Update
👉 दिल्ली: ओसवाल यूथ क्लब द्वारा "प्रयास (A Direction to Destiny)" पर सेमिनार का आयोजन
👉 गांधीनगर, बेंगलुरु: 215 वां भिक्षु चरमोत्सव
👉 राजाजीनगर, बेंगलुरु: 215 वां भिक्षु चरमोत्सव
👉 कोयम्बतूर: 215 वां भिक्षु चरमोत्सव
👉 गंगाशहर: 215 वां भिक्षु चरमोत्सव
👉 सुजानगढ़: 215 वां भिक्षु चरमोत्सव
👉 सिलीगुड़ी: 215 वां भिक्षु चरमोत्सव
👉 उदयपुर - सास बहू सामंजस्य कार्यशाला
👉 जयपुर - 55 की तपस्या का अभिनंदन
👉 पाली - ज्ञानशाला रजत जयंती समारोह
👉 विशाखापत्तनम: अणुव्रत समिति द्वारा सेवा कार्य
👉 कोयम्बतूर: किशोर मंडल द्वारा वन मिनिट कार्यक्रम का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*68 वां अणुव्रत अधिवेशन (दिनांक 08-10 सितम्बर)*
👉 बाहर से आने वाले संभागियों के लिए..
👉 विभिन्न स्थलों से महाश्रमण विहार, राजरहाट की दूरी..
👉 आवश्यक जानकारी हेतु संपर्क सूत्र..
🌿 *अणुव्रत सोशल मीडिया* 🌿
प्रसारक: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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Update
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 146📝
*व्यवहार-बोध*
*शाश्वत बोध*
लय– देव! तुम्हारे...
*91.*
दो नामांकन किए लिखत में,
सूझबूझमय जय-अनुरोध।
भारिमाल ने मान्य कर लिया,
मिला संघ को शाश्वत बोध।।
*60. दो नामांकन किए...*
जीतमुनि बचपन से ही कुशाग्र मेधा के धनी थे। वे जितने मनीषी थे, उतने ही गंभीर थे। इसलिए पद प्राप्त करने से पहले ही पदधारी की तरह जिम्मेवार बन गए। घटना आचार्यश्री भारीमालजी के समय की है। उन्होंने जीत मुनि से युवाचार्य का लिखत लिखवाना प्रारंभ किया। युवाचार्य के नामांकन के स्थान पर दो नाम लिखवाए। जीत मुनि ने दोनों नाम लिख दिए। आचार्यश्री उन्हें आगे डिक्टेशन देना चाहते थे, किंतु उनके हाथ वहीं रुक गए। उन्होंने प्रार्थना की— 'गुरुदेव! आपने बड़ी कृपा की, पर लिखित में दो नाम ठीक नहीं है।' आचार्यश्री बोले— 'जीतमल! वे दोनों एक ही हैं, मामा-भानजे हैं।' मुनि जीत इस बात से सहमत नहीं हुए। उन्होंने पुनः निवेदन किया— 'गुरुदेव! संघ में दो-दो नीतियां ठीक नहीं रहेंगी। आप एक को पहले और एक को पीछे करें तो भी ठीक है। एक साथ दो नीतियों का प्रवर्तन कैसे होगा?'
जीतमुनि की सूझबूझ और दूरदर्शिता ने आचार्यश्री के मन को प्रभावित किया। उन्होंने उनका निवेदन स्वीकार कर एक नाम काट दिया। यह प्रसंग मुनि खेतसी के संदर्भ में भी हमारी संस्कार-बोध की पोस्ट श्रृंखला - 42 में भी आया है। दोनों प्रसंग एक साथ पढ़ने से पूरी घटना स्पष्ट हो जाएगी।
*आचार्यश्री महाप्रज्ञजी व साध्वी प्रमुखाश्री महाश्रमणी कनकप्रभाजी की विलक्षणताओं* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 146* 📝
*विलक्षण वाग्मी आचार्य वज्रस्वामी*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
वर्षा के रुकने पर जृंभक देव श्रावक रूप बनाकर आचार्य सिंहगिरि के पास आया और गोचरी की प्रार्थना करता हुआ बोला "गुरुदेव! हमारा दल आगे बढ़ रहा था। भारी वर्षा के कारण अटवी में रुकना पड़ा। इस जंगल में भी आपके दर्शन हुए यह हमारा अहोभाग्य है। हमने अपने लिए भोजन बनाया है। कृपा कर आप हमें इस अवसर पर संयतिदान का लाभ प्रदान करें। हमारी आपसे एक और प्रार्थना है लघु शिष्य वज्र मुनि को हमारे यहां गोचरी के लिए आदेश प्रदान कर हमें कृतार्थ करें।"
दयानिधि आचार्य सिंहगिरि ने शिष्य वज्र को गोचरी का आदेश दिया। आचार्य देव की अनुमति पाकर वज्रमुनि माधुकरी वृत्ति के लिए अक्लांत, अखिन्न मन से उठे एवं द्वार तक पहुंचकर रुक गए। नन्हीं-नन्हीं बूंदें तब तक आ रही थीं। पूर्ण वर्षा रुकने पर इर्यासमितिपूर्वक मंद-मंद गति से चलते हुए वज्रमुनि आगे बढ़े। मार्ग निर्देश करता हुआ श्रावक वेश में देव भी वज्रमुनि के साथ-साथ चल रहा था। चलते-चलते वज्रमुनि उस बस्ती में प्रविष्ट हुए जो देव निर्मित थी। मानव रूपधारी देव बाल मुनि वज्र को अपनी कुटिया में ले गया एवं भक्तिभाव-पूर्वक दान देने को तैयार हुआ।
बाल मुनि वज्र भिक्षा की गवेषणा में जागरूक थे। इस अवसर पर प्रदीयमान सामग्री को अशुद्ध आधाकर्मी दोषयुक्त देवपिंड जानकर उसे लेना अस्वीकार कर दिया। भिक्षा में प्रदीयमान वस्तु द्रव्य से कुष्मांडपाक द्रव्य, क्षेत्र से मालवा देश में प्राप्त हो रहा है। काल से ग्रीष्मकाल का समय है। भाव की दृष्टि से अनिमिष नयन, अम्लान कुसुम मालाधारी व्यक्ति भोज्य सामग्री प्रदान कर रहा था। दान प्रदाता के चरण धरा से ऊपर उठे हुए थे। इस प्रकार का दान मानव से संभव नहीं था। कुष्मांडपाक ग्रीष्मकाल में और मालव देश में सर्वथा अप्राप्य था। वज्र की दृष्टि में यह आहार देवपिण्ड था तथा देवता के द्वारा दिया जा रहा था। साधु के लिए देवपिंड आहार सर्वथा अकल्प्य है, यह जान वज्रमुनि ने क्षुधा से व्यधित होने पर भी उसे ग्रहण नहीं किया।
जृंभक देवों ने प्रकट होकर वज्र मुनि के उच्चतम साधनानिष्ठ जीवन की प्रशंसा की एवं नाना रूप निर्मात्री वैक्रिय विद्या उन्हें प्रदान की।
उपदेश माला के अनुसार यह मेघमाला देव कृत नहीं थी।
मुनि वज्र के सामने आहार पानी की गवेषणा में उत्तीर्ण होने का एक अवसर और आया। गृष्मऋतु के मध्याह्नकाल में माधुकरी वृत्ति में व्यस्त बालमुनि वज्र को देखकर जृंभक देव पुनः धरती पर वैक्रिय शक्ति द्वारा मानव रुप बनाकर आया एवं प्रार्थनापूर्वक वज्रमुनि को देव निर्मित गृह में ले गया। श्रावक रूप में प्रकृटीभूत जृंभक देवों ने मुनि को दान देने के लिए घृत निष्पन्न मिष्ठान (मिठाई) से भरा थाल रखा। थाल में शरदकालीन मिष्ठान थे। ग्रीष्मऋतु में इस प्रकार की मिष्ठान सामग्री को देखकर वज्रमुनि संभल गए। उसे देवपिण्ड समझकर उन्होंने ग्रहण नहीं किया।
भाग्यवान व्यक्तियों को पग-पग पर निधान मिलता है। वज्रस्वामी के जृंभक देव पूर्व जन्म के मित्र थे। वज्रमुनि के आचार कौशल से वे अत्यंत प्रसन्न हुए एवं इस समय उन्हें गगनगामिनी विद्या प्रदान की।
*आचार्य वज्रस्वामी के जीवन के और भी प्रेरणादायी प्रसंग* पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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