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अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
धार्मिक/आध्यात्मिक जगत के पुरोधा ने किया धर्मध्यान का विवेचन
-धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षाओं मंे प्रथम अनुप्रेक्षा को आचार्यश्री ने किया विश्लेषित
-साध्वीवर्याजी ने भी लोगों को सापेक्ष दृष्टि रखने का दिया ज्ञान
-आचार्यश्री के चरणों में ‘आवश्यक निर्युक्ति खंड-2’ सहित कई अन्य पुस्तकों का हुआ लोकार्पण
-जैन विश्वभारती संस्थान व मान्य विश्वविद्यालय को मिला आचार्यश्री का आशीर्वाद
-जैन विश्वभारती के वार्षिक संगोष्ठी पर पदाधिकारियों ने श्रीचरणों दी भावाभिव्यक्ति
06.09.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)ः नित नए ज्ञान के माध्यम से लोगों को जीवन जीने की कला सिखाने वाले, आत्मा के कल्याण का पथ प्रदर्शित करने वाले, जन-जन में मानवता, धार्मिकता, साधना व सरलता का नव संचार करने जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को ‘ठाणं’ आगम के आधार पर धर्मध्यान और व उसके चार प्रकार के अनुप्रेक्षाओं को विश्लेषित कर आदमी को एकानुप्रेक्षा करने का पावन प्रेरणा प्रदान की। साध्वीवर्याजी ने लोगों को सापेक्ष दृष्टि रखने के लिए उत्प्रेरित किया। वहीं आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में ‘आवश्यक निर्युक्ति खंड-2, आचार्यश्री की कृति क्या कहता है जैन वाङ्मय के बंग्ला संस्करण सहित जीवन-विज्ञान की कुछ पुस्तकों को भी आचार्यश्री के चरणों में लोकार्पित किया गया। वहीं जैन विश्वभारती के पदाधिकारियों द्वारा भी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी गई तो आचार्यप्रवर द्वारा भी जैन विश्वभारती को शुभाशीष प्रदान किया गया।
नित्य की भांति बुधवार को महाश्रमण विहार के अध्यात्म समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने आज ‘ठाणं’ आगम के आधार पर चार प्रकार के ध्यानों में तीसरे प्रकार के ध्यान धर्मध्यान को विश्लेषित करते हुए कहा कि धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं बताई गई हैं। इनमें प्रथम अनुप्रेक्षा ‘एकानुप्रेक्षा’ है। प्रेक्षाध्यान साधना पद्धति में अनेक अनुप्रेक्षाओं का विधान दिया गया है। अनुप्रेक्षा करने से वृत्ति का परिस्कार हो सकता है और चित्त की निर्मलता का विकास हो सकता है। आदमी यह अनुप्रेक्षा करे कि मैं अकेला हूं। मनुष्य अपने आप में अकेला होता है। परिवार में, समाज में या देश में रहते हुए भी वह अकेला है। वह अकेला पैदा होता है, अकेले अपने कर्मों का फल भोगता है और अकेले ही अवसान को प्राप्त हो जाता है। खुद के कर्मों का स्वयं ही भोग भोगता है, तो आदमी अकेला ही है। आदमी अनुप्रेक्षा करे कि मैं अकेला हूं तो यह अनुप्रेक्षा आदमी को अहंकार से मुक्त कर सकती है और परिवार, समाज में रहते हुए भी वह अनासक्त रह सकता है और आसक्ति नहीं, विरक्ति की ओर बढ़ सकता है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने लोगों को सापेक्ष दृष्टि रखने की प्रेरणा प्रदान की तो आचार्यश्री के पावन प्रवचन के उपरान्त जैन विश्वभारती द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘आवश्यक निर्युक्ति खंड-2’ को जैन विश्वभारती के वर्तमान अध्यक्ष श्री रमेशचंद बोहरा, पूर्व अध्यक्ष श्री धर्मचंद लुंकड़ सहित अन्य पदाधिकारियों ने आचार्यश्री के चरणों में लोकार्पित किया। साथ ही आचार्यश्री की कृति ‘क्या कहता है जैन वाङ्मय’ के बंग्ला संस्करण सहित जीवन-विज्ञान एकेडमी के पुस्तकों को भी आचार्यश्री के चरणों में लोकार्पित किया गया। उक्त ग्रंथ के लेखन और संपादन का कार्य करने वाली समणी कुसुमप्रज्ञाजी ने आचार्यश्री के समक्ष अपने भावों को प्रस्तुति दी। जैन विश्वभारती के अध्यक्ष श्री रमेशचंद बोहरा, प्रो. फूलचंद जैन प्रेमी, जीवन-विज्ञान एकेडमी के केन्द्रीय विभागाध्यक्ष श्री गौतम सेठिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। वहीं जैन विश्वभारती के वार्षिक संगोष्ठी पर जैन विश्वभारती के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कीर्तिकुमारजी ने भी आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने ग्रंथ सहित जैन विश्वभारती को अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान किया और संस्थान को
आध्यात्मिक/धार्मिक विकास करने की पावन प्रेरणा प्रदान की। जैन विश्वभारती की ओर से श्री राजेश कोठारी ने संघ सेवा पुरस्कार 2017 के श्री कन्हैयालाल छाजेड़, जैन विद्या पुरस्कार वर्ष 2016 के लिए श्रीमती पुखराज सेठिया, वर्ष 2017 के लिए श्रीमती सुषमा आंचलिया और जय तुलसी विद्या पुरस्कार के लिए तुलसी बाल विद्या विहार, पेटनलावद के नामों की घोषणा की।