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*गुरु दर्शन से बना अहिंसक #ऽhare
वीतराग मुद्रा मोक्षमार्ग में कितनी कार्यकारी है, इसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है। इस मुद्रा को देखकर बहुत पापी व्यक्ति भी वीतरागी के चरणों में आकर सारे पापों का त्याग कर अपने आपको सद् मार्ग में लगा लेता है। कैसे लगाता है? आचार्यश्री के दर्शन से एक सैनिक का जीवन बदल गया। इस प्रसंग को पढ़ें
बात 24 अप्रैल 1998 की शाम के समय की है। 18 अप्रैल को आचार्यश्री एवं संघ का दर्शन आर्मी के एक रिटायर्ड सैनिक ने किए। उस दिन वह सैनिक आचार्य संघ के साथ-साथ भाग्योदय तीर्थ तक आया पर जनसमूह बहुत होने से वापस चला गया। आज वह फिर आया। आचार्य भक्ति के बाद हम और 2 ब्रह्मचारीगण बैठे हुए थे। वह व्यक्ति आया उसका नाम महेंद्रसिंह था। जाति का जाट था। हरियाणा का रहने वाला था। यहाँ सागर की आर्मी का था। वह आचार्यश्री के दर्शन करके रोने लगा। आचार्यश्रीजी से बोला- 'बाबा मुझे शांति नहीं है। कुछ ऐसा बताओ या कोई मंत्र दे दो जिससे मुझे शांति मिले।
'आचार्यश्री ने उससे पूछा- 'माँस-मदिरा, अंडा आदि खातेपीते हो।' वह बोला- 'हाँ महाराज! मैं तो सेना में था, वहाँ तो सब चलता है।' उसने बताया कि '18 अप्रैल 1998 के दिन यहाँ पर जब आप आए थे, मैं उस दिन माँस खरीदने ही जा रहा था, जैसे ही आप सभी बाबा लोगों को देखा। सब भूल गया और आपके साथसाथ यहाँ तक चला आया था। लेकिन व्यवस्थापकों ने आप तक नहीं आने दिया था। आज आप जो आज्ञा करें। मैं सब कुछ छोड़ दूँगा। मुझे तो बस शांति चाहिए। मैं वचन का पक्का हूँ मर जाऊँगा पर आपका वचन नहीं जाने दूँगा।'
आचार्यश्री ने कहा ठीक है। अब तुम माँस-मदिरा, अंडा आदि खाना छोड़ दो और पामोकार मंत्र का ध्यान करना, इसको अच्छे से पढ़ना और भूल-चूक निरादर न हो इसका ध्यान रखना। मेरी तरफ इशारा करते हुए ये महाराज (ऐलक प्रज्ञासागर) आपको मंत्र लिख देंगे, पढ़ा देंगे। उसको ध्यान से पढ़ना। मैंने उसे पामोकार मंत्र लिखकर उच्चारण कराया। आचार्यश्री का एक फोटो भी उसको दे दिया। बड़ी आस्था के साथ उसने कहा- अब मुझे निश्चित रूप से शांति मिलेगी। वह व्यक्ति फिर पूरे परिवार को लाया, सबको माँस आदि का त्याग करा दिया। सभी ने णमोकार मंत्र सीख लिया था। पूरे ग्रीष्मकाल एवं चातुर्मास के काल में अपनी साइकिल से 6-7 किमी. दूर से प्रायः करके रोज आता, आहार चर्या देखता चला जाता या शाम को आता, महाराज लोगों की वैय्यावृत्ति करता। रात्रि में घर चला जाता था। अब वह पूरे संघ का चहेता बन गया। उसका छोटा बेटा था, वह पिताजी से और आगे निकला। प्रतिदिन पिताजी के साथ शाम को आता था। वैय्यावृत्ति आदि करता था। ठीक ही है, जिसका भविष्य सुधरना होता है वह अहिंसक वृत्ति भी अपनाता है और तदनुसार धर्म में श्रद्धा-भक्ति भी करने लगता है।
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