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अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
अनित्य अनुप्रेक्षा से मोह-मूर्छा को तोड़ने का हो प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण
-आचार्यश्री ने संसार और पदार्थों के अनित्यता की अनुप्रेक्षा का किया वर्णन
-धर्म, साधना और अच्छे कार्यों में कार्यजा शक्ति का उपयोग करने की प्रदान की प्रेरणा
-‘तेरापंथ प्रबोध’ आख्यान शृंखला में समन्वय के सिद्धान्तों का किया वर्णन
-राजस्थान राज्य के कंट्रोलर गवर्नर श्री लोकेश सहल ने किए आचार्यश्री के दर्शन, प्राप्त किया पावन पथदर्शन
-‘शाकाहार श्रेष्ठ आहार’ का अंग्रेजी अनुवाद पुस्तक भी आचार्यश्री के चरणों में लोकार्पित
07.09.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)ः जीवन को बेहतर बनाने और आत्मा का कल्याण का मार्ग बताने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, मानवता के मसीहा, शांतिदूत, महातपस्वी, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को श्रद्धालुओं को अनित्य अनुप्रेक्षा के द्वारा संसार में आसक्ति और मोह-मूर्छा को तोड़कर अनासक्त भाव जागृत कर अपनी आत्मा का कल्याण करने का मार्ग प्रशस्त किया तो वहीं ‘तेरापंथ प्रबोध’ आख्यान शृंखला के अंतर्गत श्रद्धालुओं को सरस शैली में समन्वय के सिद्धान्तों के बारे में भी पावन पथेय प्रदान किया। इस दौरान आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जयपुर स्थित राज्यपाल भावन में कंट्रोलर गवर्नर के पद पर कार्यरत श्री लोकेश सहल पहुंचे। आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से आशीर्वाद मिश्रित पावन पाथेय भी प्राप्त किया।
गुरुवार को कोलकाता के राजरहाट स्थित महाश्रमण विहार परिसर में बने ‘अध्यात्म समवसरण के पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी से मोह-मूर्छा को तोड़ कर आत्मा को कल्याण की दिशा में ले जाने का पथ प्रशस्त करते हुए कहा कि धर्मध्यान के अंतर्गत अनित्य अनुप्रेक्षा के बारे में बताया गया है। आदमी पदार्थों की अनित्यता की अनुप्रेक्षा करे। इस दुनिया में जो कुछ भी है, एक दिन नष्ट हो जाएगा, मिट जाएगा, अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। दुनिया में पदार्थ नित्य और अनित्य दोनों है। जितना पदार्थ अनंतकाल पहले इस पृथ्वी पर था उतना आज भी और उतना ही आगे भी रहेगा। उसी प्रकार जो आत्मा अनंतकाल पहले थी, वह आज भी है और आगे भी रहेगी। पदार्थ की उत्पाद होता है तो उनका व्यय भी अवश्य होता है। व्यय के बाद पदार्थ नष्ट भी हो जाते हैं। उदाहरण के तौर पर आदमी शरीर को ही देख ले तो पहले बचपन की शरीर, फिर युवावस्था की शरीर और फिर बुढ़ापे की शरीर और एक दिन अवसान को प्राप्त हो जाता है। आदमी अनित्य अनुप्रेक्षा में यह ध्यान दे कि दुनिया में सबकुछ अनित्य है, आज शरीर सक्षम है, कल अक्षम हो सकती है, जो कार्य क्षमता आज है, वह आगे नहीं रह सकती। अनित्य की अनुप्रेक्षा से ही आदमी मोह-मूर्छा को त्याग सकता है। आचार्यश्री ने लोगों को उत्प्रेरणा प्रदान करते हुए ‘इ तन रो, पल रो भरोसो नहीं’ गीत का आंशिक संगान कर भी लोगो को प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री ने ‘तेरापंथ प्रबोध’ का सरस शैली में वाचन और आख्यान शृंखला के अंतर्गत लोगों को समन्वय के सिद्धान्तों के बारे में बताया। साथ ही ने चैमसी पक्खी कार्ति शुक्ला चतुर्दशी को ही होने की बात बताई और पांच नवम्बर को इस चतुर्मास स्थल से करीब 7.21 बजे प्रस्थान करने की घोषणा की। आचार्यश्री ने साधु-साध्वियों के भी आवश्यक दिशा-निर्देश दिए।
वहीं आचार्यश्री के दर्शन को पहुंचे पूर्व एसडीएम व वर्तमान में राजस्थान सरकार में जयपुर स्थित राज्यपाल भवन में गवर्नर कंट्रोलर के पद पर कार्यरत श्री लोकेश सहल ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन पाथेय प्रदान किया और जहां भी रहें नैतिकता के साथ अच्छा काम करने की पावन प्रेरणा प्रदान की। इसके उपरान्त डा. कुसुम लुणिया द्वारा लिखित पुस्तक ‘शाकाहार श्रेष्ठ आहार’ के अंग्रेजी संस्करण को डा. धनपत लुणिया, श्री माणकचन्द नाहटा और अणुव्रत महासमिति के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्रजी सहित अन्य लोगों ने आचार्यश्री के चरणों में लोकार्पित कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।