05.09.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 05.09.2017
Updated: 06.09.2017

Update

06 सितम्बर का संकल्प

*तिथि:- भादवा शुक्ला पूर्णिमा*

तन को तो कराते, कभी कराएं मन को भी स्नान ।
करें स्वीकार निज भूलों को, दूजों को दें हृदय से क्षमादान ।।

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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👉 नोखा - ज्ञानशाला रजत जयंती समारोह
👉 कोलकाता: *'छापर का श्री संघ'* चातुर्मास की अर्ज लेकर *'श्री चरणों में'* उपस्थित
👉 चेन्नई: "विपत्ति पर काबू पाऐं" कार्यशाला का आयोजन
👉 चेन्नई: नवगठित जीवन विज्ञान एकेडमी का "शपथग्रहण समारोह" आयोजित
👉 जयपुर - संस्कार निर्माण में शिक्षकों की भूमिका
👉 विजयनगर बैंगलोर - जैन संस्कार विधि से आचार्य तुलसी जैन होस्टल की प्रतिष्ठापना
👉 श्रीडूंगरगढ़ - 215 वां भिक्षु चरमोत्सव
👉 चूरू - श्रीउत्सव मेले का आयोजन
👉 साकरी - जैन विद्या संगठन यात्रा
👉 कोटा - तप अभिनन्दन एवं शैक्षणिक सम्मान समारोह

प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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*पूज्यवर का प्रेरणा पाथेय*

*मानवता के मसीहा ने बताए रौद्र ध्यान से बचने के उपाय*

*-चार प्रकार के ध्यानों में से दूसरे दिन रौद्र ध्यान के विभिन्न भागों को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित*

*-त्याग के द्वारा रौद्र ध्यान से बचने की विधि को आचार्यश्री ने किया वर्णित*

*-साधुओं को हल्का-फुल्का बनने की आचार्यश्री ने दी प्रेरणा*

*-चतुर्दशी तिथि होने के कारण आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित रहे समस्त साधु-साध्वी व समणश्रेणी*

*-साधु-साध्वियों ने लेखपत्र का उच्चारण कर अपनी निष्ठा को किया प्रगाढ़*

दिनांक 05-09-17

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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Update

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 145* 📝

*विलक्षण वाग्मी आचार्य वज्रस्वामी*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

ममतामयी मां द्वारा पुनः-पुनः बुलाने पर भी वज्र नहीं गया। उसने सोचा "मां का पक्ष लेने पर संसार की वृद्धि होगी। धर्म संघ की शरण ग्रहण करने से मेरा कल्याण होगा। मां सुनंदा का भी कल्याण होगा। वह भी मेरे साथ अवश्य श्रमणी बनेगी।" बालक वज्र इस प्रकार अंतर्मुखी चिंतन करता हुआ उदासीन भाव से मौन बैठा रहा और आंखों से मां को अस्वीकृति की भाषा समझाता रहा।

द्वितीय अवसर पिताश्री मुनि धनगिरि को दिया गया। मुनि ने बालक के सामने रजोहरण रखा और सरल भाषा में वे बोले "वत्स! तुम्हारा व्यवहार बताता है तू तत्वज्ञ है। सुलभ बोधी है। अध्यात्म के प्रति तेरा सहज अनुराग है। तुम्हारे भावी जीवन के ये निर्णयात्मक क्षण हैं। कर्म रजों का हरण करने वाला यह रजोहरण तुम्हारे सामने है। प्रसन्नमना तू इसे ग्रहण कर।"

बालक वज्र मृगशावक की भांति ऊपर उछला एवं मुनिजनों के चामराकृति रजोहरण को लेकर उनके उत्संग में बैठ गया। न्याय मुनि धनगिरि को मिला। जय-जय की ध्वनि से दिग्दिगंत गूंज उठा। राजा ने संघ का सम्मान किया। इस समय बालक तीन वर्ष का था।

सरल स्वभावी सुनंदा ने चिंतन किया "मेरे सहोदर समित एवं प्राणाधार पति दीक्षित हो गए हैं एवं पुत्र भी श्रमण बनने के लिए संकल्पबद्ध है। मेरे लिए अब यही पथ श्रेष्ठ है।" परम विरक्त भाव को प्राप्त सुनंदा आचार्य सिंहगिरि के पास दीक्षित हुई और श्रमणी समूह में सम्मिलित हो गई। ग्रंथों में श्रमणी संघ की प्रमुखा का नाम निर्देश प्राप्त नहीं है।

प्रभावक चरित्र, परिशिष्ट पर्व, उपदेश माला इन ग्रंथों में वज्र कि आचार्य सिंहगिरि द्वारा तीन वर्ष की अवस्था में दीक्षा प्रदान करने तथा विहार आदि के योग्य न होने के कारण उसे शय्यातर के घर पर ही रखने का उल्लेख है। इन ग्रंथों के अनुसार आठ वर्ष की उम्र होने पर वज्र को आचार्य सिंहगिरि ने अपनी नेश्राय में लिया। पर यह दीक्षा शिष्य स्वीकृति के रूप में संभव है। युगप्रधान पट्टावलियों के अनुसार वज्र की दीक्षा आठ वर्ष की अवस्था में वीर निर्वाण 504 (विक्रम संवत 34) में हुई। बालक वज्रमुनि कोमल प्रकृति के थे। सहज, नम्र एवं आचार्य के प्रति दृढ़ निष्ठावान थे।

एक बार श्रमण परिवार से परिवृत्त आचार्य सिंहगिरि विहारचर्या में किसी पर्वत की तलहटी में पहुंचे। तभी तीव्रधार तेज वर्षा प्रारंभ हुई। बादलों की गर्जना, झकाझक कौंधती बिजली की चमक प्रलयंकारी थी। चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देने लगा। नदी नाले पानी से भर गए। आवागमन के रास्ते बंद हो गए। जल-जीवों की विराधना से बचने के लिए श्रमण संघ को गिरिकंदरा में रुकना पड़ा। उपदेशमाला के अनुसार इस समय ससंघ आचार्य सिंहगिरि अवंती के उद्यान में स्थित थे। आहारोपलब्धि की संभावना न देख तपः पूत, क्षमाप्रधान, परिषह विजेता, समता रसलीन श्रमणों ने उपवास स्वीकार कर लिया। प्रभावक चरित्र ग्रंथ के अनुसार वह असामयिक अतिवृष्टि प्रकृति का प्रकोप नहीं अपितु देवमाया थी। बाल मुनि वज्र की परीक्षा के लिए पूर्व भव के मित्र जृंभक देव ने कोतूहलवश इस सघन घनाघन घटा की रचना की थी।

*बाल मुनि इस सघन परीक्षा में कैसे सफल हुए...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 145📝

*व्यवहार-बोध*

*शाश्वत बोध*

लय– देव! तुम्हारे...

*89.*
बड़ा रखा थिरपाल फते को,
आर्य भिक्षु का यह औदार्य।
अहं विलय की सीख सलोनी,
अन्तर्मन से अंगीकार्य।।

*58. बड़ा रखा...*

आचार्य भिक्षु ने स्थानकवासी संप्रदाय से अलग होकर नए संघ की स्थापना की। अलग होने वाले साधुओं की संख्या तेरह थी। उनमें मुनि थिरपालजी और मुनि फतेहचंदजी दीक्षा पर्याय में उनसे बड़े थे। उन्होंने नई दीक्षा ली। धर्मक्रांति के सूत्रधार होने के कारण वे उनमें सबसे बड़े हो सकते थे। किंतु उनकी नीति विशुद्ध थी। उन्होंने वहां पूर्व दीक्षित साधुओं को यहां भी रत्नाधिक का सम्मान दिया। यह उनकी उदारता और अहंकार-विलय की सुंदर शिक्षा थी। इस सक्रिय शिक्षण के लिए पूरा धर्मसंघ उनका आभारी है।

*90.*
जय मुनि की सामयिक प्रेरणा,
विद्यागुरु ने की स्वीकार।
रायशशी से ली आलोयण,
संघनीति का संव्यवहार।।

*59. जय मुनि की...*

संघीय जीवन एक प्रयोगशाला है। यहां विचित्र घटनाएं घटित होती रहती हैं। तेरापंथ की परंपरा के अनुसार साधु प्रतिक्रमण के समय आचार्य के निकट जाकर दिनभर में हुए प्रमाद के लिए 'आलोयणा' स्वीकार करते थे। तृतीय आचार्य ऋषिराय के समय की बात है। प्रायः सभी साधु 'आलोयणा' स्वीकार करने जाते थे, पर मुनि हेमराजजी (सिरियारी) नहीं जाते। वे दीक्षा पर्याय में ऋषिराय से बड़े थे। संभवतः इसी कारण वे अपने आप आलोयणा ले लेते। ऋषिराय को यह व्यवस्था ठीक नहीं लगी। उन्होंने सोचा— 'भविष्य में बहुत छोटी उम्र के आचार्य भी हो सकते हैं। बड़े संत उनके पास जाकर आलोयणा नहीं लेंगे तो अव्यवस्था हो जाएगी।

मुनि हेमराजजी को आलोयणा के लिए सीधा कहना ऋषिराय को उचित नहीं लगा। उन्होंने जय मुनि (जीत मुनि) से कहा— 'हेमराजजी स्वामी वयोवृध्द हैं, बहुश्रुत हैं, अनुभवी हैं। मैं उनका आदर करता हूं। पर वे जब तक यहां आकर आलोयणा न लें तब तक तुम्हारे चारों आहार का त्याग है।'

मुनि हेमराजजी जयमुनि के विद्यागुरु थे। दोनों में गहरा तादात्म्य था। जयमुनि उनके पास जाकर बोले— 'मुनिश्री! आप ऋषिराय के पास आलोयणा नहीं लेते, इससे व्यवहार में अच्छा नहीं लगता। अन्य साधुओं पर भी प्रभाव नहीं पड़ता। आप वहां जाकर आलोयणा स्वीकार करने की कृपा करें।' मुनि हेमराजजी बोले— 'चलो, इसमें मुझे क्या आपत्ति है।' वे तत्काल उठे और ऋषिराय के निकट पहुंचकर बोले— 'ब्रम्हचारीजी! आलोयणा क्या धारें?' उस दिन के बाद धर्मसंघ में इस नई नीति का व्यवहार प्रचलित हो गया।

*तेरापंथ धर्मसंघ के कुछ और भी शाश्वत बोध देने वाले प्रसंग* पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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05 सितम्बर का संकल्प

*तिथि:- भादवा शुक्ला चतुर्दशी*

संकल्प की नित्य एक खुराक ।
आत्मा की उज्ज्वलता के लिए ।।

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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