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अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
महातपस्वी महाश्रमण की मंगल सन्निधि में पहुंचे पश्चिम बंगाल के महामहिम
-राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने आचार्यश्री के दर्शन कर प्राप्त किया आशीर्वाद
-राज्यपाल ने आचार्यश्री को शताब्दी पुरुष और अहिंसा यात्रा को बताया मानव जाति के महत्त्वपूर्ण
-आचार्यश्री ने असरण की अनुप्रेक्षा करने की दी प्रेरणा
-अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में 68वें अणुव्रत वार्षिक सम्मेलन का हुआ शुभारम्भ
-अणुव्रत अनुशास्ता ने संयम को बताया अणुव्रत की आत्मा, राज्यपाल महोदय को भी दिया आशीर्वाद
-दो लोगों को प्रदान किया अवुण्रत गौरव पुरस्कार, अणुव्रत के पदाधिकारियों सहित अन्य ने दी भावाभिव्यक्ति
08.09.2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)ः कोलकाता महानगर के राजरहाट स्थित महाश्रमण विहार में बने भव्य आध्यत्म समवसरण में सुबह के मंगल प्रवचन कार्यक्रम के दौरान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, शांतिदूत, मानवता के मसीहा, महातपस्वी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पश्चिम बंगाल राज्य के राज्यपाल श्री केशरीनाथ त्रिपाठी पहुंचे। वे आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आरम्भ होने वाले 68वें अणुव्रत के वार्षिक सम्मेलन के मुख्य अतिथि भी रहे। उन्होंने पहली बार आचार्यश्री के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। साथ ही आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के श्रवण के पश्चात राज्यपाल महोदय ने अपने संबोधन में आचार्यश्री द्वारा आरम्भ की गई अहिंसा यात्रा को जनकल्याणकारी बातते हुए आचार्यश्री के मानवीय मूल्यों की जागृति के लिए अनवरत प्रयासरत रहने के लिए शताब्दी पुरुष बताते हुए कहा कि ऐसे महापुरुषों का शुभागमन कभी-कभी हो पाता है। वहीं आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित अणुव्रत के कार्यकर्ताओं सहित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने असरण की अनुप्रेक्षा करने की पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए संयम को अणुव्रत की आत्मा बाताया और अणुव्रत को गृहस्थों के जीवन को अच्छा बनाने वाला बताया। अणुव्रत सम्मेलन में उपस्थित पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं द्वारा भी आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी गई और साथ ही दो लोगों को अवुण्रत पुरस्कार गौरव भी प्रदान किया।
शुक्रवार को अध्यात्म समवसरण में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में 68वें अणुव्रत सम्मेलन का समायोजन हुआ। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान सम्मेलन के मुख्य अतिथि व पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री केशरीनाथ त्रिपाठी भी पहुंचे। नियमानुसार राष्ट्रगान होने के उपरान्त अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी को असरण की अनुप्रेक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। साधक यह अनुप्रेक्षा करने मैं असरण, अत्राण हूं। आचार्यश्री ने जीवन के चार दुःखों-जन्म, बुढ़ापा, रोग और मृत्यु का वर्णन करते हुए एक सीमा के बाद आदमी का इस चारों से बचाने वाला कोई शरणभूत नहीं बन सकता। इसलिए आदमी को असरण की अनुप्रेक्षा करनी चाहिए। आदमी का एकमात्र शरणभूत धर्म हो सकता है जो आगे का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
आचार्यश्री ने अणुव्रत सम्मेलन को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि अणुव्रत की आत्मा संयम है। अणुव्रत की स्वीकृति आदमी को दुनिया की कितनी समस्याओं से मुक्त करने वाली हो सकती है। जाति, धर्म, संप्रदाय या कोई आस्थावान व्यक्ति ही नहीं, घोर नास्तिक आदमी भी अणुव्रतों को स्वीकार कर सकता है और अपने जीवन में सदाचार का पालन कर सकता है। आचार्यश्री ने अहिंसा यात्रा के तीन सूत्रों-सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति को अणुव्रत से जुड़ा हुआ बताते हुए कहा कि ये तीनों चीजे समाज में स्थापित हो जाएं तो समाज, राज्य व देश स्वस्थ रह सकता है, प्रशस्त रह सकता है और कितनी समस्याओं से मुक्त रह सकता है। अणुव्रत आन्दोलन गृहस्थों के जीवन को भी अच्छा बनाने वाला है। आचार्यश्री ने राज्यपाल महोदय और पश्चिम बंगाल राज्य को भी अपना पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि राज्य में खूब शांति स्थापित करने के लिए सच्चाई का बल हो, अहिंसा व नैतिकता के साथ न्याय हो तो कितनी समस्याओं का समाधान हो सकता है। राज्य मंे शिक्षाक विकास हो, नैतिकता, आध्यात्मिकता का विकास हो। राज्य की जनता में धार्मिकता को समझने का प्रयास करे और उससे जुड़कर अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करे। आचार्यश्री अणुव्रत का कार्य करने वाली समस्त संस्थाओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि संस्थाएं स्वयं अणुव्रत का पालन करते हुए अपने कार्यों में पारदर्शिता रखें। अपने कार्यों में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी से बचने का प्रयास करें। धार्मिक संस्थाओं के कार्यों में नैतिकता का विशेष रूप में समावेश हो, टेक्स चुकाने में कोई गड़बड़ी या झूठ से बचने का प्रयास हो तो कार्य निर्मल हो सकता है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त अणुव्रत महासमिति के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र जैन ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी और वर्ष 2016 का अणुव्रत गौरव पुरस्कार डा. सोहनलाल गांधी और वर्ष 2017 का डा. महेन्द्र कर्णावट को देने की घोषणा की। सम्मेलन के संयोजक स्थानीय अणुव्रत से जुड़े श्री लक्ष्मीपत बाफना और श्री अमरचंद दुगड़ सहित अणुव्रत महासमिति के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र जैन, महामंत्री अरुण संचेती समेत अनेक पदाधिकारियों ने राज्यपाल महोदय को अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। श्री टिकमचंद सेठिया ने राज्यपाल का परिचय प्रस्तुत किया।
आचार्यश्री के दर्शन और प्रवचन श्रवण को पहली बार उपस्थित हुए पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री केशरीनाथ त्रिपाठी ने अपनी भावाभिव्यक्ति में कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि महान समाज सुधारक, राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी के चरणकमलों से यह बंगाल की भूमि पावन हो रही है। यह क्षण बंगाल के इतिहास में स्वर्णअक्षरों में अंकित हो। अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी वास्तव में उन महान विचारकों, महासंतों में से हैं जिन्होंने न केवल आत्मा के दर्शन को व्याख्यायित किया है, बल्कि उसे जिया भी है। अध्यात्म दर्शन, संस्कृति और मानवीय चरित्र उत्थान के लिए आपका प्रयास अद्भुत है। नैतिकता, अनुकंपा, परोपकार, शांति, सौहार्द और मानवीय मूल्यों के आप प्रखर वक्ता हैं होने के साथ मानवता के कल्याण के लिए लगभग 40 हजार किलोमीटर से अधिक पदयात्रा करने वाले आप भारतीय ऋषि परंपरा के गौरव पुरुष हैं। आप जैसा परोपकारी महासंत सदियों में कभी-कभी पैदा होता है, जिन्हें हम शताब्दि पुरुष भी कह सकते हैं। आज मैं आपके दर्शन कर और श्रीचरणों मंे बैठकर आपके वचनों को सुनकर मैं खुद को बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। मैं बंगाल का प्रथम नागरिक होने के नाते आपका बारंबार अभिनन्दन करता हूं। खुद को उन्होंने आचार्यश्री तुलसी और अणुव्रत आन्दोलन से प्रभावित बताते हुए कहा कि यह आन्दोलन मानवता का कल्याण करने वाली और समाज का सुधार करने वाली है।
राज्यपाल महोदय के वक्तव्य के उपरान्त अणुव्रत के विभिन्न संस्थाओं से जुड़े पदाधिकारियों ने डा. सोहनलाल गांधी और डा. महेन्द्र कर्णावट को अणुव्रत गौरव पुरस्कार से आचार्यश्री की सन्निधि में सम्मानित किया। दोनों पुरस्कार प्राप्त जनों से आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।