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#खादी का अर्थशास्त्र अमीर बनने के अर्थशास्त्र की माँगों को संतुष्ट नहीं करता, परंतु यह आलस्य और बेकारी की समस्या का तत्काल और स्थायी हल है। यह कृषि का पूरक है, क्योंकि यह अन्य कुटीर उद्योगों का विकास करता है। मिलों ने अधिक उत्पादन के कारण, सुख के साधनों में इतनी अधिक वृद्धि कर दी है कि आज हर व्यक्ति, अन्य व्यक्ति से छीना-झपटी की होड़ में लगा हुआ है। उधर सुख-सुविधा के साधन हर पल नए बनते जा रहे हैं, इसलिए समाज में न कोई संतुष्ट है, न हो सकता है और असंतुष्ट का, भ्रष्टाचार का रास्ता पकड़ना स्वाभाविक ही है। आज के समय में भ्रष्टाचार का बाहुल्य है। आम जनता को रोटी के लाले पड़े हैं। स्मरण रहे, हर देश की सच्ची पूँजी, उस देश के वासियों का स्वास्थ्य और चरित्र है। इस वैभव के होते, भ्रष्टाचार पनप ही नहीं सकता। बेकारी और महँगाई न रहने से भ्रष्टाचार भी बहुत कम रह जाएगा। गाँव फिर से आबाद होंगे। कपास की पैदावार से लेकर, कपड़ा बुनने तक की प्रक्रिया जब गाँव में ही पूरी होने लगेगी तो गाँव के अबला-वृद्ध तरुण सभी को काम मिल जाएगा। उन्हें उदर-पूर्ति के लिए, प्रेमचंद के 'गोदान' के गोबर की भाँति, मजदूर बनकर, शहरों में ठोकरें नहीं खानी पड़ेंगी। शहर में जाकर वे अपना स्वास्थ्य और चरित्र दोनों खो बैठते हैं, यह हानि भी न होगी।
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#गौसेवा_राष्ट्रसेवा -आचार्य श्री विद्यासागर जी —ज्यादा से ज्यादा #शेयर करे..
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से बनी ‘शांतिधारा दुग्ध योजना का उद्देश्य आर्थिक नहीं, अहिंसा प्रेमियों के लिए शुद्ध सात्विक दूध, घी आदि उपलब्ध करवाना है। बीना (बारहा) जिला सागर (म.प्र.) के पास लगभग १०० एकड जमीन में प्लांट की शुरूआत होगी जिसमें ५०,००० लीटर दूध एकत्रित करने का लक्ष्य है। जो पाश्चुरीकृत दूध होगा इसमें १५० करोड की लागत लगेगी। यह'अहिंसक बैंक' का भी कार्य करेगा। २०००० किसानों को जो मद्य, मधु, मांस त्यागी अहिंसक होंगे उनको गाय देकर उनसे प्रतिदिन दूध का पैसा देकर दूध का कलेक्शन होगा श्रावक २१०००/- रू. में एक गाय विनिमय के हिसाब से दान देकर इसमें शेअर करेंगे। सभी उत्पादन भारत में ‘शांतिधारा' के नाम से विक्रय करेंगे। आज आदि हिंसात्मक कायोंमें हो रहा है। उससे बचने का सर्वोत्तम उपाय ‘शांतिधारा' है।
धर्मशास्त्र तो गोधन की महानता और पवित्रता का वर्णन करते ही है किन्तु भारतीय अर्थशास्त्र में भी गोपालन का विशेष महत्व है। कौटिल्य अर्थशास्त्र में गोपालन और गो रक्षण का विस्तृत वर्णन है। भारत में अनादिकाल से ही सभी का मुख्य कर्तव्य गोपालन हो रहा है। प्राचीन काल में जिसके पास ज्यादा गायें होती थीं, वही संपत्ति शाली माना जाता था, गाय से यह देश मंगल का स्थान बन गया था, गाय के बिना आज अमंगल हो रहा है ये देश। भारत के डॉक्टर, वकील, ग्रंथकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी, विद्वान, नेता,कार्यकर्ता, कर्मचारी, व्यापारी, गाय के पालन में सहयोग करें यह महत्वपूर्ण जीव रक्षा का कार्य है। आजकल गृहस्थों ने गाय रखना बंद कर दिया है कार, मकान, दुकान, कपडे, सप्त व्यसन, जुआ, शराब आदि में पैसा बर्बाद कर रहे हैं। लेकिन एक गाय नही रख पा रहे है। गाय के दूध से कैंसर, कोलेस्ट्रोल, हृदय रोग, कोढ़, ब्लडप्रेशर आदि बीमारियां ठीक होती है। गाय का दूध बुद्धिवर्धक होता है। २४७५० मनुष्य एक गाय के जीवन भर दूध से तृत हो सकते है। गाय पर प्रेम से हाथ फेरने से ब्लड प्रेशर ठीक हो जाता है। गाय की पीठ पर सूर्य केतू स्नायू होता है, जो हानिकारक विकिरण को रोककर वातावरण को स्वच्छ बनाता हैं। हवन में घी के प्रयोग से वातावरण शुद्ध होता है। ओजोन की पटल मजबूत होती है। गाय के रोम और निवास से भी बीमारी ठीक होती हैं। गाय और बछडे के रंभाने की आवाज से मनुष्य की अनेक मानसिक विकृतियां तथा रोग अपने आप नष्ट हो जाते हैं। गाय अपने सींग के माध्यम से कास्मिक पावर ग्रहण करती है। गाय के गोबर से टी.बी. मलेरिया के कीटाणु नहीं पनपते हैं। "विनोबा भावे जी कहते थे कि ‘हिन्दुस्तानी सभ्यता का नाम ही गोसेवा हैं" पहले आम के बगीचों में दूध की सिंचाई होती थी। गाय के दुग्ध पदार्थों में विष को समाप्त करने की क्षमता होती है। गाय के शरीर में विषैले पदाथोंको पचाने की क्षमता होती है। "अहा जिंदगी का' लेख अप्रैल २००६ 'गाय और भारत' एवं 'दान चिंतामणि' एवं 'रोमांस ऑफ काऊ' पुस्तक जो सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है अवश्य पढ़े लगभग ८००० साल पहले सिंधु घाटी में गाय को पालतू बनाये जाने से एक क्रांति आयी थी। इस तरह आप गाय की उपयोगिता के बारे में लोगों को बतायें प्रचार प्रसार करें, समाचार पत्र, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया, पत्रिका, इंटरनेट, ई-मेल, फेसबुक, न्यूज चैनल, एस.एम.एस. के माध्यम से जन जन तक यह संदेश पहुंचायें।
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#आचार्यश्री की पूजा करते हुए ब्रह्मचारी श्रीसुनिल भैयाजी (इंदौर) Beautiful Lines
चांद ने पूछा तेरा सत्गुरु कैसा है ।
मैंने कहा तू बिल्कुल उसके जैसा है ।
हवा बोली क्या वो खिलता कमल है ।
मैंने कहा वह प्रेम का महल है ।
खूश्बूू बोली क्या वह फूल है ।
मैंने कहा फूल तो उसके चरणो की धूल है ।
नदी बोली क्या वह जल मे रहते हैं ।
मैंने कहा वह भक्तों के दिलों में रहते है ।
परी बोली क्या वह जादू की छड़ी है ।
मैंने कहा उनकी मुस्कान जादू भरी है ।
सूरज ने पुछा क्या वह देव है ।
मैंने कहा...
देवों से भी बढ़कर वो "महादेव -तीर्थंकर ऋषभदेव के अनुयायी" हैं....!!
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