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तिर्थ वंदना तिर्थ भूमि कलिकुंड/kalikund tirth
पार्श्वंनाथ प्रभू दीक्षा के बाद प्रथम पारणु सारथधन के घर कर विहार कर कादंबरी नामक अटवि मे पधारे
वहां निर्मल नीर से भरे कमल के फूल से महकते हंस आदि पक्षी से गुजते कुंड नामक सरोवर के पास पीपल के वृक्ष के नीचे काऊसग ध्यान में खडे रहे
तब एक हाथी पानी पीने के लिए वहां आये
प्रभू को देख हाथी के भाव ऊछरने लगे
हाथी सरोवर में से सुढ मे पानी भरकर प्रभू को अभिषेक किया
बाद में सरोवर के बीच में खिलते कमल का फूल लाकर प्रभू को चढाया
हाथी की इस ऊच भावना से धरणेन्द खुश हुए
और हाथी को देव गती का पुण्य बांधा
इस पावन कारी भूमि कलिकुंड नामक तिर्थ से प्रचलित हुआ ।
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