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जैन आगम में "सरस्वती देवी" का महत्व:-
जैनाचार्यों ने सरस्वती देवी के स्वरूप की भगवान् की वाणी से तुलना की है। यथार्थत: सरस्वती की प्रतिमा द्वादशांग का ही प्रतीकात्मक चिह्न है। जैन सरस्वती के चार हाथों में कमल, अक्षमाला, शास्त्र तथा कमण्डलु हैं, जो क्रमश: अन्तर्दृष्टि, वैराग्य, ज्ञान और संयम के प्रतीक हैं। जैन मनीषियों ने शास्त्रों की रचना करते समय मंगलाचरण आदि में सरस्वती, भारती, शारदा, वाग्देवी एवं ब्राह्मी आदि के नामों से जो स्तुति, वंदना, नमस्कार आदि किया है, वह वस्तुत: जिनोपदेश, श्रुतज्ञान अथवा केवलज्ञान की प्राप्तिस्वरूप किया गया है। नमस्कार का प्रयोजन अष्टकर्मों का क्षय एवं अष्टगुणों की प्राप्ति है।
दिनांक 10 जनवरी सन 1975 को "विश्व हिंदी सम्मेलन " के अवसर पर जारी डाक टिकट में जिस जैन सरस्वती प्रतिमा का अंकन हुआ था वह प्रतिमा राजस्थान के पल्लु से प्राप्त हुई थी तथा वर्तमान में बीकानेर के राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित है ।
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राजस्थान प्रवेश
रतनपुर
10/1/2018
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