23.08.2017 ►Media Center Ahinsa Yatra ►News

Published: 23.08.2017
Updated: 15.11.2017

Media Center Ahinsa Yatra


News in Hindi:

अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
अणुव्रत अनुशास्ता ने श्रद्धालुओं में जगाई अणुव्रत की चेतना
-गृहस्थ अणुव्रत को स्वीकार करे तो उसकी आत्मा का भी हो सकता है कल्याण: आचार्यश्री
-पर्युषण महापर्व का पंचम दिवस अणुव्रत चेतना दिवस के रूप में आयोजित
-‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ में आचार्यश्री ने त्रिपृष्ठ भव में कृत कार्यों का किया व्याख्यायित
-मुख्यमुनिश्री और साध्वीवर्याजी ने संयम धर्म के विषय में श्रद्धालुओं को दी प्रेरणा
23.08.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)ः जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को पर्युषण पर्वाराधना के पांचवें दिन आयोजित ‘अणुव्रत चेतना दिवस’ पर उपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी मंगलवाणी से अणुव्रत को स्वीकार कर अपनी आत्मा का कल्याण करने की पावन प्रेरणा प्रदान की। वहीं तेरापंथ के विकासशील वटवृक्ष मुख्यमुनिश्री और साध्वीवर्याजी ने दस श्रमण धर्मों में से ‘संयम धर्म’ के विषय में श्रद्धालुओं को गीत और व्याख्यान के माध्यम से अभिप्रेरणा प्रदान की। पर्युषण महापर्व महातपस्वी की सन्निधि में उपस्थित श्रद्धालु भी इस अवसर का विशेष लाभ उठा रहे हैं और आत्म कल्याण का प्रयास कर रहे हैं।
    बुधवार को पर्युषण महापर्व का पांचवां दिन था और इस दिन को अणुव्रत चेतना दिवस के रूप में समायोजित किया गया था। कोलकाता के राजराहाट क्षेत्र मंे नवीन तीर्थस्थल के रूप में विख्यात हो चुके महाश्रमण विहार परिसर में बने अध्यात्म समवसरण में निर्धारित समय अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी मंचासीन हुए और उपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी मंगलवाणी से अमृतपान कराते हुए कहा कि प्रणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन विरमण और परिग्रह-इन पांच व्रतों को जो आदमी समग्रता से अपने जीवन में स्वीकार कर लेते उसके लिए यह व्रत अणुव्रत बन जाते हैं। हर किसी के अनगार धर्म को स्वीकार करना मुश्किल हो सकता है। इसलिए गृहस्थों के लिए अणुव्रत धर्म वर्णित है, जो उनके अनुकूल है।
    आचार्यश्री ने सविस्तार वर्णन करते हुए कहा कि गृहस्थ के जीवन में हिंसा चलती है, परन्तु लक्ष्य हो तो गृहस्थ भी हिंसा से बच सकता है। जैसे आदमी पंचेन्द्रिय जीवों को न मारने का संकल्प कर ले तो वह भी अहिंसा की साधना कर सकता है। आदमी अपने जीवन में पानी के प्रयोग का सीमाकरण, जमीकंद खाने का त्याग, हरियाली पर न चलने का त्याग तथा चलने में सावधानी रखकर भी आदमी अपने आपको हिंसा से के पापों से बचाते हुए अहिंसा का अनुपालन कर सकता है। उसी प्रकार आदमी को मृषावाद (झूठ) से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को हंसी-मजाक की बातों में भी झूठ से बचने का प्रयास करना चाहिए। गुस्से के कारण, डर और लोभ से बोले जाने वाले झूठ से आदमी को बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को चोरी और स्वदार के सिवाय दूसरों त्याग करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में अपनी इच्छाओं का सीमांकन करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी अपने जीवन में अणुव्रत को स्वीकार करे तो उसकी आत्मा का भी कल्याण हो सकता है।
    आचार्यश्री ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ में भगवान महावीर के जीव के त्रिपृष्ठ भव में किए गये कार्यों का वर्णन किया। वहीं आचार्यश्री की मंगलवाणी के उपरान्त संयम धर्म पर मुख्यमुनिश्री ने सुमधुर गीत का संगान किया तो साध्वीवर्याजी ने अपने वक्तव्य के माध्यम से लोगों को अपने जीवन में संयम धर्म को अपनाने की प्रेरणा प्रदान की।

Sources
I Support Ahimsa Yatra
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Shvetambar
      • Terapanth
        • Ahimsa Yatra
          • Share this page on:
            Page glossary
            Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
            1. Ahimsa
            2. Ahimsa Yatra
            3. Ahinsa
            4. Ahinsa Yatra
            5. I Support Ahimsa Yatra
            6. Media Center
            7. दस
            8. महावीर
            9. श्रमण
            Page statistics
            This page has been viewed 381 times.
            © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
            Home
            About
            Contact us
            Disclaimer
            Social Networking

            HN4U Deutsche Version
            Today's Counter: