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अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
भिक्षु के पट्टधर की मंगल सन्निधि में 215वें भिक्षु चरमोत्सव का भव्य आयोजन
-चतुर्विध धर्मसंघ ने अपने पथप्रदर्शक को किया शत-शत बार नमन
-आचार्यश्री ने कहा कि आचार्य भिक्षु में थी विशेष बौद्धिक क्षमता, जीवन भर की यथार्थ की साधना
-आचार्यश्री ने इस अवसर पर स्वरचित गीत का किया संगान
-असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने कहा आचार्य भिक्षु ने जिनवाणी पर जीवन किया समर्पित
-मुख्यमुनिश्री ने भी आचार्य भिक्षु को किया नमन, मुनिवृन्द ने भी गीत का किया संगान
-कोलकाता युवक परिषद की विभिन्न शाखों ने भी अपने आराध्य के प्रति अर्पित की अपनी प्रणति
04.09.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)ः जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के प्रवर्तक आचार्य महामना आचार्य भिक्षु का 215वां चरमोत्सव कोलकाता राजरहाट के महाश्रमण विहार परिसर में बने ‘अध्यात्म समवसरण’ में आचार्य भिक्षु के ग्यारहवें पट्टधर, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में भव्य आयोजन हुआ। उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ ने अपने आद्य प्रवर्तक का स्मरण किया और उनके प्रति अपनी श्रद्धासिक्त श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर मानों पूरा राजरहाट ऐरिया सहित महाश्रमण विहार भिक्षुमय बन गया। उपस्थित जनमेदिनी के आगे विशाल पंडाल भी मानों बौना साबित हो गया।
सोमवार को सूर्योदय से ही पूरा परिसर श्रद्धालुआंे से अटापटा हुआ था। यह परिसर ही नहीं, मानों राजरहाट ही भिक्षुमय बना हुआ था। लोग अपने आराध्य की सन्निधि में अपने आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु के चरमोत्सव को मनाने के लिए उमड़ पड़े थे। सुबह के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान विशाल प्रवचन पंडाल उपस्थित जनमेदिनी के आगे बौना पड़ गया। चारों ओर श्रद्धालुओं की विराट उपस्थिति अपने आराध्य के प्रति अपनी श्रद्धा का द्योतक बना हुआ था। निर्धारित समयानुसार आचार्य भिक्षु के वर्तमान पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पधारे तो पूरा वातावरण जयकारों से गूंज उठा। सर्वप्रथम आचार्यश्री ने नमस्कार महामंत्र का उच्चारण कर कार्यक्रम का मंगल शुभारम्भ किया।
मंगल महामंत्रोच्चार के उपरान्त तेरापंथ धर्मसंघ के मुख्यमुनिश्री ने अपने आद्य आराध्य आचार्य भिक्षु की महिमा का गुणगान करते हुए उनकी विशेषताओं का भी वर्णन किया। मुख्यमुनिश्री ने इस अवसर पर सुमधुर गीत का भी संगान किया। मुख्यमुनिश्री के उपरान्त तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने आचार्य भिक्षु के जीवन का दर्शन कराते हुए कहा कि वे जिनवाणी पर चलने वाले थे। उन्होंने जिनवाणी की निरंतर साधना करते हुए एक अलग पथ पर बढ़ते रहे और उसी पर अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। आचार्य भिक्षु ध्रुव योगी थे। आज के दिन उनको अंतहीन विनत श्रद्धांजलि अर्पित की।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, आचार्य भिक्षु के पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी मंगलवाणी से अपने आद्य आचार्य और इस धर्मसंघ के प्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु की महिमा का गुणगान करते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु विशिष्ट बौद्धिक संपदा वाले थे। उनकी प्रतिभा निरंतर निखरती गई। स्थानकवासी पंरपरा के दीक्षित होने के बाद अपने गुरु की सन्न्धिि में ज्ञानार्जन और स्वाध्याय का बहुत अच्छा अवसर प्राप्त हुआ। पहले वह विशेष बुद्धिमान और साधु बनने के उपरान्त उन्हें ज्ञान विकास और अधिक मौका मिला। कोई ज्ञानी व्यक्ति किसी के हां में हां मिलाए, यह कोई आवश्यक नहीं होता। आचार्य भिक्षु की बौद्धिकता विशिष्ट थी, ऐसे में हर बात पर हां में हां मिलना उनके लिए कठिन था। उनके पास मानों शुद्धि बुद्धि थी। आचार्यश्री उनकी यथार्थ के प्रति श्रद्धा जगी और यथार्थ की आराधना के लिए अपने गुरु और धर्मसंघ का परित्याग कर एक नए पथ का निर्माण करने। उनका आचार, विचार और अपना अनुशासन था। एक ऐसा पथ उन्होंने प्रदान किया जो अब तक लगभग 257 वर्षों से चल रहा है और आगे भी निरंतर चलता रहेगा, ऐसा माना जा सकता है। आचार्य भिक्षु का आज के दिन महाप्रयाण हो गया, किन्तु उनका पथ आज भी चल रहा है। आचार्य भिक्षु ने जो पथ दिखाया, उस राजमार्ग न जाने कितने-कितने लोग चल रहे हैं। आचार्यश्री ने कहा कि आचार्य भिक्षु ने सूत्र दिया तो श्रीमज्जयाचार्य भाष्यकार थे और आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञजी भी मानों उनकी सिद्धान्तों की गहराई में गए हुए प्रतीत होते हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि वर्तमान में तेरापंथ के सिद्धान्तों के कितने ज्ञाता साधु-संत होंगे। इस कड़ी में आचार्यश्री तेरापंथ धर्मसंघ के मंत्री मुनिश्री सुमेरमलजी ‘लाडनूं’ को बताया कि उन्हें भी तेरापंथ धर्मसंघ के सिद्धान्तों के ज्ञाता के रूप में उहारण में लिया जा सकता है। साध्वियों में साध्वीप्रमुखाजी का एक अपना अलग वैदुष्य है। संस्कृत का अच्छा ज्ञान, स्वाध्याय, लेखन आदि के कारण हमारी नजर में गुरुकुलवास में सबसे विशेष ज्ञान है, ज्ञान के क्षेत्र में आपका भी नाम लिया जा सकता है। आचार्यश्री ने बालमुनियों, साध्वियों और समणश्रेणी को ज्ञान का अच्छा विकास करने की पावन प्ररेणा प्रदान की और कहा कि आचार्य भिक्षु के महाप्रयाण के अवसर पर हम उनका स्मरण करते हैं। आचार्यश्री ने इस अवसर पर स्वरचित गीत का संगान भी किया।
इसके उपरान्त मुनिवृंद द्वारा भी अपने धर्मसंघ के प्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु की स्मृति में गीत का संगान किया। कोलकाता तेरापंथ युवक परिषद के विभिन्न शाखाओं के सदस्यों ने भी इस अवसर पर गीत के माध्यम से अपनी भावाभिव्यक्ति दी और परम पावन आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया। अंत में चतुर्विध धर्मसंघ की उपस्थिति में आचार्यश्री ने भी पट्ट को छोड़कर खड़े हो गए और संपूर्ण समाज के संघगान किया।