12.08.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 12.08.2017
Updated: 13.08.2017

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👉 #ट्रिप्लीकेन, #चेन्नई: #समणी #केन्द्र "#मंगल #प्रवेश"
👉 #बेंगलोर - #जैन #संस्कार #विधि के बढ़ते चरण
#प्रस्तुति: 🌻 *#तेरापंथ #संघ #संवाद* 🌻

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👉 #चेन्नई: #मासखमण "#तप #अभिनंदन" #समारोह का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *#तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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#जैनधर्म की #श्वेतांबर और #दिगंबर #परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के #प्रभावक #आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 126* 📝

*परोपकार परायण आचार्य पादलिप्त*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

पुत्र जन्म के पूर्व वचनबद्ध होने के कारण प्रतिमा ने अपने पुत्र को नागहस्ती के चरणों में समर्पित कर दिया। नागहस्ती में अल्पवय शिशु को प्रतिपालना के लिए जननी प्रतिमा के पास ही रखा। आठ वर्ष की अवस्था में बालक को आचार्य नागहस्ती ने अपने संरक्षण में लिया। मुनि संग्रामसिंह नागहस्ती के गुरुबंधु थे । आचार्य नागहस्ती के आदेश से शुभ मुहूर्त में संग्रामसिंह सूरि ने नागेंद्र को मुनि दीक्षा प्रदान की। मंडन मुनि की सन्निधि में बाल मुनि का अध्ययन प्रारंभ हुआ। मुनि नागेंद्र की बुद्धि शीघ्रग्राही थी। एक वर्ष की अल्प अवधि में उन्होंने व्याकरण, न्याय, दर्शन, प्रमाण आदि विविध विषयों का गंभीर ज्ञान अर्जन किया।

एक दिन मुनि नागेंद्र जल लाने के लिए गए। गोचरी से निवृत्त होकर वह उपाश्रय में लौटे और ईर्यापथिकी आलोचना करने के बाद गुरु के समक्ष उन्होंने एक श्लोक बोला

*अंबं तंबच्छीए अपुप्फियं पुप्फदंतपंतीए।*
*नवसालिकंजियं नववहूइ कूडएण मे दिन्नं।।38।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 29)*

ताम्र की भांति ईषत् रक्ताभ नयनी, पुष्पोपम दंत पंक्ति की धारिणी नववधू ने मिट्टी के बने नए करुए (बर्तन) से मुझे यह कांजी जल प्रदान किया।

शिष्य के मुख से श्रृंगारमयी भाषा सुनकर गुरु अप्रसन्न हुए। उन्होंने कठोर शब्दों में कहा *"पलित्तोऽसि"*। पलित्त शब्द प्राकृत भाषा का है एवं कामाग्नि से प्रदीप्त भावों का द्योतक है।

मुनि नागेंद्र सद्योत्तर प्रतिभा के धनी थे। गुरु द्वारा उच्चरित शब्द को अर्थान्तरित करने हेतु मुनि नागेंद्र ने नम्र हो कर कहा 'आर्यदेव! पलित्त में एक मात्रा बढ़ा कर उसका पालित्त बनाने का आप द्वारा प्रसाद प्राप्त हो। एक मात्रा वृद्धि से *'पालित्तओ'* का संस्कृत में पादलिप्त हो जाता है। पादलिप्त से मुनि नागेंद्र का तात्पर्य था।

*"गगनगमनोपायाभूतां पादलेप विद्या मे देहि येनाहं 'पादलिप्तक' इत्यभिधीये।"* मुझे गगन गमन में उपायभूत पादलेप विद्या का दान करें जिससे मैं पाद लिप्तक कहलाऊं।

एक मात्रा की वृद्धि से पलित शब्द को विलक्षण अर्थ प्रदायिनी मुनि नागेंद्र की प्रज्ञा पर गुरु प्रसन्न हुए। उन्होंने गगन-गामिनी विद्या से विभूषित होने *'पादलिप्तोभव'* का शुभ आशीर्वाद शिष्य को दिया। उस समय से मुनि नागेंद्र का नाम पादलिप्त प्रसिद्ध हो गया।

प्रबंधकोश के अनुसार गुरु नागहस्ती ने मुनि नागेंद्र को पादलेप विद्या प्रदान की, जिससे मुनि को गगन में यथेच्छ विहरण करने की क्षमता प्राप्त हो गई।

दस वर्ष की अत्यल्प उम्र में गुरु ने उन्हें विशाल संघ के आचार्य जैसे गरिमापूर्ण पद पर नियुक्त किया।

आचार्य पादलिप्त के शिशु काल में गुरु ने उनकी माता को बालक के संघ प्रमुख होने का संकेत किया था। गुरु की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई।

*आचार्य पादलिप्त के जीवन-वृत्त* के बारे में आगे और जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

#प्रस्तुति --🌻#तेरापंथ #संघ #संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 126📝

*व्यवहार-बोध*

*केकड़ा वृत्ति*

लय– देव! तुम्हारे...

*68.*
बढ़ें प्रगति के सही पन्थ पर,
एक दूसरे को सीचें।
क्यों ऊपर चढ़ने वालों की,
ईष्या से टांगें खींचें।।

*69.*
क्यों पनपे जागृत समाज में,
व्यर्थ केकड़ा वृत्ति कभी।
एक निष्ठ हो करना इसका,
मूलोच्छेदन अभी-अभी।।

*39. क्यों पनपे...*

इस पद्य में केकड़ा वृत्ति का उल्लेख है। यह वृत्ति क्या है? इसे एक उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता है—

एक धीवर मछली पकड़ने के लिए समुद्र तट पर पहुंचा। उसने जाल फेंका। जाल में कुछ मछलियां फंसीं और कुछ केकड़े फंसे। धीवर ने उनको जाल से निकालकर अलग-अलग टोकरियों में डाल दिया। मछली की टोकरी पर उसने ढक्कन लगाया और केकड़े वाली टोकरी खुली छोड़ दी। टोकरी में डाले गए केकड़ों में से कुछ टोकरी की दीवार के सहारे चढ़ने लगे।

समुद्र तट पर भ्रमण कर रहे व्यक्तियों में से एक व्यक्ति बोला बोला— 'अरे भाई! ये केकड़े बाहर निकल रहे हैं। तुमने टोकरी को खुला क्यों छोड़ रखा है।' यह बात सुन धीवर बोला— 'बाबूजी! आप नहीं जानते। इनमें एक भी केकड़ा बाहर नहीं जाएगा।' उस व्यक्ति ने पूछा— 'क्यों?' धीवर बोला— 'केकड़ों में टांग खींचने की वृत्ति है। कोई भी केकड़ा बाहर निकलने के लिए ऊपर चढ़ेगा, दूसरा केकड़ा उसकी टांगे खींचकर उसे नीचे ले आएगा। इसलिए कोई कितना ही प्रयास करे, बाहर निकलने में सफल नहीं हो सकेगा।'

केकड़ों में टांग खींचने की वृत्ति हो सकती है। क्योंकि वे इसके लाभ-अलाभ को नहीं जानते। पर यह वृत्ति मनुष्य में आ जाए तो सामाजिक विकास के द्वार बंद हो जाते हैं। किसी जागृत समाज में 'केकड़ा वृत्ति' को पनपने का अवसर न मिले, इस दृष्टि से यह उदाहरण दिया गया है।

*जटायु वृत्ति* के बारे में आगे पढेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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Update

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दिनांक 12-08-17

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12 अगस्त का संकल्प

*तिथि:- भादवा कृष्णा पंचमी*

शनिवार है आज सपरिवार हों सामयिक में लीन ।
शाम 7 से 8 हो जाएं गुरु इंगित की आराधना में तल्लीन ।।

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