26.08.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 26.08.2017
Updated: 27.08.2017

Update

आज श्रवणबेलगोला में आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज तथा अन्य विराजित साधु के मंगल सान्निध्य एवं श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामीजी के निर्देशन में पर्युषण पर्व का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर भंडार बसदी में चौबीस तीर्थंकरों के भव्य पंचामृत अभिषेक किये गए। #AcharyaVardhmanSagar 😇 #Shravanbelgola #BhattarakCharukirti

Source: © Facebook

आज दिन श्रवणबेलगोला में विराजित आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज ससंघ तथा अन्य विराजित साधुवृन्द के मंगल सान्निध्य एवं स्वस्ति *श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामीजी के निर्देशन में पर्युषण पर्व का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर *भंडार बसदी में चौबीस तीर्थंकरों के भव्य पंचामृत अभिषेक* किये गए। #Shravanbelgola #AcharyaVardhmanSagar #BhattarakCharukirti

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आज दिन श्रवणबेलगोला में विराजित आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज ससंघ तथा अन्य विराजित साधुवृन्द के मंगल सान्निध्य एवं स्वस्ति *श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामीजी के निर्देशन में पर्युषण पर्व का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर *भंडार बसदी में चौबीस तीर्थंकरों के भव्य पंचामृत अभिषेक* किये गए। #Shravanbelgola #AcharyaVardhmanSagar #BhattarakCharukirti

शाम का समय था। डॉक्टर अमरनाथ जी (सागर वाले), डॉक्टर श्री अरविंद सिंघई नेत्र चिकित्सक को लेकर आए। आचार्यश्री की आंख दिखाने के लिए कहा है। #AcharyaVidyasagar 🙂✌️

आचार्य श्री ने कहा- क्या जरुरत है, अच्छे से काम चल रहा है। चश्मे का नंबर तो एक आंख का 2:45 दूसरे में ढाई है। यह नंबर जब मैं अजमेर में (ज्ञानसागर जी महाराज के साथ था) उस समय 'आई फ्लू' बहुत जोर से आया था। उसी समय से नंबर आ गया था। और 30-32 साल होने को है, आज भी अच्छे से काम चल रहा है।* एक बार तो एक श्रावक चश्मा बना कर टेबल पर रख कर चले गए, लेकिन हमने उसे ग्रहण नहीं किया। आज भी ग्रंथ के छोटे-छोटे शब्दों को पढ़ लेता हूं। कोई तकलीफ नहीं है। *हमें 4 हाथ से अधिक दूर देखने की जरूरत नहीं है, चार हाथ दूर का भी सब अच्छे से दिखता है।*

_फिर आचार्य श्री ने कहा- *हमें चश्मे की जरूरत नहीं, क्योंकि मैं जितना पढ़ना चाहता हूं, उतना अच्छे से पढ़ लेता हूं। पढ़ने की आकुलता जिनको होती है, बे चश्मा लगाएं।* आखिर पढ़ने की सीमा होनी चाहिए? आज ज्यादा पढ़ना, और फिर लिखते रहना बहुत हो गया है। और ज्यादा लिखने पढ़ने से चिंतन की प्रक्रिया कम हो जाती है। लिखने से लखना नहीं हो पाता है। लिखने से आरंभ होता है और लखने से (चिंतन)स्वाध्याय होता है। बगैर चिंतन के लिखने को स्वाध्याय नहीं कहा। चिंतन को अनुप्रेक्षा रुप स्वाध्याय में लिया गया है। यदि पढ़ा नहीं जाता तो सुनने को भी स्वाध्याय कहा है।_ सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए, देशना लब्धि को कारण कहा है। लेकिन लिखने को सम्यग्दर्शन का कारण नहीं कहा, उसके लिए आरंभ कहा है।* बड़े-बड़े साहित्यकार हैं, जैसे कहते हैं जैनेंद्र हैं, वे लिखते नहीं, लिखाते थे। स्वयं चिंतन करके लिखाते थे। एक पंडित सुखलाल जी प्रज्ञाचक्षु थे, उन्होंने बड़ा काम किया- बड़े-बड़े ग्रंथों का संपादन किया, इसी चिंतन के साथ किया है।
_*आज तो लिखने को ही चिंतन माना जा रहा है, जबकि सुनने से चिंतन होता है। अच्छे से चिंतन करो और फिर अच्छे से धर्मोपदेश दो। यह भी स्वाध्याय है।* इसलिए भैया मैं चश्मे को अपने लिए आवश्यक नहीं समझता। हमारे किसी भी काम में रुकावट नहीं, सब अच्छे से चल रहा है, तो फिर क्यों लगाउँ? फिर भी डॉक्टर अरविंद सिंघई जी ने आंखों को देखा। उन्होंने स्वयं कहा- *महाराज आपका विचार ठीक है, जब आपको अधिक दूर का देखना नहीं, तो चश्मे की आवश्यकता नहीं है।*_

_आचार्य श्री ने बताया- *मैंने एक आलेख पढ़ा था। अमेरिका के डॉक्टर ने लिखा था, कि नींबू की एक-दो बूंद आंख में डालने से सब रोग ठीक हो जाते हैं। मोतियाबिंद जैसे रोग भी समाप्त हो जाते हैं। नींबू को स्वर्ण के बराबर कहा है। दोनों पीले हैं, लेकिन गुणवत्ता की दृष्टि से नींबू सोने से ज्यादा कीमती है।* स्वर्ण को रखने वाला पगला सकता है, लेकिन नींबू खाने से पागलपन ठीक होता है। इसलिए नींबू के रस को भी हमने समय-समय पर आंख में डाला है, इसलिए आज भी काम अच्छा चल रहा है।_

*ज्ञान उपयोगी है मुझे, क्या है मुझे विशेष?*
*ज्ञानी 'निज' को देखता, बाकी सब निःशेष।।*

👉 नोट कृपया लेख को पढ़ने के बाद नींबू के रस को आंखों में डालने का प्रयोग स्वयं न करें। आचार्यश्री तो आचार्यश्री है, उनकी बराबरी हम जैसे सामान्य श्रावक नही कर सकते।

प्रस्तुति - दिलीप जैन शिवपुरी।

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#AcharyaVidyasagar जी के शिष्य क्षुल्लक ध्यानसागर जी live pravachan.. @ Dus Lakshan Dharma.. #UttamKshama!! #KshullakDhaynsagar

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