22.08.2017 ►Media Center Ahinsa Yatra ►News

Published: 23.08.2017
Updated: 15.11.2017

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News in Hindi:

अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
बत्तीस दोषों से बचें तो निर्मल और निर्वद्य हो सामायिक: आचार्यश्री महाश्रमण
-श्रीमुख से श्रद्धालुओं को प्राप्त हुआ विशुद्ध सामायिक करने का ज्ञान
-आचार्यश्री ने सामायिक के भागों का किया वर्णन
-आचार्यश्री ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ मंे सुनाया मरीचि कुमार का जीवनवृत्त
-आर्जव-मार्दव पर साध्वीवर्याजी का उद्बोधन तो मुख्यमुनिश्री ने सुमधुर गीत का किया संगाान
21.08.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)ः पर्युषण महापर्व का तीसरा दिन सोमवार। सामायिक दिवस के रूप में आयोजन। कोलकाता के राजरहाट स्थित ‘महाश्रमण विहार’ परिसर का अध्यात्म समवसरण का भव्य पंडाल और पंडाल में उपस्थित लगभग सभी श्रद्धालुओं के मुख पर बंधी मुख वस्त्रिका उनके सामायिक में होने का द्योतक बनी हुई थी। ऐसे रम्य वातावरण में महातपस्वी, शांतिदूत, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, कीर्तिधरपुरुष आचार्यश्री महाश्रमणजी ने श्रद्धालुओं को सामायिक के दौरान मन, वचन और काय से होने वाले बत्तीस प्रकार के दोषों से बचने से बचने की पावन प्रेरणा देते हुए उन्हें निर्वद्य और निर्मल सामायिक करने को उत्प्रेरित किया। अपने आराध्य द्वारा मिले मार्गदर्शन से श्रद्धालु आह्लादित थे।
    आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को सामायिक दिवस पर पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मुख्य रूप से तीन प्रकार की सामायिक होती है-सम्यक्त्व सामायिक, श्रुत सामायिक और चारित्र सामायिक।
    आचार्यश्री ने चारित्र सामायिक का वर्णन करते हुए कहा कि सामायिक चारित्र में अठारह पापों का त्याग हो जाता है। साधुओं को सर्व विरति सामायिक आती है तो श्रावकों देश विरति सामायिक होती है। सामायिक में सर्व सावद्य योग का त्याग हो जाता है। आचार्यश्री ने सामायिक के दौरान मन से दस दोष, वचन से दस दोष और काया से बारह दोष बताए। इस प्रकार मन, वचन और काय के द्वारा होने वाले कुल 32 दोषों का सविस्तार वर्णन करते हुए कहा कि आदमी को सामायिक करते वक्त मन, वचन काय से होने वाले दोषों से बचने का प्रयास करना चाहिए। सामायिक के दौरान आदमी यदि इन दोषों से बच सकता है तो उसकी सामायिक निर्मल और निर्वद्य सामायिक हो सकती है। दोषयुक्त सामायिक का पूर्ण आध्यात्मिक लाभ नहीं मिल सकता। इसलिए आदमी को ग्रंथों में वर्णित दोषों से सामायिक के दौरान बचने का प्रयास करना चाहिए।

    आचार्यश्री ने पर्युषण महापर्व के दौरान ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का वर्णन करते हुए श्रद्धालुओं को भगवान महावीर के मरिचिकुमार के भव का वर्णन किया। आचार्यश्री ने समुपस्थित साधु-साध्वियों को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु के लिए आगम स्वाध्याय तो विशेष खुराक है। साधु तपस्या करे, किन्तु आगम स्वाध्याय रूपी खुराक से कभी वंचित नहीं रहना चाहिए। साधु को अपना नियमित समय आगम स्वाध्याय मंे लगाना चाहिए। इस दौरान आचार्यश्री ने साध्वी विशालप्रभाजी द्वारा हाल ही में सम्पन्न किए गए मासखमण की तपस्या पर उन्हें वर्धापित करते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु से लेकर अब तक ज्ञात परंपरा मंे साधु-साध्वियों में सतरह वर्ष की उम्र में मासखमण करने वाली शायद यह पहली साध्वी है। इसके उपरान्त आचार्यश्री ने बालमुनियों द्वारा की गई तपस्या, मुनि हितेन्द्रकुमारजी द्वारा नियमित किए गए एकासन और मुनि लक्ष्यकुमारजी द्वारा तपस्या को भी वर्णित किया।

    अंत में दस श्रमण धर्मों की व्याख्यान श्रृंखला में ‘आर्जव-मार्दव’ धर्म पर सर्वप्रथम मुख्यमुनिश्री ने ‘नर सरल हृदय बन जाओ रे’ गीत का संगान किया तथा साध्वीवर्याजी ने वर्णित दो धर्मों को अपने जीवन मंे अपनाने की पावन प्रेरणा प्रदान की।

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