11.09.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 11.09.2017
Updated: 12.09.2017

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Source: © Facebook

https://youtu.be/zxfHTyypOrc

दिनांक 11-09-2017 राजरहाट, कोलकत्ता में पूज्य प्रवर के आज के प्रवचन का संक्षिप्त विडियो..

प्रस्तुति - अमृतवाणी

सम्प्रेषण -👇
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🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 149* 📝

*विलक्षण वाग्मी आचार्य वज्रस्वामी*

*जीवन-वृत्त*

आचार्य वज्रस्वामी संघ का कुशल नेतृत्व करते हुए पांच सौ श्रमणों के साथ विहरण करने लगे। उनके व्यक्तित्व में रूप-सौंदर्य एवं वाक् माधुर्य का अनुपम संयोग था।

पाटलिपुत्र के श्रीसंपन्न धनश्रेष्ठी की पुत्री रुक्मिणी थी। वह ज्ञानशाला में विराजित साध्वियों को स्वाध्याय करते समय प्रतिदिन सुना करती थी।

*एवं अखंडियसिलो, बहुस्सुओ एस एस पसमड्ढो।*
*एसो य गुणनिहाणं, एस सरित्थो परो नत्थि।।48।।*
*(उपदेशमाला विशेष वृति, पृष्ठ 214)*

अखंडित शील, बहुश्रुत, प्रशांत भाव से संपन्न, गुणनिधान आचार्य वज्र के समान दुनिया में कोई दूसरा पुरुष नहीं है। "वइस्स गुणे सरदिंदुनिम्मले" उनके गुण शरच्चंद्र की भांति निर्मल हैं। रुक्मिणी वज्रस्वामी के यशोगान श्रवण से उनके व्यक्तित्व एवं रूप-सौंदर्य पर मुग्ध हो गई थी। पिता के सामने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए उसने स्पष्ट कहा "तात्!"

*जइ मज्झ वरो वइरो, हो ही ताहं विवाहमिहेमि।*
*जालाजाल करालो, जलणो मे अन्नहा सरणं।।50।।*
*(उपदेशमाला विशेष वृत्ति, पृष्ठ 214)*

"मैं वज्रस्वामी के साथ पाणिग्रहण करूंगी, अन्यथा अग्नि की जाज्वल्यमान ज्वालाओं की शरण ग्रहण कर लूंगी। उत्तम कुल की कन्याएं कभी दो बार वर का चुनाव नहीं करतीं।"

पुत्री द्वारा अग्निदाह की बात सुनकर वात्याचक्र के तीव्र झोंकों से प्रताड़ित पीपल के पत्ते की भांति धन-श्रेष्ठी का दिल कांप गया।

*साहिंति साहुणीओ, जहा न वइरो विवाहोइ।।51।।*
*(उपदेशमाला विशेष वृति, पृष्ठ 214)*

साध्वियों ने रुकमणी को बोध देते हुए कहा "आचार्य वज्र श्रमण हैं वे विवाह है नहीं करेंगे।" रुक्मिणी दृढ़ शब्दों में बोली "मुझे प्रव्रजित होना स्वीकार है। मैं वज्र के सिवाय दूसरे वर का चुनाव हरगिज नहीं करूंगी।"

आचार्य वज्र को पा लेने की प्रतीक्षा में रुक्मिणी अपने दृढ़ संकल्प का वहन करती रही। तपस्या निष्फल नहीं जाती। वह एक दिन अवश्य फलवान् होती है।

रुक्मिणी के सौभाग्य से आचार्य वज्रस्वामी का आगमन पाटलिपुत्र में में हुआ। पाटलिपुत्र का का राजा आचार्य वज्रस्वामी के व्यक्तित्व से विशेष प्रभावित था। उनके आगमन की सूचना पाकर वह हर्षित हुआ। आचार्य वज्र के स्वागतार्थ उनके सम्मुख गया। वज्रस्वामी से आगे आने वाले मुनियों से राजा पूछता "आपमें वज्रस्वामी कौन हैं?" उत्तर मिलता "वज्रस्वामी पीछे आ रहे हैं।" आगे आने वाले श्रमण द्युतिमान, कांतिमान थे। कुछ देर बाद विशाल मुनि मंडली से परिवृत आचार्य वज्र को दूर से ही आते देखकर राजा का मन प्रफुल्ल हो गया। वज्रस्वामी के रूप ने सबको आश्चर्यचकित कर दिया। भक्तिपूरित श्रावक की भांति मुकुलित पाणियुगल नतमस्तक मुद्रा में राजा ने विधिपूर्वक वज्रस्वामी को वंदन किया तथा 'अभिवंदिओ अभिणंदिओ' आदि शब्दों से उनका स्वागत किया।

*क्या रुक्मिणी का संकल्प परिपूर्ण हुआ...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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