31.08.2017 ►Media Center Ahinsa Yatra ►News

Published: 31.08.2017
Updated: 15.11.2017

Media Center Ahinsa Yatra


News in Hindi:

अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
निरंतर प्रवाहित हो रही आध्यात्मिक ज्ञानगंगा श्रद्धालुओं को कर रही है तृप्त
-आचार्यश्री के श्रीमुख से निरंतर प्रसारित हो रही है आगमवाणी
-लोग सैंकड़ों श्रद्धालु मंगल प्रवचन का श्रवण कर जीवन का बना रहे धन्य
-आचार्यश्री ने मनोज्ञ प्रिय का वियोग होने पर भी मानसिक संतुलन बनाए रखने की दी प्रेरणा
-साध्वीवर्याजी ने लोगों को बताया त्याग की शक्ति का महत्त्व
31.08.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)ः कोलकाता महानगर भले हुगली नदी के तट पर हो, किन्तु एक सत्य यह भी है कि वह बंगाल की खाड़ी के सन्निकट भी है। वर्तमान में भारत में बरसात का मौसम भी चल रहा है तो कोलकाता में प्रतिदिन बरसात होना कोई नहीं बात नहीं। चैबीस घंटे में एकबार कोलकाता महानगर में बादल बरसते ही हैं। उसी प्रकार कोलकाता के राजरहाट स्थित ‘महाश्रमण विहार’ में वर्ष 2017 का ऐतिहासिक चतुर्मास काल परिसम्पन्न कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से निरंतर आगमवाणी रूपी बरसात हो रही है। आकाश के मेघ धरती को सिंचन प्रदान करते हैं और आचार्यश्री महाश्रमणजी की आगमवाणी रूपी बरसात लोगों के हृदय और मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करती है। कोलकाता महानगर में एक नए तीर्थस्थल के रूप में स्थापित हो चुके ‘महाश्रमण विहार’ के अध्यात्म समवसरण में नियमित सैंकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं और आगमवाणी सुनकर आध्यात्मिकता से सूख चुकी अपनी अंतरात्मा को अभिसिंचत करने का प्रयास करते हैं।
    गुरुवार को भी प्रतिदिन के अनुसार निर्धारित समय पर आचार्यश्री अध्यात्म समवसरण के मंच पर मंचासीन हुए और अपने श्रीमुख से ‘ठाणं’ आगमाधारित अपने मंगल प्रवचन का प्रवाह आरम्भ करते हुए कहा कि जीवन में मनोज्ञ और प्रिय का संयोग होने के उपरान्त यदि उसका अचानक वियोग होने पर आदमी की जो मानसिक स्थिति बनती है, वह आर्त ध्यान होता है। बड़े से बड़े लोग के मन में भी आर्त ध्यान आ जाता है। हालांकि आदमी को आर्त ध्यान में जाने से बचने का प्रयास करना चाहिए।
    आचार्यश्री ने लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जैन रामायण के अनुसार रामचन्द्रजी को भी अपनी पत्नी सीता के वियोग में आर्त ध्यान हो गया था। उन्होंने राम-सीता वियोग का वर्णन करते हुए कहा जब रामचन्द्रजी से सीता का वियोग हुआ तो उन्हें न नींद आती थी, न किसी कार्य में मन लगता था। आचार्यश्री ने कथा प्रसंग सुनाने के बाद लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मनोज्ञ के वियोग में भी आदमी को मानसिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। अमनोज्ञ स्थिति को भी समता भाव से सहन करने से कर्मों की निर्जरा होती है। आचार्यश्री ने ‘तेरापंथ प्रबोध’ का सरसशैली में वाचन, संगान और व्याख्यान कर भी लोगों को अध्यात्मिक प्रेरणा प्रदान की।
    आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्याजी ने त्याग की शक्ति को सबसे बड़ी शक्ति बताते हुए उन्हें त्याग के महत्त्व को व्याख्यायित किया। अंत में उन्होंने ‘जो अंतर मंे ही रमण करे’ गीत का संगान भी किया।

Sources
I Support Ahimsa Yatra
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Shvetambar
      • Terapanth
        • Ahimsa Yatra
          • Share this page on:
            Page glossary
            Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
            1. महावीर
            Page statistics
            This page has been viewed 234 times.
            © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
            Home
            About
            Contact us
            Disclaimer
            Social Networking

            HN4U Deutsche Version
            Today's Counter: