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प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*
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दिनांक 10-08-2017 #राजरहाट, #कोलकत्ता में #पूज्यप्रवर के #आज के #प्रवचन का #संक्षिप्त #विडियो..
प्रस्तुति - #अमृतवाणी
#सम्प्रेषण -👇
📝 #धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *#तेरापंथ #संघ #संवाद* 🌻
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प्रस्तुति: 🌻 *#तेरापंथ #संघ #संवाद* 🌻
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News in Hindi
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#जैनधर्म की #श्वेतांबर और #दिगंबर #परंपरा के #आचार्यों का #जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 123* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*नयनानंद आचार्य नंदिल*
*और*
*आचार्य नागहस्ती*
*जीवन-वृत्त*
आचार्य देवर्द्धिगणी ने वंदन करते समय आचार्य नंदिल और आचार्य नागहस्ती के गुणों का वर्णन किया है। आचार्य नंदिल के संबंध में देवर्द्धिगणी रचित नंदी स्थविरावली का पद्य इस प्रकार है—
*नाणम्मि दंसणम्मि य, तव-विणए णिंच्चकालमुज्जुत्तं।*
*अज्जं नंदिलखमणं, सिरसा वंदे पसण्णमणं।।29।।*
ज्ञान योग, दर्शन योग, तपःयोग विनय योग में जो निरंतर प्रयत्नशील हैं उन प्रसन्नमना क्षमाशील आचार्य नंदिल को में वंदन करता हूं।
प्रभावक चरित्र में प्राप्त वर्णनानुसार आचार्य नंदिल ने सास के व्यवहार से खिन्न वैरोट्या नामक एक बहन को क्षमाधर्म का उपदेश देकर उसके मन के आवेग को शांत किया था। वैराग्य को प्राप्त कर एक दिन वह बहन साध्वी बनी और समताभाव से मृत्यु को प्राप्त कर तीर्थंकर पार्श्वनाथ का परम भक्त नागराज धरणेंद्र की देवी बनी। पूर्व उपकार का स्मरण करती हुई वैराट्या देवी आचार्य नंदिल के प्रति विशेष आस्था रखती थी। पार्श्वनाथ के भक्तों का दुख दूर करने के लिए वह सहयोग किया करती थी। प्रभावक चरित्र में इसका उल्लेख इस प्रकार है
*सापि प्रभौ भक्तिमतां चक्रे साहाय्यमद्भुतम्।।79।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 21)*
आचार्य नंदिल ने "नमिऊण जिणं पासं...." इस मंत्र से युक्त वैरोट्यास्तवन की रचना की थी। उस स्तवना की प्रभाविता को बताते हुए प्रभाचंद्राचार्य लिखते हैं
*"एकचितः पठेन्नित्यं त्रिसन्ध्यं य इमं स्तवम्।*
*विषाद्युपद्रवाः सर्वे तस्य न स्युः कदाचन"।।81।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 21)*
आचार्य नंदिल सार्ध नौ पूर्वों के धारक थे ऐसा उल्लेख प्रभावक चरित्र में है।
आठ नागकुल भी आर्य नंदिल से प्रभावित थे। आचार्य नंदिल से संबंधित प्रकरण में पद्मनी खण्ड नगर, पद्मप्रभ राजा, पद्मावती रानी, पद्मदत्त श्रेष्ठी, पद्मयशा पत्नी आदि इस प्रकार पद्म प्रधान नाम रुचिकर प्रतीत होते हैं। उस समय के इतिहास को जानने के लिए भी ये महत्वपूर्ण बिंदु हैं।
*आचार्य नागहस्ती*
वाचन आचार्य नागहस्ती के विषय में नंदी स्थविरावली में उल्लेख है
*वड्ढउ वायगवंसो, जसवंसो अज्ज-नागहत्थीणं।*
*वागरण-करण-भंगी-कम्मपयडी-पहाणाणं।।30।।*
जीवादि पदार्थों के व्याख्याता, चरणकरणानुयोग में निष्णात, विविध प्रकार के भङ्ग और विकल्पों के प्ररूपक तथा कर्म प्रकृतियों के विशेषज्ञ महान् यशस्वी आचार्य नागहस्ती थे।
युग प्रधान आचार्य नागहस्ती का आचार्य काल 69 वर्ष का माना गया है।
*समय-संकेत*
आचार्य नंदिल के गुरु आचार्य मंगू का स्वर्गवास वी. नि. 470 में हुआ था। अतः आचार्य मंगू के उत्तरवर्ती आचार्य नंदिल और आचार्य नंदिल के उत्तरवर्ती आचार्य नागहस्ती का सत्ता समय वी. नि. पांचवी और छठी शताब्दी संभव है।
*परोपकार परायण आचार्य पादलिप्त* के प्रभावक चरित्र के बारे में पढ़ेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
#प्रस्तुति --🌻#तेरापंथ #संघ #संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 123📝
*व्यवहार-बोध*
*विवेक जागरण*
*(मुक्त छन्द)*
*58.*
असंग्रही मुनि सतियां, संग्रहवृत्ति बढ़े क्यों?
अनापेक्षित आशंका का सिर भूत चढ़े क्यों?
यदि लघुभूतविहारी भारी बन जाएगा,
फिर मस्ती का जीवन कैसे जी पायेगा?
*59.*
छोटी-छोटी मर्यादा पर लापरवाही,
धीरे-धीरे बढ़ती ही जाएगी खाई।
प्रतिस्रोत का पथ जो हमने अपनाया है,
खबरदार! जो सुविधावाद पनप पाया है।।
*60.*
दोनों पथ उत्सर्ग और अपवाद सही है,
पर तटस्थ मध्यस्थ सोच की प्रथा रही है।
देखादेखी अनपेक्षित अपवाद जगेगा,
तो रस सूख गया छिलका ही हाथ लगेगा।।
*32. दोनों पथ उत्सर्ग और...*
जैन आगमों में दो शब्द आते हैं— उत्सर्ग और अपवाद। उत्सर्ग का अर्थ है सामान्य विधि। अपवाद का अर्थ है विशेष परिस्थिति में काम ली जाने वाली विधि।
*उत्सर्ग विधि–* वर्षा में साधु स्थान से बाहर नहीं जाता।
*अपवाद विधि–* पंचमी समिति के लिए वर्षा में भी बाहर जा सकता है।
*उत्सर्ग विधि–* प्रतिदिन एक घर से भिक्षा नहीं लेना।
*अपवाद विधि–* बीमारी आदि की स्थिति में अमुक-अमुक पदार्थ प्रतिदिन लिए जा सकते हैं।
उत्सर्ग और अपवाद— दोनों मार्ग आगम सम्मत हैं। इसलिए दोनों विधियां काम में ली जाती हैं। किस समय कौन सी विधि काम में ली जाए? इस विषय में तटस्थ दृष्टि से चिंतन का मार्ग सदा खुला रहता है। अमुक व्यक्ति ने वह काम किया, इसलिए मैं भी करूंगा– अपवाद मार्ग में चिंतन की यह शैली प्रशस्त नहीं हो सकती। यदि देखादेखी अपवाद बढ़ेगा तो साधना का रस सूख जाएगा और साधक के हाथ में केवल छिलका ही रहेगा।
*61.*
अधिकृत आचार्यों का जो निर्देश नियामक,
वह होगा आपाधापी-आमय का शामक।
नहीं रूढ़ता और मूढ़ता का पखपाती,
तेरापंथ कभी क्यों होगा प्रवाहपाती?
*33. अधिकृत आचार्यों का...*
उत्सर्ग और अपवाद मार्ग के सेवन में प्रमाण पुरुष कौन? इस विषय में संघ के अधिकारी आचार्यों के निर्देश को ही नियामक मानना चाहिए। कोई भी व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता से किसी अपवाद का सेवन नहीं कर सकता। उसके लिए उसे आचार्यों का निर्देश प्राप्त करना होगा। वह निर्देश ही स्वेच्छाचारिता रूपी बीमारी का शमन कर पाएगा।
तेरापंथ की आज तक की परंपरा बताती है कि वह न किसी बात पर रूढ़ है, न उसे किसी परंपरा का व्यामोह है और न वह प्रवाह में बहने वाला है। श्रद्धा, आचार या परंपरा के किसी भी प्रश्न पर तटस्थ दृष्टि से चिंतन के बाद निर्णय लेना इसकी विशेषता है। मौलिकता की सुरक्षा के साथ विकास की नई दिशाओं के उद्घाटन का यही रहस्य है।
*सेवा* के बारे में पढेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻#तेरापंथ #संघ #संवाद🌻
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👉 राजरहाट, कोलकत्ता से..
👉 महाश्रमण चरणों में...
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🌻 *#तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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