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आचार्य विद्यासागर जी @ रामटेक... #AcharyaVidyasagar ✌️#MuniYogsagar
आचार्य श्री के Real brother ओर मुनि श्री योग सागर जी महाराज ने कहा कि पुण्य मैं कमी थी जो आज आचार्यश्री के प्रवचनों का लाभ नहीं ले पाए! उन्होंने कहा धर्म की परिभाषा आपने पूज्य गुरूदेव के मुख से खूव सुना हें अहिंसाधर्म ही एक श्रेष्ठ धर्म हें! आज त्याग धर्म हें पाप के व्याज को चुकाता हैं वह दान कहलाएगा! जव तक आप पूर्णतया पाप को नहीं त्यागोगे तव तक आपका त्याग धर्म कोई काम का नहीं! मुनि श्री ने एक कथानक के माध्यम से दान की महिमा वताते हुये कहा कि एक सेठ दान देते देते निर्धन होगया, लेकिन उसने अप्रसन्नता व्यक्त नहीं की! वह अपने कर्तव्यों की पूर्ती में लगा रहा! एक दिन उस सेठ का पुराना मित्र आया और उसने अपने उस मित्र को सहायता करने के लिये उसने कोशिस की! वह सेठ अपने दानों को एक कापी में लिखा करते थे! एक पलडे़ पर सोना/ और दूसरे पलडे पर वह डायरी रख दी लेकिन वह मित्र की अच्छाईयां के अनुपात में वह सोना भी कम पड़ गया! दया करुणा को धारण करने वाला वयक्ती संसार में अहिंसा को याद कर दया की ओर दृष्टि कर रहा हें! इस अवसर पर मुनि श्री विऩम सागर जी महाराज ने संवोधित करते हुये कहा कि दयोदय और दया का उदयप्रसूत होता हैं, दर्शन और धर्म प्रत्येक जीव के हृदय में विराजमान हें! जैन दर्शन में जिन वनने की शैली वनने का नाम हें और धर्म आचरण पद्धति का नाम हें! मुनि श्री ने कहा कि धर्म तो एक मात्र अहिंसाधर्म ही हें उस अहिंसाधर्म को पालन करने के लिये ये दस धर्म उत्तम क्षमा से प्रारंभ हुआ हें और आज त्याग करने का धर्म है!मुनि श्री ने कहा कि गाय के प्रति आचार्य गुरूदेव के मन में २० वर्ष पहले की करूणा का वर्णन करते हुये कहा कि कडाके की ठंड में दिसंम्वर का महिना तिलवारा घाट में दयोदय महासंघ की स्थापना हुई थी एवं गौ शाला की विल्गिंग का निर्माण कार्य शुरु हुआ और उसमें तराई हुई थी और उसमें आचार्य श्री रहे जव उनसे कहा गया तो उनका जबाब था कि जव हम ही परिषय नहीं सहेंगे, परिषयविजयी नही वनेंगे तो श्रावक कैसे आएंगे!
उन्होंने कहा कि जव तक आप पीजा वर्गर आदि को तो नहीं छोड़ पा रहे हें??? और गौ मूत्र और गोवर के उत्पादन की वात करना वेमानी हैं! उन्होंने कहा कि आजकल पैकेजिंग फूड मांसाहारी होते जा रहे हैं और आप लोगों के वच्चे खूव चाव से खा रहे हें!जव किसी साधक का पुण्य काम करता हैं तो उनकी संसार में रुकने की कोई व्यवस्था नहीं वनती! चाहे राम को देख लो, उनको अपना घर छोड़ना पडा़ और रावण की व्यवस्था को देखीये उसका पापानुबंधी पाप वड़ रहा था उसने सोने की पूरी लंका वना दी! जिसको अहिंसाधर्म का पालन करना होता हैं उसके ऊपर कितनी कंडीसन लगा दी??? पुण्यात्माओं और धर्मात्माओं को देखीये एक एक ग्रास के ऊपर देखना पड़ता हें!और जरा सा वाल आ जाए या कोई छोटा सा जीव दिख जाए तो अंतराय करना पडता हैं! मुनि श्री ने कहा कि जव तक आप चमढे की वस्तुओं का त्याग नहीं कर सकते/ वाजार की पैकिंग वस्तुओं जिसमें गौ मांस की परत होती हें, उन सभी का त्याग करना आवश्यक हैं! तभी आपका त्याग धर्म और गौ रक्षा का यह सम्मेलन सार्थक होगा!!
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रवीश कुमार जैन धर्म के पर्युषण पर्व और क्षमावाणी पर्व के महत्व को बता रहे हैं। #RavishKumar #Jainism #Kshama
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सुनिए सुविख्यात पत्रकार रवीश कुमार को। वह जैन धर्म को सबसे अच्छा धर्म बता रहें हैं। पर्युषण पर्व और क्षमावाणी पर्व के महत्व को बता रहे हैं। #RavishKumar #Jainism #Kshama
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जैन धर्मं Philosophy - भारतीय-इतिहास का अभिन्न अंग होकर भी, एक उपेक्षित सी... | My review regarding Jainism Books 📚 & Existence @ Delhi Book Fair, New Delhi.
भारत का इतिहास जैन धर्मं के अध्यन के बिना अधुरा है, ऐसा विश्व के बहुत से विद्वान चाहे वे पाश्चात्य सभ्यता से हो या भारतीय सभ्यता से, and the सब जिन्होंने भी जैन धर्मं का अध्यन किया तो आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा की, अपने आप में विराटता और सम्पूर्णता लिए हुए जैन-दर्शन प्रकाश में नहीं आया और बड़े बड़े विद्वान् लोग भी इस दर्शन को जानते भी नहीं थे, भारत में हिन्दू घाटी की सभ्यता जिसको हिन्दू सभ्यता कहा गया और हिन्दू कोई धर्म नहीं बल्कि एक सभ्यता है जबकि धर्मं का नाम Vedanta है, भारत क्षेत्र में श्रमण और वैदिक परमपरा प्राचीन काल से चल रही है, इसी कारन इन दोनों का एक दुसरे पर प्रभाव भी साफ़ नज़र आता है, वैदिक सभ्यता भी इस प्रभाव से अछुता नहीं रह सका, यजुर्वेद, भागवत पुराण आदि बहुत ग्रंथो में ये प्रमाण मिलते है की निर्ग्रन्थ श्रमण रहा करते थे और वे नग्न थे, बाद में ऋषभदेव आदि के बढ़ते प्रभाव से प्रभावित हो ऋषभदेव को विष्णु अवतार मानलिया गया!
कल मैं Book Fair, Pragati Maidaan, New Delhi गया था, और वहा National and International Publishers, Librarians, Researchers, Academicians, Writers, Oxford University Press, Cambridge University इन सबके grand stalls available थे जिसमे umpteen बुक्स variety थी, fiction, Non-fiction, Encyclopedia, Politics, Religion, Philosophy, Biography, Science, School/college books, adventure, mystery, detective, horror, fantasy, romance क्या नहीं था, लेकिन एक कमी थी, जैन धर्मं का इतना प्रचार होने के बाद भी आज भी जैन-दर्शन की किताबे दिल्ली जैसे जगह पर होने वाले grand book fair में कोई जगह नहीं रहती है, कुछ स्टाल्स Religion, Ancient History, Philosophy theme पर dedicated थे, और वहा Buddhism, Hinduism, Sikhism, Islamism, Christianity, Judaism आदि धर्मो की किताबो का भडार था और सारी varieties available थी, लेकिन जैन-धरम की किताब आश्चर्यजनक रूप से एक भी नहीं मिली!! इससे बड़ा आश्चर्य क्या होसकता है, Oxford and Cambridge जैसी International Publishers की स्टाल पर भी Asian Philosophy, Indian Philosophy, Ancient India Philosophy, World Ancient Civilizations पर based एंड focused बुक्स थी और उसमे सब धर्मं का वर्णन था लेकिन जैन धर्मं का नाम तक नहीं था, Ancient Philosophy ऑफ़ इंडिया में भी सब धर्मो का वर्णन था, और कुछ धर्म जो भारत में जन्मे थे और अब विलुप्त हो चुके है ऐसे धर्मो का वर्णन भी Oxford and Cambridge publish बुक्स में था पर Jainism का नही! लेकिन Jainism का नाम नहीं था, ये गंभीर चिंतान्य विषय है की जैन धर्म जो अपने आप में सम्पूर्ण और अनुपम है ऐसी दर्शन के हमेशा से ignore किया गया, जबकि अभी वर्तमान में हमारे पास International लेवल के इंग्लिश based Librarians, Researchers, Academicians, Writers है जिन्होंने Jainism को International लेवल पर लेजाने के लिए Amazing वर्क किया है और Jainism को English में translation किया है, उनके lectures Oxford, Cambridge आदि विश्व विख्यात विश्वविद्यालयों में भी होते है और समयसार आदि के chapters भी शामिल है, कुंद-कुंद स्वामी के निश्चय और व्यवहार ने को वहा पढाया जाता है, जिनमे Indian and Non-Indian दोनों है, जहा से जैन-धरम का प्रचार किया जा सकता है वहा book नहीं!
पर हा, एक भारतीय ज्ञानपीठ के स्टाल को तो देखकर ख़ुशी हुई, वहा तो जैन धरम की किताबो का भण्डार ही भरा हुआ था, गोम्टेश्वर गाथा, जैन-धरम, बारह भावना, मेरी भावना, महावीर और उनका दर्शन, भद्रबाहू संहिता, केवलज्ञानी महावीर, समीचीन जिनधर्म, तिरुकुकुरल काव्य इत्यादि
लेकिन भारतीय ज्ञानपीठ का स्टाल एकदम सबसे लास्ट में था और उपर से वहा सिर्फ हिंदी किताबे की थी लोगो का interest कम था तो बहुत कम लोग उस स्टाल में एंट्री ही नहीं कर रहे थे, क्योकि यहाँ दिल्ली में लोग English बुक ही प्रेफेर करते है, visit करने वाले लोग mostly book lovers, DU students ही रहते है, या फिर जो serious है किताबो के मामले में, bcoz English global language है फिर typical और academic हिंदी आजकल हम generation को समझ भी कम ही आती है और boring लगती है! तो कुलमिलाकर हमें जरुरत है की कैसे वहा पर जैन दर्शन की किताबो की पहुच हो, मैं ये इसलिए नहीं बोल रहा की मैं जैन हूँ, बल्कि इसलिए की जैन-दर्शन अपने आप में सम्पूर्ण और विशालता को लिए हुए है और इसके कर्म सिद्धांत, अहिंसा परमो धरम, गुणस्थान, निश्चय और व्यवहार नय, अनेकान्तवाद और स्यादवाद, परस्परोपग्रहों जीवानाम और हर जिव की स्वतन्त्र सत्ता आदि सिद्धांत इसको अलग और अनुपम बनाते है और जिसने भी आज तक जैन दर्शन का पठन और चिंतन किया वो इस दर्शन से बचा नहीं रह सका!
- Nipun Jain..
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