की भी धारणा थी कि उसके मत का प्रमुख श्रावक सद्दालपुत्र है।
एक रात सद्दालपुत्र अशोकवनिका में सो रहा था। अचानक दिव्य वाणी हुई— 'सद्दालपुत्र! कल तुम्हारे शहर में महामहान आएंगे। वे त्रिलोकी के नाथ हैं, अहिंसा के अवतार है, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं। तुम उनके पास जाना। उन्हें वंदन-नमस्कार करना। उन्हें अपने घर आने के लिए अनुरोध करना और भक्तिपूर्वक स्थान, आसन आदि देना।' दिव्य वाणी सुनकर सद्दालपुत्र ने सोचा— जिस महामहान के आने की सूचना मिली है, वह गोशालक ही हो सकते हैं। धर्माचार्य का यहां आगमन मेरा अहोभाग्य है।
सूर्योदय के बाद सद्दालपुत्र ने सुना कि यहां महावीर आए हैं। कुछ क्षण वह असमंजस में रहा। फिर सोचा— महावीर भी अच्छे हैं, भगवान हैं, महामहान हैं। वहां जाकर व्याख्यान सुनना चाहिए। सद्दालपुत्र भगवान महावीर के समवसरण में गया। उसने प्रवचन सुना। प्रवचन की संपन्नता पर महावीर बोले— 'सद्दालपुत्र! कल रात तुमने देववाणी सुनकर कल्पना की थी कि यहां गोशालक आएगा। किंतु वह संकेत मेरे आगमन का ही था।'
सद्दालपुत्र ने महावीर से अपनी कुंभकारशाला में पधारने की प्रार्थना की। सद्दालपुत्र की प्रार्थना स्वीकार कर महावीर वहां पधारे। उस समय सद्दालपुत्र मिट्टी के पात्रों को सुखाने के लिए बाहर ले जा रहा था। महावीर ने पूछा— 'सद्दालपुत्र! ये मिट्टी के पात्र कैसे बने?'
सद्दालपुत्र बोला— 'भंते! मिट्टी खोदकर निकाली जाती है। उसे पानी से भिगोया जाता है। उसमें राख, गोबर आदि का मिश्रण किया जाता है। फिर उसे चाक पर चढ़ाया जाता है। उससे ये अनेक प्रकार के पात्र बनाए जाते हैं।' महावीर ने दूसरा प्रश्न पूछा— 'सद्दालपुत्र! इन पात्रों को कोई बनाने वाला है या ये अपने आप ही निष्पन्न हो जाते हैं?' सद्दालपुत्र बोला— 'भंते! इन्हें बनाने वाला कोई नहीं है। सब भाव नियत हैं– जिसको जैसा होना है वह वैसा ही होता है।' महावीर ने तीसरा प्रश्न पूछा— 'सद्दालपुत्र! कोई पुरुष तुम्हारे इन पात्रों का अपहरण कर ले, इन्हें बिखेर दे या फोड़ दे अथवा तुम्हारी पत्नी अग्निमित्रा के साथ दुष्कर्म करे तो तुम क्या करोगे?' सद्दालपुत्र बोला— 'भंते! मैं उस पर आक्रोश करूंगा, उसे पीटूंगा और जान से मार दूंगा।'
*महावीर ने सद्दालपुत्र को कैसे प्रतिबोधित किया...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 118* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*क्रांतिकारी आचार्य कालक (द्वितीय)*
गतांक से आगे...
आचार्य कालक का शिष्य संघ विशाल था पर उनके साथ आचार्य कालक का दृढ़ अनुबंध नहीं था। अविनीत शिष्यों के साथ रहने से कर्मबंधन होगा, यह सोचकर वे एकाकी पदयात्रा पर चले गए। यह प्रसंग उनकी निर्लेप साधना का प्रशस्त निदर्शन है।
आचार्य कालक का निमित्त एवं ज्योतिष ज्ञान विशद था।
अपने शिष्यों की अस्थिरता देखकर आचार्य कालक को अपने ज्योतिष ज्ञान संबंधी अपूर्णता की अनुभूति हुई। उन्होंने सोचा "मैं अभी तक ऐसा मुहूर्त्त नहीं जान सका जिससे मेरे द्वारा प्रव्रजित शिष्य स्थिरता को प्राप्त हो। इस प्रेरणा से प्रेरित होकर आचार्य कालक ने मुहूर्त्त विद्या प्रतिष्ठानपुर में आजीविकों से निःसंकोच ग्रहण की थी। आचार्यत्व का अहंभाव किसी प्रकार से शिक्षा ग्रहण करने में बाधक नहीं बना।
कालकाचार्य जब इरान गए उस समय वहां के मांडलिक राजाओं को निमित्तविद्या और मंत्रविद्या से प्रभावित कर उन्हें सौराष्ट्र में लाए थे। इस घटना से ज्ञात होता है ईरान अथवा सिंधप्रदेश जाने से पूर्व ही आचार्य कालक ने इस विद्या पर प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। आजीविकों से ज्योतिष विद्या ग्रहण का यह समय ग्रन्थों में वी. नि. 453 (वि. पू. 17) से पूर्व का बताया गया है।
आचार्य कालक का जीवन कई विस्मयकारी प्रसंगों से संयुक्त है। चतुर्थी को संवत्सरी मनाने के उनके सर्वथा सद्यस्क निर्णय को संघ ने मान्य किया। इसका कारण आचार्य कालक का तेजस्वी एवं क्रांतिकारी व्यक्तित्व था। आचार्य कालक की परंपरा में षाण्डिल्य शाखा का जन्म हुआ।
*समय-संकेत*
'दशाश्रुतस्कंध चूर्णि' के अनुसार आचार्य कालक वी. नि. 453 में आचार्य बने। वह उल्लेख इस प्रकार है।
*"तह गद्दभिल्लरज्जस्स छेदगो कालगायरियो हो ही।*
*तेवन्नचउसएहिं (453) गुणसयकालिओ पहाजुत्तो।।"*
आचार्य कालक जैन इतिहास प्रसिद्ध अवंती नरेश गर्दभिल्ल के समकालीन थे। मेरुतुंग की 'विचार श्रेणी' में उज्जयिनी पति गर्दभिल्ल के शासनकाल का उल्लेख वी. नि. 453 से 466 (वि. पू. 17 से 4) तक का है। गर्दभिल्लोच्छेदक घटना का समय वी. नि. 466 माना है।
इन उपर्युक्त संदर्भों के आधार से स्पष्ट है क्रांतिकारी कालक द्वित्तीय वी. नि. 5वीं (विक्रम की प्रथम शताब्दी) के विद्वान आचार्य थे।
*क्षमाधर आचार्य खपुट के जीवन-वृत्त* में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 118📝
*व्यवहार-बोध*
*जीने की कला*
*(सोरठा)*
*53.*
जो अपना अज्ञान, पहचाने सुकरात ज्यों।
देवी का आह्वान, सर्वाधिक ज्ञानी वही।।
*28. जो अपना अज्ञान...*
मनुष्य की मनोवृत्ति है कि वह अपने अज्ञान या अपनी दुर्बलता को देख नहीं पाता। उसे अपनी विशेषता दिखाई देती है और दूसरों की कमियां। जिस दिन उसे अपना अज्ञान दिखाई देने लगता है, वह सबसे बड़ा ज्ञानी बन जाता है। इस विषय में सुकरात का उदाहरण बहुत प्रेरक है।
यूनान की प्रसिद्ध देवी 'जैंथिप्पी' कभी-कभी यूनानवासियों के सामने प्रकट होती थी। जिस दिन वह दर्शन देती, जनता की भीड़ उमड़ पड़ती। वह केवल दर्शन ही नहीं देती थी, यदा-कदा नई बात भी बताती थी। इसलिए उसके प्रति लोगों में अधिक आकर्षण था।
एक दिन देवी प्रकट हुई। लोग दर्शन करने गए। एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया— 'मां! यूनान में सबसे बड़ा ज्ञानी कौन है?' देवी बोली— 'प्रसिद्ध तत्त्ववेत्ता सुकरात यूनान का सबसे बड़ा ज्ञानी व्यक्ति है।' यह बात सुनते ही लोगों के मुंह सुकरात के घर की ओर हो गए। वे उसे बधाई देने के लिए अहंपूर्विकया अहंप्रथमिकया दौड़ने लगे।
सुकरात अपने घर में बैठा तत्त्वज्ञान की गहराई में गोते लगा रहा था। अपने सामने बढ़ती हुई लोगों की भीड़ देख उसे आश्चर्य हुआ। वह कुछ पूछता, उससे पहले ही कुछ लोग बोल उठे— 'सुकरात! तुम धन्य हो, तुम हमारे देश के सबसे बड़े तत्त्वज्ञानी हो।' यह बात सुनकर सुकरात ने कहा— 'भाइयों! आप की जानकारी ठीक नहीं है। किसी दूसरे ज्ञानी पुरुष के भरोसे आप मेरा नाम ले रहे हैं, ऐसा लगता है।' सुकरात के कथन से लोग संदिग्ध हो गए। वे फिर देवी के पास जाकर बोले— 'मां! वह आदमी तुम्हारी बात को अस्वीकार कर रहा है।' देवी ने उनको समझाते हुए कहा— 'वह कुछ भी करे और कुछ भी कहे, ज्ञानी वही है। तुम वहीं जाओ।' लोग बेचारे असमंजस की स्थिति में आ गए। वे पुनः सुकरात के पास गए और बोले— 'देवी का ज्ञान गलत नहीं हो सकता। उसने निश्चित रूप से तुम्हें ही ज्ञानी बताया है।' इस पर सुकरात ने कहा— 'आप लोग दो घंटे पहले आते तो मैं इस बात को स्वीकार कर लेता। अब मैंने अपना अज्ञान पहचान लिया है। मैं जानता हूं कि मुझमें कितना अज्ञान भरा है। इसलिए आपकी बात नहीं मान सकता।'
सुकरात के वचनों से हताश लोग फिर देवी के पास गए और सुकरात द्वारा कही गई बात बता दी। देवी बोली— 'यही तो रहस्य की बात है। जो व्यक्ति अपने अज्ञान को पहचानता है, वही सबसे बड़ा ज्ञानी होता है।
*पुरुषार्थी बन जीवन की धारा मोड़ने की प्रेरणा देते सद्दालपुत्र का एक जीवन प्रसंग* पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 पूज्य प्रवर का प्रवास स्थल -"#राजरहाट", #कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में
👉 #गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..
👉 आज के "#मुख्य #प्रवचन" के कुछ #विशेष #दृश्य..
दिनांक - 05/08/2017
📝 #धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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News in Hindi
*#महाश्रमण चरणों मे*
👉 *16 वर्ष की अल्प आयु में #साध्वी श्री #विशालप्रभा ने किया #31कि #तपस्या का #प्रत्याख्यान*
👉 *पूज्य प्रवर व साध्वी प्रमुखा श्री जी का सान्निध्य*
दिनांक 05-08-17
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