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👉 भीलवाड़ा: अणुव्रत समिति की कार्यकर्ता बैठक आयोजित
👉 सादुलपुर-राजगढ़: राजकीय नव सर्जित उच्च प्राथमिक बालिका विद्यालय में "अणुव्रत कार्यशाला" का आयोजन
👉 कोयम्बतूर - अभातेमम की नव मनोनीत महामंत्री नीलम सेठिया का स्वागत
👉 गांधीनगर (बेंगलोर) - नवरात्रा आध्यात्मिक अनुष्ठान का आयोजन
👉 जयपुर - अभातेयुप के नव निर्वाचित अध्यक्ष श्री कटारिया व टीम का स्वागत समारोह
प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 159* 📝
*अक्षयकोष आचार्य आर्यरक्षित*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
नवदीक्षित मुनि के निवेदन पर आचार्य तोषलिपुत्र ने इक्षुवाटिका से अन्यत्र विहार किया। मुनि रक्षित में आगमों के अध्ययन की तीव्र उत्कंठा थी। आचार्य तोषलिपुत्र ने नवदीक्षित मुनि रक्षित को एकादशांग आगमों का प्रशिक्षण दिया एवं दृष्टिवाद आगम का आंशिक अध्ययन करवाया। अग्रिम अध्ययन के लिए उन्होंने मुनि रक्षित को पूर्वधर आचार्य वज्रस्वामी के पास भेज दिया।
गुरु आज्ञा शिरोधार्य कर मुनि रक्षित वहां से चले। मार्गान्तरवर्ती अवंतीनगर में आचार्य भद्रगुप्त से उनका मिलन हुआ। वार्तालाप के प्रसंग में मुनि रक्षित ने कहा "मैं अवशिष्ट दृष्टिवाद का एवं पूर्वों का अध्ययन करने के लिए आचार्य वज्रस्वामी के पास जा रहा हूं।" आचार्य भद्रगुप्त वज्रस्वामी के विद्या गुरु थे। उन्होंने मुनि रक्षित को स्नेह प्रदान करते हुए कहा "रक्षित! पूर्वों को पढ़ने की तुम्हारी अभिलाषा प्रशंसनीय है। तुम्हारा यहां आना उचित समय पर हुआ है। मेरी मृत्यु निकट है। अनशन की स्थिति में तुम मेरे पास रहकर सहायक बनो। कुलीन व्यक्तियों का यही कर्तव्य है।" आचार्य भद्रगुप्त का निर्देश पाकर मुनि रक्षित ने प्रसन्न मन से स्वयं को सेवा में समर्पित कर दिया। परम समाधि में लीन और अनशन में स्थित आचार्य भद्रगुप्त ने एक दिन प्रसन्न मुद्रा में कहा "मैं तुम्हारी सेवा से प्रसन्न हूँ। तुम्हारी परिचर्या से मुझे क्षुधा एवं तृषा का परीषह अनुभूत नहीं हुआ। मैं तुम्हें मार्गदर्शन दे रहा हूं। तुम वज्र स्वामी के पास पढ़ने के लिए जाओ, परंतु अपने भोजन एवं शयन की व्यवस्था पृथक रखना, क्योंकि आचार्य वज्र की जन्मकुंडली का योग है, जो भी नवागंतुक उनकी मंडली में भोजन करेगा और उनके पास रात्रि शयन करेगा, वह उनके साथ मृत्यु को प्राप्त होगा। तुम शासन के प्रभावक आचार्य बनोगे, संघाधार बनोगे, इसलिए मैं तुम्हें यह परामर्श दे रहा हूं।"
मुनि रक्षित ने शीश झुकाकर अत्यंत विनीत भाव से आचार्य भद्रगुप्त के मार्गदर्शन को स्वीकार किया। समाधिपूर्ण अवस्था में आचार्य भद्रगुप्त के स्वर्गगमन के पश्चात मुनि रक्षित ने वज्रस्वामी की दिशा में अध्ययनार्थ प्रस्थान किया। वहां पहुंचते ही आचार्य वज्रस्वामी के पास न जाकर उन्होंने रात्रि में अपनी सोने की व्यवस्था अलग की। आचार्य वज्रस्वामी ने ढलती रात में स्वप्न देखा नवांगतुक पथिक आकर दूध से भरा कटोरा पी गया है परंतु उसमें कुछ पेय अवशेष रह गया है। प्रातःकाल आचार्य वज्रस्वामी ने अपने शिष्यों से स्वप्न की बात कही। वार्तालाप का यह प्रसंग पूर्ण नहीं हुआ तभी एक अपरिचित अतिथि ने आकर वज्रस्वामी को वंदन किया। आचार्य वज्रस्वामी ने पूछा "तुम कहां से आ रहे हो?" मुनि रक्षित बोले "मैं आचार्य तोषलिपुत्र के पास से आ रहा हूं।" दूरदर्शी शुभचिंतक आचार्य वज्रस्वामी ने कहा "तुम मुनि रक्षित हो? अवशिष्ट पूर्वों का ज्ञान करने के लिए मेरे पास आए हो? तुम्हारे उपकरण, पात्र कहां है? उनको यही ले आओ। यहां आहार-पानी की व्यवस्था करके अध्ययन प्रारंभ करो। पृथक् रहने से पूर्वों का अध्ययन कैसे कर पाओगे?" मुनि रक्षित में आचार्य भद्रगुप्त द्वारा प्रदत्त मार्गदर्शन को बताया और अपनी पृथक् रहने की व्यवस्था भी बता दी। वज्रस्वामी ने ज्ञानोपयोग से समग्र स्थिति को जाना और आचार्य भद्रगुप्त के निर्देशानुसार उनके पृथक् रहने की व्यवस्था को स्वीकार कर लिया।
दृष्टिवाद का पाठ विविध भगों, पर्यायों एवं गंभीर शब्दों के प्रयोग से अत्यंत दुर्गम था। मुनि रक्षित ने स्वल्प समय में ही इसके 24 यव पढ़ लिए। उनकी अध्ययनशीलता और ज्ञान ग्रहण की क्षमता अद्भुत थी।
*मुनि रक्षित के दीक्षा लेकर दूर चले जाने के बाद दशपुर में क्या हुआ...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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