🌸 अहिंसा यात्रा के साथ शांतिदूत पहुंचे घासीपुरा 🌸
-सरल बनने और अपनी गलतियों का परिमार्जन करने की दी पावन प्रेरणा
03.01.2018 घासीपुरा, क्योंझर (ओड़िशा)ः जन-जन के मन को पावन बनाने और लोगों के भीतर मानवता बीज का वपन करने को निकले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखंड परिव्राजक, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना व अहिंसा यात्रा के साथ बुधवार को क्योंझर जिले के घासीपुरा नगर स्थित झाड़ेश्वर हाईस्कूल में पधारे। विद्यालय के शिक्षकों व विद्यार्थियों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं, शिक्षकों व विद्यार्थियों को अपने जीवन में सरल बनने और गलतियों का पुनरावर्तन न करने की पावन प्रेरणा प्रदान की साथ ही आचार्यश्री ने उन्हें अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्प भी प्रदान किए।
बुधवार को आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ कोलीमाटी स्थित स्वप्नेश्वर आदिवासी हाईस्कूल से मंगल प्रस्थान किया। आज का विहार मार्ग लगभग 17 किलोमीटर का था। इस प्रलंब विहार के लिए भी समताभावी आचार्यश्री सहज ही निकल पड़े, जैसे वे इस मार्ग की दूरी से अप्रभावित थे। दृढ़ संकल्पी आचार्यश्री मार्ग में आने वाले गांवों के ग्रामीणों को अपने आशीर्वाद से अभिसिंचन प्रदान करते हुए लगभग 17 किलोमीटर का प्रलंब विहार कर घासीपुरा स्थित झाड़ेश्वर हाईस्कूल में पधारे। यहां विद्यालय के शिक्षकों, विद्यार्थियों व श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का मंगल स्वागत किया।
विद्यालय प्रांगण में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं, विद्यार्थियों व शिक्षकों को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आध्यात्मिक जगत में मोक्ष का परम महत्त्व है और अध्यात्म साधना का परम लक्ष्य निरवाण की प्राप्ति होती है। निरवाण उसी को प्राप्त हो सकता है, जिसके जीवन में धर्म हो तथा धर्म उसी में ठहरता है जो शुद्ध होता है। शुद्ध वह होता है जिस व्यक्ति के भीतर ऋजुता और सरलता हो। ऋजु आदमी शुद्ध हो सकता है।
आदमी को ऋजु (सरल) बनने का प्रयास करना चाहिए। ऋजुभूत आदमी ही अपनी गलतियों का शोधन कर सकता है। आदमी से गलतियां हो सकती हैं। आदमी को अपनी गलतियों का परिमार्जन करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को यह ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए जो उससे गलती हो गई हो, उसका वह परिष्कार करे और उस गलती के पुनरावर्तन से बचने का प्रयास करे। आदमी को अपने जीवन में निरंतर सुधार करने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी को गलती से बचने का प्रयास करना चाहिए। यदि कोई गलती आदमी से हो भी जाए तो उसे छिपाने का नहीं, बल्कि उसकी पुनरावृत्ति न हो पाए, इसका प्रयास करना चाहिए। जिस व्यक्ति सरला और ऋजुता होती है, वह अपने अपराध को स्वीकार कर लेता है तो वह उसका परिमार्जन भी कर सकता है। आदमी को झूठ, छल, कपट रूपी पापों से बचने का प्रयास करना चाहिए। पापों से बचते हुए आदमी को अपने व्यवहार को निश्छल बनाने का प्रयास करना चाहिए। व्यवहार में निश्छलता हो, ईमादारी हो, सच्चाई और सरलता को बढ़ाने का प्रयास हो तो आदमी का जीवन अच्छा बन सकता है तथा वह मोक्ष प्राप्ति की दिशा में गति कर सकता है।
आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित ग्रामीणों, शिक्षकों व विद्यार्थियों को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान की और उनसे अहिंसा यात्रा के संकल्पत्रयी को स्वीकार करने का आह्वान किया तो उपस्थित जनों से सहर्ष संकल्पत्रयी स्वीकार की। झाड़ेश्वर हाईस्कूल के विज्ञान के शिक्षक श्री जयदेव साहू ने आचार्यश्री के स्वागत में ओडिया भाषा में अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
🙏संप्रसारक🙏
जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा
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