01.09.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 01.09.2017
Updated: 02.09.2017

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 139* 📝

*विलक्षण वाग्मी आचार्य वज्रस्वामी*

आचार्य वज्रस्वामी का जीवन विलक्षण विशेषताओं से मंडित था। जन्म के दिन महिलाओं द्वारा पिता धनगिरि के मुनि बन जाने की परस्पर की चर्चा सुनकर उनको जातिस्मरण ज्ञान उपलब्ध हुआ। शैशवकाल में उनका मानस विरक्ति के झूले में झूलता रहा। दुग्धपान के साथ एकादशांगी का अमृतपान कर वे अध्यात्म पोष को प्राप्त हुए। गृहस्थ जीवन में दीक्षा गुरु द्वारा उनका नामकरण हुआ। तीन वर्ष की अवस्था में मातृ-वात्सल्य को ठुकराकर साधु-संगति से प्यार किया। आठ वर्ष की अवस्था में संयम पथ के पथिक बने। मुनि जीवन में अनेक आत्मिक शक्तियों को उजागर कर उन्होंने विविध रूपों में जैन शासन की प्रभावना की।

आचार्यों की परंपरा में वज्रस्वामी अंतिम दशपूर्वधर एवं गगनगामिनी विद्या के उद्धारक थे।

*गुरु-परंपरा*

वज्रस्वामी के गुरु सिंहगिरि थे। सिंहगिरि आचार्य सुहस्ती की परंपरा से संबंधित कोटिकगण के आचार्य थे। आचार्य सुहस्ती की गणाचार्य की परंपरा में आचार्य इंद्रदिन्न के पश्चात् आचार्य दिन्न हुए। आचार्य दिन्न के दो मुख्य शिष्य थे आचार्य शांतिसेन और आचार्य सिंहगिरि। आचार्य शांतिसेन के मुख्य चार शिष्य थे श्रेणिक, तापस, कुबेर, ऋषिपालित। इन चारों शिष्यों से क्रमशः सेणियां, तापसी, कुबेरी, इसीपालिया शाखा का उद्भव हुआ। आचार्य सिंहगिरि आचार्य दिन्न के पश्चात गणाचार्य के रूप में नियुक्त हुए। गणाचार्य सिंहगिरि के शिष्य वज्रस्वामी थे। आचार्य सुहस्ती की गणाचार्य की परंपरा कल्पसूत्र-स्थविरावली में है।

आचार्य सिंहगिरि के प्रमुख चार शिष्य थे आचार्य धनगिरि, आचार्य वज्र, आचार्य समिति, आचार्य अर्हदिन्न। आचार्य धनगिरि के पुत्र वज्रस्वामी थे और आचार्य समिति के धनगिरि बहनोई थे। इन चारों में वज्रस्वामी की ख्याति युगप्रधानाचार्य के रूप में हुई। दीक्षा-पर्याय में कनिष्ठ होते हुए भी युगप्रधान होने के कारण कल्प स्थविरावली में आचार्य वज्र का नाम आचार्य समिति से पहले आया है।

वज्रस्वामी के पांच सौ श्रमणों का परिवार था, उनमें तीन प्रमुख थे वज्रसेन, पद्म, आर्यरथ। वज्रसेन इनमें ज्येष्ठ थे। वज्रस्वामी से वाज्री शाखा का जन्म हुआ था।

वज्रस्वामी के शिष्य वज्रसेन युगप्रधान आचार्य वज्रसेन से भिन्न थे।

*जन्म एवं परिवार*

वज्रस्वामी का जन्म वीर निर्वाण 496 (विक्रम संवत् 26, ईस्वी पूर्व 31) में वैश्य परिवार में हुआ। अवंती प्रदेशांतर्गत तुम्बवन नामक नगर उनका जन्म स्थल था। वज्रस्वामी के पितामह का नाम धन, पिता का नाम धनगिरि और माता का नाम सुनंदा था। नाना का नाम धनपाल तथा मामा का नाम समित था। समित और धनगिरि दोनों मित्र थे। समिति की दीक्षा आचार्य सिंहगिरि के पास धनगिरि का सुनंदा से विवाह होने से पहले हो गई थी।

*विलक्षण वाग्मी आचार्य वज्रस्वामी के जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 139📝

*व्यवहार-बोध*

*जिनशासन*

लय– देव! तुम्हारे...

*81.*
जिन शासन के चिर जीवन का,
आगम ही मौलिक आधार।
रहे सुरक्षित उसमें गणिवर-
'देर्वधि' का अति उपकार।।

*82.*
शुभ भविष्य के प्रवर पृष्ठ पर,
अगर नहीं होता आलेख।
अतुल अनुत्तर ज्ञान-राशि वह,
बन जाती पानी की रेख।।युग्मम्।।

*48. जिन शासन के चिर जीवन का...*

जिन शासन के स्थायित्व का मूलभूत आधार है आगम। आगम के दो रूप हैं— 'सूत्रागम और अर्थागम। अर्थागम के मूल स्रोत तीर्थंकर होते हैं। उनसे प्राप्त ज्ञान के आधार पर गणधर सूत्र रूप में आगमों का ग्रंथन करते हैं। वह अर्हत् वाणी द्वादशांगी कहलाती है। लगभग एक हजार वर्षों तक अर्हत् वाणी मौखिक परंपरा से आगे बढ़ती रही। समय के साथ स्मृति बल क्षीण हुआ। पूर्वों का ज्ञान विस्मृत होने लगा। उस समय आगमों को लिपिबद्ध करने की परंपरा नहीं थी। नई परंपरा डालने की बात कोई विशिष्ट व्यक्तित्वसंपन्न पुरुष ही सोच सकते हैं।

जैन परंपरा में आचार्य देवर्धिगणी क्षमाश्रमण ने दीर्घ दृष्टि से देखा। उन्होंने सोचा— 'अब आगमों को लिपिबद्ध नहीं किया गया तो संपूर्ण ज्ञान का लोप हो जाएगा।' उन्होंने वल्लभी नगरी में हजारों साधुओं को एकत्रित किया। जैन आगमों की सामूहिक वाचना की। व्यवस्थित रूप में आगम संकलन और लिपिकरण का अभूतपूर्व काम करके उन्होंने जिन शासन को दीर्घ जीवन दे दिया। यदि वे आगमों को पुस्तकारूढ़ नहीं करते तो वे पानी की रेखा की तरह समाप्त हो जाते। इस दृष्टि से वे हमारे परम उपकारी हैं। उनकी इस संगीति के बारे में एक श्लोक प्रसिद्ध है—

वलहिपुरम्मि नयरे
देवड्ढियमुहेण समणसंघेण।
पुत्थइ आगमु लिहिओ,
नवसयअसीआओ वीराओ।।

*जिनशासन* के बारे में आगे और जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:

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संप्रेषक: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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