21.10.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 21.10.2017
Updated: 24.10.2017

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#Deepawali @ #Dubai by Jain Society 😍🙂 2 Kids bowing to Lord Mahavira

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श्रवणबेलगोला में आज 458 प्रतिमाओं के हुए केवलज्ञान के संस्कार। सुरिमन्त्र दिया क्षेत्र पर विराजमान आचार्य वर्धमान सागर जी एवम साधु परमेष्ठि ने। #AcharyaVardhmansagar #Bahubali

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#GoodNews @ Ramtek आचार्य श्री जी की स्वास्थ्य में पहले अपेक्षा बहुत सुधार आ गया है। ये उनकी साधना,और तपस्या का प्रभाव है,जो कर्मो को भी उनकी दृढ़ चर्या के सामने घुटने टेकने पड़ते है।। आप सभी व्यर्थ की अफवाहों से बचें, गुरु जी बहुत जल्द पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जायेगे।। #AcharyaVidyasagar 🙂🙂

आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महाराज की चर्या और साधना से भला कौन अनभिज्ञ है 50 सालों से गुरुजी वर्तमान समय के एकमात्र ऐसे साधक है जिन्होने अपनी साधना व चर्या में किचिंत भी दोष नहीं लगाया है। वर्तमान में भी गुरुजी की चर्या आरोही हो रही है। विगत 15 अक्टूबर को आचार्य भगवंत के उपवास था व स्वास्थ्य भी खराब था फिर 18 अक्टूबर को गुरुजी ने पुनः स्वास्थ्य प्रतिकूल होते हुए भी उपवास कर लिया। और लोगों को दिखा दिया कि वर्तमान में भी चौथे काल जैसी चर्या के पालक साधूगण विराजित है। तभी तो मात्र आचार्य श्री को देखकर भरी यौवन अवस्था में लोग अपना सब कुछ छोड़ने को तत्पर हो जाते है।

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#आचार्यविद्यासागर जी @ गिरनार जी 72 करोड़ तथा 700 करोड़ मुनिराज कि मोक्ष स्थली.. 4th टोंक पर.. केंद्र बिंदु आत्मा को बनाकर.. कठिन तपस्या करे गिरनार में.. गुरु ध्यान लगाए पद्मासन में.. ☺️

कुमार अरिष्टनेमि विवाह हेतु राजमती के द्वार पर उपस्थित होते हैं, किन्तु दावत के लिए एकत्रित पशुओं की करुण चीत्कार सुनकर अरिष्टनेमि विवाह से विमुख हो जाते हैं| पशु-वधशाला के द्वार खोलकर पशुओं को मुक्त करा दिया जाता है और विवाह के लिए प्रस्तुत अरिष्टनेमि राजमती की माला स्वीकार करने के बजाय गिरनार पर्वत की ओर अपने कदम बढा लेते हैं| अरिष्टनेमि के इस अभिनिषक्रमण की कथा को न केवल घर घर में गाया सुनाया जाता है, वरन जैन धर्म के तेइसवे तीर्थंकर पारसनाथ भी इस महान करुणा के दृष्य को देखकर प्रभावित हो जाते हैं और प्रव्रज्या स्वीकार कर लेते हैं| राजमती की वरमाला उसके हाथ में ही धरी रह जाती है, हल्दी और मेहँदी अपना रंग ले आती हैं, पर मांग भरने से पहले ही अहिंसा और करुणा का ऐसा अमृत अनुष्ठान होता है कि अरिष्टनेमि गिरनारवाला श्रमण हो जाते हैं| राजमती भी उनके पावन पदचिन्हों का अनुसरण करती हैं| अरिष्टनेमि को गिरनार पर्वत पर साधना करते हुए ध्यान की उज्जवल भूमिका में परम ज्ञान की प्राप्ति होती हैं| राजमती जो किसी समय नेमिनाथ की पत्नी होने वाली थी अरिष्टनेमि के साध्वी संघ की प्रवर्तिका और अनुशास्ता बनी| अरिष्टनेमि भगवान महावीर से करीब 85000 पूर्व हुए| www.jinvaani.org

गिरनार पर्वत पर अरिष्टनेमि और राजमती के अतिरिक्त अन्य अनेकानेक संत, महंत और सिद्ध योगियों का निर्वाण हुआ| सचमुच यह वह स्थली है जो भारतीय आराध्य स्थलों का प्रतिनिधित्व करती है|

श्री गिरनार जी गुजरात में जूनागढ़ के पास समुद्र तल से ३१०० फ़ुट ऊँची पर्वतावली हैं| गगनचुम्बी पर्वत मालाओं के बीच परिनिर्मित यह पावन तीर्थ जैन धर्म और हिन्दू धर्म दोनों का आराध्य स्थल हैं| जैन इस तीर्थ की पवित्र माटी को अपने शीर्ष पर चढ़ाने के लिए आते हैं| एक दृष्टि से तो यह पालीतान महातीर्थ की पांचवी टोंक माना जाता हैं| वर्तमान में आचार्य श्री निर्मल सागर जी ने जिस तरह यहाँ धुनी रमाई हैं उससे तीर्थ की रक्षा में भी सहयोग मिला हैं और विकास में भी योगदान हुआ हैं| आचार्य श्री १९८० से श्री गिरनार जी के विकास और रक्षा का भाव मन में रखकर यहीं स्थाई हो गए हैं| उन्होंने विश्व शांति निर्मल ध्यान की स्थापना की और पर्वत के प्रवेश द्वार के दाहिनी ओर एक पहाड़ी पर अपना आश्रम स्थापित किया हुआ है| वहां मंदिर जी और छोटा सा संत निवास भी निर्मित किया| किन्तु सन १९८८ में कुछ अराजक तत्त्वों ने वे कमरे तोड़ दिए| इस उपसर्ग को झेलते हुए भी आचार्य श्री अडिग रहे और पश्चात उसी स्थान पर पुनः बहुत ही सुन्दर मंदिर, निवास आदि की स्थापना की गयी| सबसे विशिष्ट कार्य तो यह हुआ की सन १९९४ में २२ फ़ुट ऊँची भगवान नेमिनाथ की अति मनोज्ञ खडगासन प्रतिमा की स्थापना हुई| कहते हैं कि अतिशय इस प्रतिमा में यह हुआ है कि उस पर शंख का चिन्ह स्वयं ही प्रस्फुटित हुआ और भगवान नेमिनाथ का चिन्ह भी शंख ही हैं| आचार्य श्री ने एक मंदिर भी बनवाया| सन २००० में शेषावन में भगवान के जो चरण खंडित होकर टूट चुके थे उनका पुनः निर्माण कराया और छत्री बनवाई| इसी प्रकार त्रिकाल चौबीसी का निर्माण कराया| इस मंदिर में जो मूर्तियाँ हैं वे बहुत ही आकर्षनीय हैं| आचार्य श्री ने गरीब बच्चों के लिए एक गुरुकुल की स्थापना भी करायी| आचार्य श्री ने इस प्रकार तलहटी से लेकर ऊपर तक दिगंबरत्व के अस्तित्व का एहसास पैदा किया www.jinvaani.org

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