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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 132* 📝
*परोपकार परायण आचार्य पादलिप्त*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
विद्वान नागार्जुन पादलिप्त सूरि के पास गया और विनयपूर्वक बोला "मनीषिवर! आप सिद्धयोगी हैं। आपकी विद्याओं के सामने मेरी सुवर्ण रससिद्धि का अभिमान विगलित हो गया है। अब मैं आपके पास रहना चाहता हूं। मिष्ठान्न मिलने पर सामान्य भोजन की कौन इच्छा करता है?"
गगनगामिनी विद्या प्राप्त करने का अभिलाषी विद्वान नागार्जुन पादलिप्त सूरि की सन्निधि में रहने लगा। वह प्रसन्न निभाव से उनकी सुश्रुषा एवं चरण प्रक्षालन का कार्य करता था। पादलिप्त सूरि पैरों पर लेप लगाकर तीर्थ भूमि स्थलों पर और गिरिश्रृंगों पर प्रतिदिन गगन मार्ग से आते-जाते थे। उनके आवागमन का यह कार्य एक मुहूर्त में संपन्न हो जाता था। विद्याचरण लब्धि के धारक साधकों जैसी क्षमता पादलिप्त सूरि में थी। आर्य नागार्जुन पाद प्रक्षालित उदक के वर्ण, गंध, स्वाद आदि को देखकर, सूंघकर और चखकर 107 द्रव्यों का ज्ञाता हो गया। पादलिप्त सूरि की भांति विद्वान नागार्जुन भी पैरों पर लेप लगाकर आकाश में उड़ने का प्रयास करता पर पूर्ण ज्ञान के अभाव में वह ताम्रचूड़ पक्षी की तरह थोड़ी ऊंचाई पर जाकर नीचे गिर पड़ता और घायल हो जाता। पैरों के घाव को देखकर पादलिप्त सूरि विद्वान नागार्जुन की असफलता का कारण समझ गए और उनसे बोले "मनीषी! तुम्हारी इस अपूर्णता का प्रमुख कारण गुरु गम्य ज्ञान का अभाव है। गुरु के मार्गदर्शन के बिना कला फलवान नहीं होती। ज्ञान प्राप्ति में अहं का साथ नहीं निभता।" नागार्जुन बोला "देव! आपका वचन प्रमाण है। गुरु के मार्गदर्शन के बिना सिद्धि नहीं मिलती। यह मैं जानता हूं, पर मैं अपनी बुद्धि की परीक्षा कर रहा था। पादलिप्त सूरि नागार्जुन की सरलता पर प्रसन्न हुए और बोले "नागार्जुन! मैं न तुम्हारी सुवर्ण रस सिद्धि से संतुष्ट हूं और न अन्य प्रकार की सेवा सुश्रुषा से पर तुम्हारी प्रज्ञा पर मुझे संतोष है। मैं तुम्हें विद्यादान करूंगा। तुम मुझे गुरु दक्षिणा में क्या दोगे?" नागार्जुन ने झुककर कहा "आप जो कहें मैं देने के लिए तैयार हूं।" पादलिप्त सूरि ने नागार्जुन को जैन मत स्वीकार करने का उपदेश दिया। नागार्जुन ने उनका शिष्यत्व स्वीकार कर लिया। उदार वृत्तिक पादलिप्त सूरि ने उनको पादलेप विद्या का समग्रता से बोध देते हुए कहा
*"आरनालविनिर्द्धौततन्दुलामलवारिणा।*
*पिष्ट्वौषधानि पादौ च लिप्त्वा व्योमाध्वगो भव"*
*।।297।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 38)*
"शिष्य! तुम्हें एक सौ सात औषधियों का ज्ञान है। इनके साथ कांजीजल मिश्रित साठी तंदुल का लेप करो। तुम निर्बाध गति से गगन यात्रा कर सकोगे।" गुरु के मार्गदर्शन में नागार्जुन को अपने कार्य में पूर्ण सफलता हुई।
*आचार्य पादलिप्त सूरि के प्रभावक जीवन वृत्त* के बारे में आगे और जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 132📝
*व्यवहार-बोध*
*प्रकृतिपरिष्कार*
*चोखी प्रकृति नों धणी*
*1.*
करै चालंता बात,
कहै कोई ते भणीं।
कर जोड़ तथा कहै ठीक,
चोखी प्रकृति नों धणी।।6।।
*2.*
अविनीत करै को बात,
मन भांगण तणी।
(तसु) पासै वेसंता अत्यंत लाज,
चोखी प्रकृति नों धणी।।22।।
*3.*
पाया रुपइया नानाणूं,
प्रकृति सुध जेह तणी।
रह्यो भणवा रो रुपियो एक,
चोखी प्रकृति नों धणी।।27।।
*4.*
न करै औरा री होड,
आतम वश अति घणी।
सदा काल सुखदाय,
चोखी प्रकृति नों धणी।।33।।
*5.*
जो तिण ने न दियै वस्त्रादिक,
तो खंच न मन तणी।
दियां न दियां समभाव,
चोखी प्रकृति नों धणी।।35।।
*6.*
स्वार्थ पूगां न पूगां तास,
सुगुरु सिरोमणि।
राखै तुल परिणाम,
चोखी प्रकृति नों धणी।।36।।
*चोखी प्रकृति नों धणी ढाल के पद्य* आगे और पढेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*#पूज्यवर द्वारा घोषणा*
👉 *साधना का प्रज्ञापीठ के रूप में श्रीमज्जयाचार्य की समाधिस्थल का आचार्यप्रवर ने किया नामकरण*
पर्युषण पर्व आराधना के प्रथम दिवस के अवसर पर तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्यश्री जीतमलजी (श्रीमज्जयाचार्य) की जयपुर में स्थित समाधिस्थल का महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने *साधना का प्रज्ञापीठ* नामकरण किया।
दिनांक - 19-08-2017
#प्रस्तुति - *#तेरापंथ #संघ #संवाद*
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