20.11.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 20.11.2017
Updated: 21.11.2017

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Waoh! आज आचार्य श्री के सामने डोंगरगढ में अतिप्राचीन भव्य भगवान चंद्रप्रभ जी की शांतिधारा का video.. चंद्रगिरी के बड़े बाबा.. #AcharyaVidyasagar

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विवकेशील के सांथ संवेदनशील होना जरुरी है | समय पे काम करना संयमी की पहचान - आचार्य श्री विद्यासागर जी #today_Pravachan

चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा का आकार प्रतिदिन परिवर्तित होता है बढ़ता जाता है और पूर्णिमा के दिन उसकी उषमा से समुद्र की लहरों में उछाल आ जाता है ऐसे ही डोंगरगढ़ वासियों के भावों में भगवान के शमोशरण आने से उत्साह, उल्लास नज़र आ रहा है | आचार्य श्री ने कहा की आगे कब भगवान के समवशरण देखने को मिलेगा पता नहीं परन्तु पिछले 3 दिनों के विहार में भागवान के समवशरण की झलकियाँ देखने को मिली जो की अद्भुत थी | भगवान् की यह प्रतिमा बहुत प्राचीन है और जैसे कुण्डलपुर के भगवान् को आप लोग बड़े बाबा बोलते हो वैसे ही ये चंद्रगिरी के बड़े बाबा हैं |

दोपहर के प्रवचन में आचार्य श्री ने खरगोश और कछुवा के एक दृष्टांत के माध्यम से बताया की खरगोश बहुत तेज, फुर्तीला और विवेकशील था परन्तु उसने समय का सदुपयोग नहीं किया और संवेदनशीलता की कमी और आलस्य के कारण उसकी हार हुई | जबकि कछुवे की चाल धीमी थी परन्तु उसने समय का सदुपयोग किया और आलस्य को त्यागा और अपनी मंजील पर जाकर ही रुका | कछुवे के ऊपर का भाग बहुत मजबूत होता है और उसकी एक खासियत यह है की वह अपनी चारों भुजाओं एवं मुख को उसके अन्दर कर लेता है जिससे उसके ऊपर यदि गाड़ी भी चल जाए तो उसको कोई फर्क नहीं पड़ता है | इसी प्रकार हमें भी अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बिना आलस्य किये चलते रहना चाहिये|

आज दिनांक 19/11/2017 को आचार्य श्री का विहार मुरमुंदा से डोंगरगढ़ के लिए प्रातः 6 बजे हुआ जिसमे देव, शास्त्र और गुरु तीनो के सांथ रत्नों के सामान रथों में प्रतिभास्थली की बचियाँ इंद्र, इन्द्रनियाँ, देव, आदि अति सुन्दर दिखाई दे रहे थे | जो भी व्यक्ति रास्ते में विहार का दृश्य देखता और आचार्यचकित होकर वहीँ रूककर दर्शन करता और अपने मोबाइल के कमरे से इस दृश्य को कैद कर लेता | इस विहार में गाँव के लोगों ने भी उत्साह से भगवान् के समवशरण के दर्शन कर धर्म लाभ लिया जो की काफी अद्भुत था | आचार्य श्री ससंघ की अगुवानी में जनसैलाब उमड़ पड़ा और लोगों ने अपने घरों के सामने रंगोली बनाई और दीपक जलाकर उनका ह्रदय से स्वागत किया | यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।

*#बंगाल_की_अतिविशिष्ट_जिन_प्रतिमाएँ*

हम में से बहुत कम लोग यह जानते है कि प. बंगाल में एक समय जैन धर्म अपने अभ्युदय पर था यहाँ भगवान पार्श्वनाथ व भगवान महावीर का पदविहार भी हुआ था इसके पूर्व भी यहाँ जैन धर्म का प्रचार-प्रसार था। श्री राखालदास बनर्जी ने इसे तत्कालीन जैनो का गढ बताया है। बांकुरा,पुरुलिया में हजारों-हजार जिन प्रतिमाएँ बिखरी है जिन्हे स्थानीय लोग भैरव के रुप में पूजते है व कुछ जगह तो बलि भी दी जाती है।यहाँ की अधिकांश प्रतिमाएँ खड़गासन ही है। बर्धवान,सिंहभूम,वीरभूम,मानभूम आदि जगह के नाम भगवान वर्द्धमान/महावीर की स्मृति में रखे गए।पुरुलिया,बाकुंडा वर्धमान जिलों में हर 5 किमी के अंतर पर राजाओ से नयनाभिराम जैन मंदिर बनाए।यहां की आदिवासी जातियाँ 12/11 वीं शताब्दी तक जैन थी। 12 वीं शताब्दी में जैन धर्म बंगाल का राजधर्म था। बाद में विभिन्न कारणो से यहाँ जैन धर्म खत्म होने लगा जिसके निशान आज भी पूरे बंगाल में बिखरे पड़े है। बंगाल में सराक जाति पाई जाती है जो भगवान पार्श्वनाथ को अपना कुलदेवता मानती है किंतु काल के प्रभाव ने इनको भी मुख्यधारा से अलग कर दिया अब कुछ जैन संतो द्वारा पुनः इनको मुख्यधारा में लाने का प्रयास जारी है।

*#हम_क्या_करे*
सम्मेदशिखर जी जाने वाले प्रत्येक जैनी को बंगाल भी अवश्य जाना चाहिए इससे हमे हमारे जैन पुरावैभव का पता चलेगा।
सराको से भाई-भाई का रिश्ता शुरु हो उनके साथ विवाह संबंध स्थापित करे ताकि हमे निम्न जाति की लड़कियाँ अपने घर न लानी पड़े।
पूज्य मुनिराजों व साध्वी गणों का मंगल विहार इस क्षेत्र में हो जिससे अन्य लोग भी जो काल के थपेड़े में कुमार्गी हो गए है पुनः मूलधर्म में लौटे।
कोलकाता में मारवाड़ी जैनो की अच्छी आबादी है उन्हे इस क्षेत्र में भारत भर की समाज से मिलकर कार्य योजना बनानी चाहिए।

*#जैनम्_जयतु_शासनम्*

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News in Hindi

#Jainism #JainScholars #Canada #Germany #Dutch

Robert J. Zydenbos (born 1957, Toronto) is a Dutch-Canadian scholar who has doctorate degrees in Indian philosophy and Dravidian studies. He also has a doctorate of literature from the University of Utrecht in the Netherlands. Zydenbos also studied Indian religions and languages at the South Asia Institute and at the University of Heidelberg in Germany. He taught Sanskrit at the University of Heidelberg and later taught Jaina philosophy at the University of Madras in India. Zydenbos later taught Sanskrit, Buddhism, and South Asian religions at the University of Toronto in Canada. He was the first western scholar to write a doctoral thesis on contemporary Kannada fiction.

One of his famous books is Jainism Today & Its Future

In the Photo: Robert Zydenbos with his wife Eva.

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#भगवान_पार्श्वनाथ_की_प्राचिन_प्रतिमा_कर्नाटक_

तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म आज से लगभग 3 हजार वर्ष पूर्व वाराणसी में हुआ था वाराणासी में अश्वसेन नाम के इक्ष्वाकुवंशीय राजा थे| उनकी रानी वामा ने पौष कृष्‍ण एकादशी के दिन महातेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसके शरीर पर सर्पचिह्म था।
वामा देवी ने गर्भकाल में एक बार स्वप्न में एक सर्प देखा था, इसलिए पुत्र का नाम 'पार्श्व' रखा गया। उनका प्रारंभिक जीवन राजकुमार के रूप में व्यतीत हुआ। एक दिन पार्श्व ने अपने महल से देखा कि पुरवासी पूजा की सामग्री लिये एक ओर जा रहे हैं। वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि एक तपस्वी जहाँ पंचाग्नि जला रहा है, और अग्नि में एक सर्प का जोड़ा मर रहा है, तब पार्श्व ने कहा— 'दयाहीन' धर्म किसी काम का नहीं'।

✨ वैराग्य और दीक्षा ✨
तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने तीस वर्ष की आयु में घर त्याग दिया था और जैनेश्वरी दीक्षा ली थी और ब्रह्मचारी अविवाहित थे।

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