08.11.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 08.11.2017
Updated: 09.11.2017

Update

👉 अणुव्रत महासमिति असम संगठन यात्रा
📍 नलबाड़ी में खुले अणुव्रत के द्वार

प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

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👉 भायंदर, मुम्बई - जैन विद्या परीक्षा
👉 केसिंगा (ओड़िशा) - मेघा हर्बल चेकअप कैंप का आयोजन
👉 किशनगंज - नैतिकता, नशामुक्ति और अहिंसा कार्यशाला
👉 किशनगंज - संस्कार निर्माण कार्यशाला
👉 हुबली- महिला मंडल द्वारा जैन संस्कार विधि और तोरण प्रतियोगिता का आयोजन

प्रस्तुति -🌻 तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

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*पुज्यवर का प्रेरणा पाथेय*

👉 *अनित्यतता की अनुप्रेक्षा कर धर्म के प्रति जागरूक रहने का हो प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण*

👉 *-लक्स इंडस्ट्रीज से लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे सिंगूर*

👉 *-सिंगूर स्थित श्री बड़ाबाजार लोहापट्टी समिति में आचार्यश्री का हुआ पुनरागमन*

👉 *-हर्षित समिति सदस्यों ने आराध्य का किया अभिनन्दन*

👉 *-स्वयं वीतरागता के साधक ने लोगों को अनित्यतता की अनुप्रेक्षा करने की दी पावन प्रेरणा*

👉 *-समिति के अध्यक्ष सहित श्रद्धालुओं ने भी दी भावाभिव्यक्ति, प्राप्त किया आशीर्वाद*

दिनांक - 08-11-2017

प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

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Update

👉 *पूज्यप्रवर की सन्निधि में 06 से 14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के लिए.."KIDZONE" का अणुव्रत विश्व भारती द्वारा प्रभावी आयोजन*
👉 सम्पूर्ण चतुर्मास काल के दौरान KIDZONE सक्रिय रहा।
👉 बच्चों ने सीखे जीवन विज्ञान सहित अनेक आयाम
👉 बच्चों द्वारा नाटक आदि द्वारा पुज्यवर के समक्ष दी गई प्रस्तुति
👉 *कोलकत्ता की 37 ज्ञानशाला के बच्चो ने प्रति शनिवार गुरु दर्शन के साथ KIDZONE की एक्टिविटी में शरीक हुए*
👉 बच्चों को चरित्र आत्माओ का मिला सान्निध्य
👉 *अलमोड़ा से आए बाल संस्कारविद एवं स्टोरी टेलर श्री उदय किरौला ने एक सप्ताह तक बच्चों को खेल खेल में बांधे रखा*
👉 कहानी, खेल, अभिनय के माध्यम से संस्कार निर्माण का सफल प्रयास

प्रसारक: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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👉 जयपुर - आओ चले गांव की ओर कार्यक्रम के अंतर्गत दौसा की स्कूल में कार्यक्रम
📍 कार्यक्रम में अभातेमम पदाधिकारियों की उपस्थिति
👉 कांदिवली, मुम्बई -जीवन विज्ञान सेमिनार का भव्य आयोजन
📍 लगभग तीन हजार बच्चों ने लिया जीवन विज्ञान का प्रशिक्षण
👉 राजगढ़ - अणुव्रत आचार संहिता पर कार्यशाला का आयोजन
👉 इस्लामपुर - जैन जीवन शैली एवं बंदरवाल प्रतियोगिता के कार्यक्रम आयोजित
👉 अजमेर - मंगल भावना कार्यक्रम आयोजित

प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 193* 📝

*कीर्ति-निकुञ्ज आचार्य कुन्दकुन्द*

*जीवन-वृत्त*

आचार्य कुन्दकुन्द उग्रविहारी थे। वे दुर्गम घाटियों और वनों में निर्भीक भाव से विहरण करते थे। उनके पास तप का तेज और साधना का बल था। उनका चिंतन अध्यात्म प्रधान था।

शुभचंद्राचार्य की गुर्वावली में टीकाकार श्रुतसागरजी की षट्पाहुड़ टीकाओं की पुष्पिकाओं में तथा विजयनगर के शक सम्वत् 1307 के एक अभिलेखांश में कुन्दकुन्द के पांच नाम बताए हैं— *1.* पद्मनंदी, *2.* कुन्दकुन्द, *3.* वक्रग्रीवा, *4.* एलक (एलाचार्य), *5.* गृद्धपिच्छ।

आचार्य कुन्दकुन्द का दीक्षा के समय प्रदत्त नाम पद्मनंदी था। जन्म स्थान के आधार पर उनका नाम कुन्दकुन्द तथा सतत अध्ययन में ग्रीवा झुकी रहने के कारण वक्रग्रीवा हुआ। कुरल कृति के रचनाकार एलाचार्य नाम भी आचार्य कुन्दकुन्द का माना गया है। किसी समय गृद्धपिच्छी धारण करने के कारण वे गृद्धपिच्छ कहलाए।

इन पांचों नामों में अंतिम तीन नाम संशयास्पद हैं। गृद्धपिच्छ नाम उमास्वाति के लिए प्रसिद्ध है। शिलालेखों में प्राप्त जीवन प्रसंगों की भिन्नता के कारण एलाचार्य नाम कुन्दकुन्द नहीं है। श्रवणबेलगोला के अभिलेख संख्यक 305 के अनुसार वक्रग्रीवा (कुन्दकुन्द) द्रमिल संघ के अधिपति थे। आचार्य कुन्दकुन्द का द्रमिल संघ के साथ कोई संबंध नहीं था।

इंद्रनंदी के श्रुतावतार में जिनसेनाचार्य कृत समयसार टीका में एवं श्रवणबेलगोला संख्यक 40 के शिलालेख में पद्मनंदी नाम का उल्लेख है। द्वादशानुप्रेक्षा में रचनाकार का नाम कुन्दकुन्द बतलाया है।

आचार्य कुन्दकुन्द का पहला नाम पद्मनंदी एवं दूसरा नाम कुन्दकुन्द था। कुन्दकुन्द को तीव्रतपश्चरण के परिणामस्वरूप चारणलब्धि प्राप्त थी।

दर्शनसार के अनुसार आचार्य कुन्दकुन्द को महाविदेह में सीमंधर स्वामी से ज्ञानोपलब्धि हुई थी। टीकाकार जयसेन ने आचार्य कुन्दकुन्द की विदेह यात्रा का उल्लेख किया है, पर इस विदेह यात्रा के लिए शिलालेख आदि का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं दिया है।

आचार्य कुन्दकुन्द वास्तव में अध्यात्म दृष्टियों के प्रमुख व्याख्याकार थे। उनकी वाणी ने अध्यात्म के नए क्षितिज का उद्घाटन किया और आगमिक तत्त्वों को तर्कसंगत परिधान दिया।

उनकी दृष्टि में भावशून्य क्रियाएं सर्वथा निष्फल थीं। इन्हीं विचारों की अभिव्यक्ति में उनका एक श्लोक है—

*भावरहिओ ण सिज्झई, जइवि तवं चरई कोडिकोडियो।*
*जम्मंतराइं बहुसो लंबियहत्थो गलियवत्थो।।*
*(अष्ट पाहुड़, भाव पाहुड़, श्लोक 4)*

जीव दोनों हाथ लटकाकर और वस्त्र त्यागकर करोड़ जन्म तक तपश्चर्या करता रहे पर भाव-शून्यावस्था में उसे सिद्धि प्राप्त नहीं होगी।

*अध्यात्म की भूमिका पर रचित आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रंथ महत्त्वपूर्ण हैं। आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित साहित्य* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

📙 *'नींव के पत्थर'* 📙

📝 *श्रंखला -- 17* 📝

*शोभजी कोठारी*

*दोषारोपण*

गतांक से आगे...

शोभजी पर कल्पित अभियोग लगाकर दंडित कराने की बात सोची गई। उसकी व्यवस्था में उन्हें अधिक प्रयास नहीं करना पड़ा। नाथद्वारा में ही अनेक व्यक्ति ऐसे थे जो शोभजी को वहां जमने नहीं देना चाहते थे। वे लोग स्वामी भीखणजी के जितने विरोधी थे उतने ही उनके श्रावकों के भी। शोभजी को तो वे फूटी आंखों से भी देखना नहीं पसंद करते थे। वे जानते थे कि यह व्यक्ति भीखणजी का अनन्य भक्त होने के साथ ही स्वयं अच्छा तत्त्वज्ञ तथा बातचीत में निपुण है। चर्चा वार्ता में इसे पराजित कर देना किसी के वश का कार्य नहीं। यह यहां रहेगा तो निश्चित ही अनेक व्यक्तियों को अपनी ओर आकृष्ट करने का प्रयास करेगा। प्रच्छन्न रुप से भीखणजी के अनुयायियों की वृद्धि करेगा। इन्हीं सब कारणों से वे लोग शोभजी के वहां बस जाने से अत्यंत क्षुब्ध थे। वे उनके विरुद्ध अपनी चाल तय कर ही रहे थे कि केलवा ठाकुर की ओर से भी उन्हें प्रोत्साहित करने वाले संकेत मिले। उससे प्रेरित होकर वे बड़े उत्साह से उनके विरुद्ध वातावरण बनाने में लग गए।

शोभजी ने नाथद्वारा में बस कर अपने लिए कार्य की खोज प्रारंभ की तो उन्हें लाल बाजार की चुंगी पर खजांची का कार्य मिल गया। विरोधी लोगों को यह कैसे सहन हो सकता था। वे तत्काल उन्हें हटवाने या दंडित करवाने के प्रयास में लग गए। उनके प्रयास की चरम परिणति यह हुई कि वे लोग गोसाईंजी के कान भरने में सफल हो गए। उन्होंने आरोप लगाया कि शोभजी चुंगी की रकम में गड़बड़ करते हैं।

*कारागार में*

गोसाईंजी अर्थ के मामले में बड़े संवेदनशील थे। शोभजी द्वारा रकम में गड़बड़ करने की बात सुनी तो उनकी त्योरियां चढ़ गईं। शासक को सत्यासत्य की अपेक्षा कम ही होती है। जो बात जच गई, जच गई। उस समय की न्याय व्यवस्था शासक की इच्छा के अधीन थी। शोभजी को न अभियोग की जानकारी दी गई, न बचाव या स्पष्टीकरण का अवसर दिया गया। यहां तक की कुछ पूछा भी नहीं गया। गोसाईंजी ने उन्हें बंदी बनाने का आदेश दे दिया। सेवकों ने तत्काल आदेश पालन किया और शोभजी को बेड़ी पहनाकर कारागार की कोठरी में बंद कर दिया।

शोभजी पहले तो उस अप्रत्याशित स्थिति से आश्चर्यचकित एवं स्तंभित हुए, परंतु उन्हें समझते देर नहीं लगी के विरोधी व्यक्तियों का दांव लग चुका है। वे क्षुब्ध थे, परंतु निरुपाय थे। अंततः अशरण-शरण धर्म ही उस स्थिति में उनका एक मात्र सहारा था। उन्होंने अपने मन को शांत किया और समता भाव से अपने दिन काटने लगे। उनके मन में अनुताप था तो केवल इतना ही कि वे स्वामीजी की सेवा एवं सान्निध्य से वंचित हो गए थे।

*दरसण किण विध होय*

स्वामी भीखणजी उन दिनों मेवाड़ में ही विहरण कर रहे थे। नाथद्वारा के पार्श्ववर्ती क्षेत्रों में होने के कारण प्रायः पांच-चार दिनों से शोभजी दर्शन कर लिया करते थे, पर इस बार बहुत दिनों तक वे नहीं आए। कुछ दिनों पश्चात् विहार क्रम में स्वामीजी स्वयं नाथद्वारा पधारे। नगर प्रवेश के समय सम्मुख जाकर दर्शन करने वाले श्रावकों से स्वामीजी ने पूछा— "शोभाचंद कहीं बाहर गया हुआ है क्या?" आगत श्रावकों में से एक ने तब समीप जाकर स्वामीजी को सारी स्थिति से अवगत कराया।

स्वामीजी ससंघ नगर में पधारे। ठहरने के लिए लाल बाजार की दुकानों पर स्थान की याचना की। झोलके और नांगले कंधों से उतारकर नीचे रखे। श्रांत चरण दो क्षण का विश्राम भी नहीं कर पाए कि भक्त वत्सल स्वामीजी ने संतों से कहा— "चलो शोभाचंद को दर्शन दे आएं।" संतो को साथ लेकर स्वामीजी कारागार पधारे। कुछ श्रावक भी सेवा में थे। वहां अधिकारी को पूछकर अंदर प्रविष्ट हुए। शोभजी की कोठरी के पास पहुंचे तो देखा कि वे आंखें मूंदे ध्यान-मग्न गुनगुनाते हुए कुछ गा रहे हैं।

*शोभजी क्या गा रहे थे...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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News in Hindi

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प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

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प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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