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जैन दर्शन के अनुसार भगवान हनुमान कथा, पवनजंय ने अपनी पत्नी अंजना का तिरस्कार क्यों किया? #Hanuman #BhagwanHanuman #Padampuran
जब पवनंजय की अंजना से सगाई हुई थी, तब पवनंजय ने अंजना को देखा भी नहीं था ।अतः जब उन्होंने अंजना के रूप की प्रशंसा सुनी तो उन्हें अंजना को देखने की तीव्र इच्छा हुई । यद्यपि शादी तीन दिन बाद ही होने वाली थी, पर पवनंजय को अंजना के देखे बिना चैन नहीं था । अतः वे अपने अभिन्न मित्र प्रहस्त के साथ आकाशमार्ग से उन्हें देखने चले गए । राजा महेंद्र के महल में पहुँचकर वे सखियों से घिरी अंजना की बातचीत को छिपकर सुनने लगे । बातचीत के बीच में अंजना की एक सखी बसन्तमाला पवनंजय की प्रशंसा करने लगी, तभी उसकी बात काटकर उनकी दूसरी सखी मिश्रकेशी कहने लगी कि पवनंजय और विद्युत्प्रभ की कोई तुलना नहीं । विद्युत्प्रभ बल, पराक्रम,रूप सब में ही पवनंजय से श्रेष्ठ है ।"वह शीघ्र ही मुनि होगा"-यह सुनकर ही राजा ने विद्युत्प्रभ के स्थान पर पवनंजय से इसका विवाह तय कर दिया है ।पवनंजय में अनुरक्त अंजना इतना सुनने पर भी लज्जावश कुछ न बोली ।
अंजना को मौन देखकर पवनंजय को बहुत गुस्सा आया और वे वहाँ से वापिस आ गए । उन्हें सन्देह हुआ की अंजना को भी विद्युत्प्रभ ही पसन्द है ।यदि उसे वह पसन्द न होता तो सखी की बात चुपचाप नहीं सुनती रहती ।पवनंजय सोचने लगे कि जो स्त्री अन्य पुरुष पर आसक्त है, उससे विवाह करना ठीक नहीं_, सन्देह उस अमरबेल के समान है, जो बिना जड़ के होती है और दुसरो के सहारे पनपती है । एक दृष्टि से सन्देह अमरबेल से भी भयंकर है,क्योंकि अमरबेल तो पहले दुसरो को नष्ट करती है, फिर बाद में स्वयं नष्ट होती है; किन्तु सन्देह प्रथम अपने को ही मिटाता है,दूसरे मिटें या न मिटें । सन्देह जिसके मन में पलता है, उसे ही सबसे पहले बर्बाद भी करता है । वह अपनों को ही समाप्त करता है, अजनबी तो इसकी सीमा से बाहर ही होते हैं_
वहम इंसान का दुश्मन है, जो मन मस्तिष्क पर बुरी तरह हमला कर विवेक को हर लेता है । विवेकरहित सन्देह से जकड़े पवनंजय ने घरवालों को अपना निर्णय सुनाया कि मैं अंजना से विवाह नहीं करूँगा । कुमार का यह निर्णय सुनकर दोनों राजाओं के खेमो में खलबली मच गई । किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि कलतक तो राजकुमार अच्छे भले थे,विवाह के इक्छुक थे, अब यह रातों-रात क्या हो गया है? माता पिता के बहुत समझाने पर उन्होंने विवाह तो कर लिया, पर विवाह के बाद अंजना की शक्ल तक नहीं देखी ।_
_"पवनंजय अंजना से विरक्त हैं, वे उनका मुख भी देखना पसन्द नहीं करते, उन्हें एक अलग महल में रख दिया है ।"यह बात जंगल में लगी आग के समान सारे राज्य में अल्पकाल में ही फ़ैल गई । सन्देह का बीज पनपता शीघ्र है, पर नष्ट मुश्किल से होता है । पवनंजय को सन्देह के कीड़े ने बाईस वर्ष तक अंजना से दूर रखा । और जैसा कहा जाता है कि "वहम का इलाज खुद इंसान के पास ही होता है ।" पवनंजय के साथ भी ऐसा ही हुआ । जब पवनंजय दशानन के बुलावे पर दशानन की सहायता के लिए जा रहे थे, तब रास्ते में रात होने पर उन्होंने सरोवर तट पर विश्राम के लिए डेरा डाला ।रात्रि सन्नाटे में जब वे विश्राम कर रहे थे की उन्हें चकवी का विलाप सुनाई दिया, जिसे सुनकर उन्हें विचार आया कि चकवी तो अपने प्रिय से एक रात का भी वियोग सहन नहीं कर पा रही है और मैंने उस सुंदरी को अकारण ही बाईस वर्ष का वियोग दिया । इतना ही नही,आते समय उसका तिरस्कार कर उसे छोड़ आया । अब आश्चर्य नहीं कि वह सचमुच ही म्रत्यु का वरण कर ले । अतः उससे मिलकर उसे सान्त्वना देना आवश्यक है, ताकि मेरे लौटने तक वह यत्नपूर्ण जीवित रहे । पर अभी मैं पिताजी व परिवारजनों से विदा लेकर आया हूँ; अतः वापिस जाना भी उचित नहीं है । समझ में नहीं आता कि,अब मैं क्या करूँ?
पवनकुमार ने जब अपने अभिन्न मित्र प्रहस्त के सामने अपनी समस्या प्रस्तुत की तो समय व सभी परिस्थिति को ध्यान में रखकर उसने मध्यममार्ग निकाला और उसकी सलाह के अनुसार वे दोनों अपने मुद्रर नामक सेनापति को सेना की सुरक्षा का भार सौपकर सुमेरु वन्दना के बहाने वहाँ से चल दिये । मित्र के साथ कुछ ही देर में वे अंजना के पास पहुँच गए और कई दिन अंजना के साथ रहे । वर्षों के विरह के पश्चात हुए मिलन मिलन में वे दोनों इतने खोए कि उन्हें समय का ध्यान ही नहीं रहा, वे अपने कर्तव्य को भी भूल गए । फिर प्रहस्त के द्वारा याद दिलाये जाने पर वे युद्ध को जाने के लिए ज्यों ही तैयार हुए तो अंजना ने कहा कि आप अपने आने की सुचना माता-पिता को देते जाइए, अन्यथा वर्षो से आपके द्वारा परित्यक्ता मैं आपके इस प्रच्छन्न मिलन से कलंकिनी घोषित हो जाऊँगी ।_
_पवनंजय ने अंजना के इस प्रस्ताव पर गम्भीरता से विचार नहीं किया । लज्जावश वे माता पिता के पास नहीं गए, पर अंजना के बहुत कहने पर अपने नाम से युक्त अंगूठी देकर बोले कि यदि कभी जरूरत पढ़ी तो इसे प्रमाण के तौर पर अपने पास रखो । वैसे हमारा यह प्रच्छन्न मिलन प्रगट हो, उससे पूर्व ही मैं तुमसे आकर मिल लूँगा ।_ कुछ दिनों पश्चात अंजना को गर्भवती जानकर पवनंजय के माता-पिता व परिवारजनों ने कलंकित जानकर उसे सखी के साथ अकेली पीहर भेज दिया । उसने अपनी सफाई में मुद्रिका भी दिखायी, पर उस पर किसी ने विश्वास् नहीं किया । ससुराल से परित्यक्ता अंजना को पिता के घर भी सहारा न मिला । सो उचित ही है; क्योंकि स्थानच्युत होने पर अपने मित्र भी शत्रु बन जाते हैं । जैसे जब तक कमल पानी में रहता है जब तक सूर्य की किरणों के स्पर्श से प्रस्फुटित होता है । वही कमल जब पानी के बाहर होता है, तो उन्ही सूर्य की किरणों से कुम्हला जाता है । यह सब सब पूण्य-पाप का खेल है । पूण्य के उदय में शत्रु भी सहयोग करते देखे जा सकते हैं और पाप के उदय में अपने अभिन्न भी साथ छोड़ देते है ।_
_दुर्भाग्य की सताई हुई, अपने पूर्वोपार्जित दुष्कर्मो का फल भोगती हुई अंजना अपनी सखी बसन्तमाला के साथ गहन जंगल में चली गई_ चलते-चलते थकने पर उन्होंने पास ही एक गुफा में आश्रय लिया । जंगली_ _जानवरों की भयंकर आवाजों से डरी हुई वे इधर उधर देख रहीं थी कि उन्हें एक शिला पर विराजमान मुनिराज दिखाई दिए, जिससे दोनों का डर कुछ दूर हुआ । उन्होंने मुनिराज की वन्दना की । मुनिराज के ध्यान के भंग होने पर बसन्तमाला ने उनसे पूछा कि कौन_ _मन्दभाग्य इसके गर्भ में आया है कि जिसके आते ही यह कलंकिनी घोषित हो गई व महलों में रहने वाली इस राजवधू को इन जंगलों में भटकना पड़ रहा है ।_
_यह सुनकर मुनिराज ने कहा- इसके गर्भ में आने वाला जीव मन्दभाग्यवाला नहीं, अपितु महाभाग्यशाली है । इसके जो पुत्र होगा,उससे माँ को परमसुख की प्राप्ति होगी,यथाशीघ्र पति से मिलाप होगा । यह जीव अनन्तशक्ति का धारक है और इसी भव से मुक्ति को प्राप्त करेगा । इसप्रकार उनकी जिज्ञासा को शांतकर मुनिराज तो आकाशमार्ग से विहार कर गए और उनके कहे शब्दों से अपनी सखी अंजना को धैर्य बंधाती हुई बसन्तमाला ने विद्याबल से अंजना के खान-पान आदि की व्यवस्था की । वह अंजना को प्रसन्न रखने का_ _यथासम्भव प्रयत्न करती । अपनी शक्ति अनुसार उसकी सेवा भी करती ।_
_इसप्रकार जंगली जानवरों से डरते हुए,अनेक प्रकार के कष्ट उठाते हुए,मुनिराज के कथन से एकदूसरे को धैर्य बंधाते हुए दिन व्यतीत किए_
_योग्य समय आने पर अंजना ने सुंदर पुत्र को जन्म दिया, जिसके तेज से गुफा_ _प्रकाशमान हो गई । इसी समय उन्हें आकाश में एक विमान दिखाई दिया, जिसे देखकर पुत्र के अनिष्ट की आशंका से डरकर अंजना रोने लगी । रोने की आवाज सुनकर विमान में बैठे_ _विद्याधर राजा नीचे गुफा में आए और उनसे रोने का कारण पूछते हुए बसन्तमाला से बोले कि यह स्त्री कौन है,यहाँ सघन वन में क्या कर रही है और क्यों रो रही है? बसन्तमाला ने बताया कि यह राजा महेंद्र की पुत्री है और राजा राजा प्रहलाद के पुत्र पवनंजय की पत्नी है ।बसन्तमाला ने सारा घटनाक्रम विद्याधर राजा को सुनाया । घटनाक्रम बताने के बाद उसने कहाँ कि आश्रयहीन अंजना इस भयानक वन में रहने लगी । और अब पुत्र के जन्म होने पर परिवारजनों से विलग अकेली होने से यह रो रही है ।_
_इतना सुनकर वे बोले कि मैं हनुरुहद्वीप का स्वामी राजा प्रतिसूर्य हूँ । अंजना मेरी भानजी है । मैंने इसे बहुत दिनों से देखा नहीं है, इसलिए पहचाना नहीं । जब उन्होंने किशोरावस्था की घटनाऐं सुनाई तो अंजना ने मामा-मामी को पहचान लिया । अंजना ने फिर उनसे बहुत देर तक बातें की इसके बाद वे अपने मामा के साथ हनुरुहद्वीप की ओर रवाना हो गई ।_
_रास्ते में अंजना की गोदी से उछलकर बालक पर्वत पर गिर पड़ा, पर आश्चर्य तो यह कि शिला चकनाचूर हो गई, पर बालक को खरोंच भी नहीं आई । चकनाचूर शिलापर बालक प्रसन्न मुद्रा में पड़ा था_ यह देखकर राजा ने अंजना से कहा कि जब इस बालक में बाल-अवस्था में इतनी ताकत है तो पता नहीं युवावस्था में क्या करेगा? यह तो चर्मशरीरी है । आज से इसका नाम श्रीशैल रहा ।_
_हनुरुहद्वीप पहुँचने पर उसका जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया । हनुरूहद्वीप में रहने से बालक हनुमान नाम से प्रसिद्ध हुआ ।_
_श्री पद्मपुराण के आधार पर_
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सवाई माधोपुर के खंडार रेंज में तारागढ़ दुर्ग की पहाड़ी में 844 साल पुरानी 80 जैन प्रतिमाए:) #AncientJainism #SawaiMadhopur #shareMaximum
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आज क्षमावाणी पर्व है -मुझे कुछ नहीं आता, मैंने गलतियों से सिखा है - आप मुझे क्षमा करे प्लीज! As An Admin I do ask for forgiveness humbly to everybody! #Kshamavaani
Frnzz.. जैसे मैं जिनवाणी को मुनिओ के प्रवचन आदि को शेयर करता हूँ तो क्योकि एक समय में वस्तु के एक द्रष्टिकोण के बारे में बात की जा सकती है और जैसा आज बहुत सी बातो को लेकर मतभेद है तथा हमारी विचारधारा को अलग अलग रहती ही है क्योकि हर व्यक्ति अपनी समझ के अनुसार अर्थ को लेता है तो ऐसे में बहुत बार मैंने देखा है इन मतभेदों को लेकर कुछ व्यक्तियों के साथ ना चाहते हुए भी मनभेद हो जाता है जो कभी उजागर तो नहीं होता पर कोल्ड वॉर जैसा रहता है! मैं उन व्यक्तियों से आज क्षमा माँगना चाहता हूँ अगर मेरे कारण को कभी कषाय हुई हो, मेरे किसी शब्द से आपको गलत लगा हो या मेरे एडमिन होने के कारण कभी मेरे से कुछ गलती अनजाने या जान बुझकर करदी हो तो भी मुझे छोटा और अज्ञानी समझकर क्षमा करे, पेज बनाने और चलाने उदेश्ये सिर्फ और सिर्फ अपनी धर्मं वृद्धि और साथ धर्मं प्रभावना का था... है और रहेगा! कभी कभी ऐसी परिस्थितिया पेज में बन जाती है की मुझे एडमिन होने के कारण कुछ पोस्ट/कमेंट को डिलीट करना पड़ता है ताकि विवाद ज्यादा ना बढे इस वजह से कभी मेरे से भी गलती गलती हो जाना स्वाभाविक है तो मैं आपसे क्षमा चाहते हूँ, जिनके साथ कोई विवाद नहीं वे तो क्षमा करेंगे ही, पर यदि कभी किसी कोई भी बात के कारण कषाय हुई हो या उनके मन में कोई शल्य मेरे को लेकर हो या मुझमें ego आगया हो तो मैंने गलती करी हो तो कृपया क्षमा करे और अगर आप कुछ बताना चाहते है बता भी सकते है मैं अपने को सुधारने की कोशिश करूँगा -Nipun Jain
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